एक हतोत्साहित व्यक्ति बहुत ही सुस्त हो जाता है, उसे प्रसन्नता का आभास नहीं होता, वो समझता है कि अपने कार्यों के लिए उसके शरीर में पर्याप्...
एक हतोत्साहित व्यक्ति बहुत ही सुस्त हो जाता है, उसे प्रसन्नता का आभास नहीं होता, वो समझता है कि अपने कार्यों के लिए उसके शरीर में पर्याप्त ऊर्जा नहीं है, वो थका थका सा और उद्देश्य हीन है, उसके हाथ - पैर शिथिल पड़े हुए हैं, उसे घुटन और घबराहट का आभास होता है, वो समझता है कि अपनी शक्ति और इरादा खो चुका है, दूसरों के साथ मिलने जुलने पर उसे आनन्द प्राप्त नहीं होता और पहले यदि उसे कोई भोजन अच्छा लगता था, अब उसको खाने का मन नहीं करता या पहले यदि मित्रों के बीच और समोरोहों आदि में उसे आनंद आता था, तो अब उससे भागता है और अकेलापन उसे अच्छा लगता है। यदि आप भी इस प्रकार के लक्षण देखें तो समझ लीजिए कि एक प्रकार के हतोत्साह का सामना हो सकता है। इससे मनुष्य न केवल ये कि अपनी गतिविधियों, कार्यों, विचारों और अस्तित्व को मूल्यहीन और नकारात्मक समझता है बल्कि संसार को भी एक भयानक,अंधेरा और ख़तरनाक स्थान समझने लगता है।
ऐसी स्थिति को यदि इसे बढ़ने की अनुमति दी गई तो आप को हतोत्साह की सीमाओं तक पहुंचा देगी। अब हमें ये देखना है कि इस स्थिति से बचने के लिए हमें क्या करना चाहिए।
सबसे पहले हमें स्वंय को यह विश्वास दिलवाना चाहिए कि सभी चीज़ें हमारे विचारों और दृष्टिकोंणो पर निर्भर हैं| यह आवश्यक नहीं है कि अपनी कमियों का ही रोना रोते रहें। यदि हम ईश्वर के वरदानों और उपकारों पर विचार करें और दिल की गहराइयों से सोचें कि यदि यह चीज़ें हमें न मिली होती तो हम क्या करते? हमें चाहिए कि इन वरदानों के मूल्य और महत्व को समझें और अपनी भौतिक कमियों को बहुत बढ़ा चढ़ा कर स्वंम को परेशानी के जाल में न फसाएं।
एक व्यक्ति जूता न होने के कारण बड़ा दुखी था कि अचानक उसे एक ऐसा व्यक्ति मिला जिसके पैर ही नहीं थे। यह देख उस व्यक्ति ने ईश्वर के प्रति आभार व्यक्त किया और अपने पास जूता न होने पर संतोष कर लिया।
यह देखना भी अति आवश्यक है कि हतोत्साह और उदासीनता के समय कैसे विचार मन में आते हैं, क्योंकि यही विचार मनुष्य की असली परेशानी और दु:ख़ का कारण होते हैं जो घटना घटी और उसके प्रति आप के विचारों की शैली ने इस घटना को दु:ख़दाई समझा है।
हमें चाहिए कि कठिनाइयों को बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत करने और एक तरफ़ा मूल्याँकन से बचें। निर्णय लेने में जल्दी न करें। प्राय: घटनाओं के प्रति हतोत्साहित व्यक्तियों के विचार नकारात्मक और चिन्ताजनक होते हैं। अधिकतर ऐसा लगता है कि कोई दुर्घटना घटने वाली है। यदि कोई काम होने वाला है तो सदैव यही समझा जाता है कि इसका परिणाम नकारात्मक ही होगा।
हरकार्य से पहले ही नकारात्मक निष्कर्ष न निकालें। क्योंकि यदि कोई अप्रिय घटना घटती है तो हम अकारण ही स्वंम को उसका दोषी ठहराते हैं और अपनी अक्षमता को इस अप्रिय परिणाम का ज़िम्मेदार समझते हैं।
तो फिर आज से यह तय हुआ कि निर्णय लेने में जल्दी करना और स्वंम को उसके लिए दोषी ठहराना वर्जित। ऐसा करने से ही हम हतोत्साह से खुद को बचा सकेंगे |
ऐसी स्थिति को यदि इसे बढ़ने की अनुमति दी गई तो आप को हतोत्साह की सीमाओं तक पहुंचा देगी। अब हमें ये देखना है कि इस स्थिति से बचने के लिए हमें क्या करना चाहिए।
सबसे पहले हमें स्वंय को यह विश्वास दिलवाना चाहिए कि सभी चीज़ें हमारे विचारों और दृष्टिकोंणो पर निर्भर हैं| यह आवश्यक नहीं है कि अपनी कमियों का ही रोना रोते रहें। यदि हम ईश्वर के वरदानों और उपकारों पर विचार करें और दिल की गहराइयों से सोचें कि यदि यह चीज़ें हमें न मिली होती तो हम क्या करते? हमें चाहिए कि इन वरदानों के मूल्य और महत्व को समझें और अपनी भौतिक कमियों को बहुत बढ़ा चढ़ा कर स्वंम को परेशानी के जाल में न फसाएं।
एक व्यक्ति जूता न होने के कारण बड़ा दुखी था कि अचानक उसे एक ऐसा व्यक्ति मिला जिसके पैर ही नहीं थे। यह देख उस व्यक्ति ने ईश्वर के प्रति आभार व्यक्त किया और अपने पास जूता न होने पर संतोष कर लिया।
यह देखना भी अति आवश्यक है कि हतोत्साह और उदासीनता के समय कैसे विचार मन में आते हैं, क्योंकि यही विचार मनुष्य की असली परेशानी और दु:ख़ का कारण होते हैं जो घटना घटी और उसके प्रति आप के विचारों की शैली ने इस घटना को दु:ख़दाई समझा है।
हमें चाहिए कि कठिनाइयों को बढ़ा चढ़ा कर प्रस्तुत करने और एक तरफ़ा मूल्याँकन से बचें। निर्णय लेने में जल्दी न करें। प्राय: घटनाओं के प्रति हतोत्साहित व्यक्तियों के विचार नकारात्मक और चिन्ताजनक होते हैं। अधिकतर ऐसा लगता है कि कोई दुर्घटना घटने वाली है। यदि कोई काम होने वाला है तो सदैव यही समझा जाता है कि इसका परिणाम नकारात्मक ही होगा।
हरकार्य से पहले ही नकारात्मक निष्कर्ष न निकालें। क्योंकि यदि कोई अप्रिय घटना घटती है तो हम अकारण ही स्वंम को उसका दोषी ठहराते हैं और अपनी अक्षमता को इस अप्रिय परिणाम का ज़िम्मेदार समझते हैं।
तो फिर आज से यह तय हुआ कि निर्णय लेने में जल्दी करना और स्वंम को उसके लिए दोषी ठहराना वर्जित। ऐसा करने से ही हम हतोत्साह से खुद को बचा सकेंगे |