A travel blog with emphasis on Art & Culture

$type=slider$snippet=hide$cate=0

#amankapaigham #avinash vachaspati 2020 alwida २७ रजब 72 हूर 72 hoor अंजना (गुडिया) अंधविश्वासी अख्तर खान अकेला अजय कुमार झा अजादारी अनवर जमाल अनैतिक अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस अपर्णा त्रिपाठी "पलाश" अमन और शांति अमन का पैगाम अमित शर्मा अयातुल्लाह सीस्तानी अरुण चन्द्र रॉय अलबेला खत्री अश्लीलता असंतुलन अहलिबैत अलैहिमुस्सलाम आंतिरक इच्छाओं इंसान इंसानियत इमाम अली (अ.स) इमाम हुसैन इस्मत जैदी इस्लाम ई रिक्शा ईस्लाम छोडो आज़ादी कि राह मदद का वादा एस एम् मासूम एस.एम.मासूम एहसान फरामोशी ऑनर किलिंग ओबामा ओल्ड कट्टरवादी कर्बला कविओं कविता कश्मीरी चाय काबा और कर्बला कुरान कुरीतियों कुसुमेश केवल राम कोरोना कौटुम्बिक व्यभिचार खुशदीप सहगल गाँधी गिरिजेश कुमार गुलाब चाय का मज़ा जागरूकता जिन्न जिहाद जौनपुर डा. रूपचन्द्र शाश्त्री “मयंक” डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट डॉ टी एस दराल तारकेश्वर गिरी तीन तलाक़ दरिंदगी दानिश" भारती दीप पाण्डेय (विचार शून्य) देश भक्ति दोषारोपण दोहरे चरित्र धर्म और राजनीति धर्मदर्शन धर्मपत्नी धार्मिक नरेन्द्र मोदी नाईट क्लब निर्मला कपिला पकोड़ा पड़ोसी पत्नी से मित्रता परिवार पवन कुमार मिश्र पश्चिमी सभ्यता पूजा शर्मा पेंशन पेंशन एक इस्लामी मशविरा पॉलिटिक्स पोर्न फतवे फ़ातिमा फेसबुक फ्रांस बडबोले बलात्कार बाप बुराईयों बुर्का बुर्क़े बेअसत बेशर्मी मोर्चा बॉय फ्रेंड ब्रिटेन ब्लॉगजगत ब्लॉगर ब्लोग्गेर्स की दुनिया भारतीय संस्कृति भ्रष्ट भ्रष्टाचार भ्रष्टाचार अन्धविश्वासो मस्तिष्क महिला अधिकार महिला जगत माँ मानसिक विकृतियों मीनाक्षी पन्त मुंबई मुकेश कुमार सिन्हा मुफज्ज़रनगर मुसलमान मुहर्रम मैं एक मुस्लमान हूँ ? मैथली शरण गुप्त मैराज ज़ैदी यौन आकर्षण यौन हिंसा रचना बजाज रज़िया राज़ रश्मि प्रभा राजनीति राजनीती राजेन्द्र स्वर्णकार रिश्ते नाते रेखा श्रीवास्तव लता हया लविंग जिहाद लालकृष्ण आडवाणी लिव-इन-रिलेशनशिप वंदे मातरम् वंशावली वहम विकास विवाह विवेक रस्तोगी वीणा श्रीवास्तव वेबपोर्टल शक शक या वहम शराब. ब्लू फिल्म शादी या लिवइन रिलेशनशिप शाहनवाज़ सिद्दीकी शिखा वार्ष्णेय शिशु शीराज़ ऐ हिन्द शेयर मार्केट संगीता पुरी संजय भास्कर संपादकीय संस्कार सतीश सक्सेना सदाचार समलैंगिक समस्याएं समाज समाज के दो चेहरे समीर लाल ’समीर सहिफा इ सज्जडिया सामाजिक प्राणी सामाजिक भय सामाजिक मुद्दे साम्‍प्रदायि‍क सद् भाव सास ससुर सिविल डिसओबिडियेन्स सेक्स सेक्स एजुकेशन सोशल मीडिया स्वस्थतम की उत्तरजीविता हज़रत अली हरकीरत हीर हरदीप राणा जी हिंदी ब्लॉग जगत हिजाब हिन्दू aman amankapaigham arvind vidrohi Asia asl islam blog blog jagat blogger bloggers bold Civil disobedience culture current affairs Death Dipawali Diwali dosti dua e richshaw Editorial facebook fathers day featured festival festivals Hadith headline Hindi Hindu history HIV/AIDS http://blogsinmedia.com India jihad jinn karonda Kashi naresh love marriage Lungs cancer Maharashtra mahila jagat Mantra media marketting Mumbai naturopathy Opposing Views parents peace message photo politics porn portfolio power Game Race chart Religion and Spirituality rizq rose s.m.masoom S.M.MASUM samaj satish kaushik shajra shajra sadat Shirdi slut march social issues social media society sport suroor fatima talents tea time Teachings The News International tiger woods vandana gupta Varanasi whatsapp wikileaks women issues world world issues yoga zeeshan zaidi

पेश ऐ खिदमत है विश्वनाथ प्रसाद साहेब माथुर * लखनवी का १३८३ हिजरी मैं लिखा यह मशहूर लेख़।

SHARE:

हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत फ़तिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा हैं। आप अपने माता पिता की...

bannersss हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के पिता हज़रत इमाम अली अलैहिस्सलाम व आपकी माता हज़रत फ़तिमा ज़हरा सलामुल्लाह अलैहा हैं। आप अपने माता पिता की द्वितीय सन्तान थे। आप हजरत  मोहम्मद  साहेब  के  छोटे  नवासे   भी हैं
हज़रत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का जन्म सन् चार  हिजरी क़मरी में शाबान मास की तीसरी  तिथि को पवित्र शहर मदीनेमें हुआ था। इस समय सीमा में  इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को सदाचार सिखाने ज्ञान प्रदान करने तथा भोजन कराने  का उत्तरदायित्व स्वंम पैगम्बर(स.) के ऊपर था।  पैगम्बर(स.)  इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से अत्यधिक प्रेम करते थे। वह उनका छोटा सा दुखः भी सहन नहीं कर पाते थे।  इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से प्रेम के सम्बन्ध में पैगम्बर(स.) के इस प्रसिद्ध कथन का सभी मुसलमान  विद्वानो ने उल्लेख किया है। कि पैगम्बर(स.) ने कहा कि हुसैन मुझसे हैऔर मैं हुसैन से हूँ। अल्लाह तू उससे प्रेम कर जो हुसैन से प्रेम करे ।
पेश ऐ   खिदमत है विश्वनाथ  प्रसाद  साहेब  माथुर * लखनवी   का १३८३ हिजरी मैं लिखा यह मशहूर लेख़। 
…..स.म मासूम
हुसैन  और  भारत  विश्वनाथ  प्रसाद  साहेब  माथुर * लखनवी   मुहर्रम , १३८३  हिजरी
आँख  में  उनकी  जगह , दिल  में  मकां शब्बीर  का
यह  ज़मीं   शब्बीर  की ,  यह  आसमान  शब्बीर  का
जब  से  आने  को   कहा  था ,  कर्बला  से  हिंद  में
हो   गया   उस   रोज़   से ,   हिन्दोस्तान  शब्बीर  का
माथुर * लखनवी
पेश  लफ्ज़
अगर  चे  इस  मौजू  या  उन्वान  के  तहत  मुताद्दिद  मज़ामीन , दर्जनों  नज्में ,और  बेशुमार  रिसाले  शाया  हो  चुके  हैं , लेकिन  यह  मौजू  अपनी  अहमियत  के  लिहाज़  से  मेरे  नाचीज़  ख्याल  में  अभी  तश्न ए  फ़िक्र  ओ  नज़र  है . इस  लिए  इस  रिसाले  का  उन्वान  भी  मैं  ने  ” हुसैन  और  भारत  ” रखा  है  और  मुझे  यकीन  है  के  नाज़रीन  इसे  ज़रूर  पसंद  फरमाएं  गे।
नाचीज़ ,
माथुर * लखनवी
इराक  और  भारत  का  ज़ाहिरी  फासला  तो  हज़ारों  मील,का  है. अगर  चे  इस  फासले  को  मौजूदा  ज़माने  की  तेज़   रफ़्तार  सवारियों  ने  बहोत  कुछ  आसान  कर  दिया  है , लेकिन  सफ़र  की  यह सहूलतें  आज  से  १३२२  बरस  पहले  मौजूद  ना  थीं।
मुहर्रम  ६१  हिजरी  . में  हजरत  मोहम्मद  साहेब  के  छोटे  नवासे   हजरत  इमाम  हुसैन  ने  भारत  की  सरज़मीन  पर  आने  का  इरादा  फ़रमाया  था , और  उन्होंने  अपने  दुश्मन  यज़ीद  की  टिड्डी  दल   फ़ौज  के  सिपह सालार उमर  इब्ने  साद     से  अपनी चंद  शर्तों  के  नामंज़ूर   होने    के  बाद  यह  कहा  था  के  अगर  मेरी  किसी  और  शर्त  पर  राज़ी  नहीं  है  तो  मुझे  छोड़   दे  ताकि  मैं  भारत  चला  जाऊं।
मैं  अक्सर  यह  ग़ौर  करता  रहता   हूँ  के  तेरह  सौ  साल  पहले  जो   सफ़र  की  दुश्वारियां  हो  सकती  थीं , उनको  पेशे  नज़र  रखते हुए  हजरत  इमाम  हुसैन  का  भारत  की  सरज़मीन  की जानिब  आने  का  क़स्द (इरादा )  करना , और  यह  जानते हुए  के  ना  तो  उस  वक़्त  तक  फ़ातेहे  सिंध , मुहम्मद . बिन   क़ासिम  पैदा   हुआ   था , और  ना  हम  हिन्दुओं  के  मंदिरों  को  मिस्मार  करने  वाला  महमूद  ग़ज़नवी   ही  आलमे  वुजूद  में  आया  था . न  उस  वक़्त  भारत  में  कोई  मस्जिद  बनी  थी  और  ना  अज़ान  की  आवाज़  बुलंद   हुई  थी , बल्कि   एक  भी  मुसलमान  तिजारत  या  सन’अत    ओ  हिर्फ़त  की  बुनियाद  पर  भी  यहाँ  ना  आ  सका  था , ना  मौजूद  था . उस  वक़्त  तो  भारत  में   सिर्फ  चंद   ही  कौमें  आबाद  थीं , जो  बुनियादी  तौर  से  हिन्दू  मज़हब  से  ही  मुताल्लिक  हो  सकती  हैं . मगर  इन्  तमाम  हालात  का  अंदाजा  करने  के  बाद  भी  के  भारत  में  कोई  मुसलमान  मौजूद   नहीं  है , हजरत  इमाम  हुसैन  ने  उमर ए  साद  से  क्यों   यह  फरमाया  के  मुझे  भारत  चला  जाने  दे । 

अगरचे  हज़रत  इमाम  हुसैन  की  शहादत  से  पहले  किसी  ना  किसी  तरह   सरज़मीने  ईरान  तक  इस्लाम  पहुँच   चुका   था ,  और  सिर्फ  ईरान   ही  पर   मुनहसिर  नहीं  है , बल्कि   हबश  को  छोडकर   जहाँ  हजरत  अली  के  छोटे  भाई  जाफ़र ए  तय्यार  कुरान  और   इस्लाम   का  पैग़ाम  लेकर गए   थे। दीगर  मुल्क  भी  ईरान  की  तरह   जंग  ओ  जदल  के  बाद  उसवक्त  की  इस्लामी  सल्तनत   के  मातहत  आ  चुके   थे। जैसे  के  मिस्र  वा  शाम  वगैरह  , इसलिए  हजरत  इमाम  हुसैन  के  लिए  भारत  के  सफ़र  की  दुश्वारियां  सामने  रखते   हुए   यह  ज़्यादा  आसान  था  के वो  ईरान चले  जाते , या  मिस्र  ओ  शाम  जाने  का  इरादा   करते , मगर  उनहोंने  ऎसी  किसी  तमन्ना  का  इज़हार  नहीं  किया , सिर्फ  भारत  का  नाम  ही  उनकी  प्यासी  जुबां  पर  आया।
खुसूसियत  से  हबश  जाने  की  तमन्ना  करना   हजरत  इमाम   हुसैन  के  लिए   ज्यादा  आसान  था , क्यूंकि  ना  सिर्फ  बादशाहे  हबश  और  उसके  दरबारी  इस्लाम  कुबूल  कर  चुके   थे  बल्कि   हजरत  इमाम  हुसैन  के  हकीकी  चाचा  हजरत  जाफ़र  के  इखलाक   वा  मोहब्बत  से  बादशाहे  हबश  ज्यादा  मुतास्सिर  भी  हो  चुका   था .  यहाँ  तक  के  उसने  खुद्द  हजरत  जाफ़र  के  ज़रिये  से  भी  और  उनके  बाद  मुख्तलिफ  ज़राएय  से  रसूले  इस्लाम  और  हजरत  अली  की  खिदमत  में  बहुत  कुछ  तोहफे  भी  रवाना  किये  थे , बलके  वाकेआत  यह  बताते  हैं  के  ख़त  ओ  किताबत  भी  बादशाहे  हबश  से  होती  रहती  थी ।
दूसरा  सबब  हबश  जाने  की  तमन्ना  का  यह   भी  हो  सकता  था  के  उसवक्त  जितनी  दिक्क़तें  हबश  का  सफ़र  करने   के  सिलसिले  में  इमाम   हुसैन  को  पेश  आतीं , वो   इससे  बहोत  कम  होतीं  जो  हिन्दोस्तान  के  सफ़र  के  सिलसिले  में  ख्याल  की  जा  सकती  थीं . मगर  हबश  की  सहूलतों  को   नज़र  अंदाज़  करने  के   बाद  हजरत  इमाम  हुसैन  किसी  भी  गैर मुस्लिम   मुल्क  जाने  का  इरादा  नहीं  करते , बल्कि   उस  हिन्दोस्तान  की  जानिब  उनका  नूरानी  दिल  खींचता  हुआ  नज़र  आता  है , जहाँ  उसवक्त  एक   भी  मुसलमान  ना  था . आखिर  क्यों ?  येही  वो   सवाल  है  जो  बार  बार  मेरे  दिमाग    के  रौज़नों  में  अकीदत  की  रौशनी  को  तेज़   करता  है , और  अपनी  जगह  पर  मैं  इस  फैसले  पर  अटल  हो  जाता  हूँ  के  जिस  तरह  से  हिन्दोस्तान  वालों  को  हजरत  इमाम  हुसैन   से  मोहब्बत होने   वाली  थी  उसी  तरह  इमाम  हुसैन  के  दिल  में  हम  लोगों  की  मोहब्बत  मौजूद  थी। 

karbala
मोहब्बत  वो   फितरी  जज्बा  है  जो  दिल  में  किसी  की  सिफारिश  के  बग़ैर  ख़ुद ब ख़ुद  पैदा  होता  है , और  कम  अज  कम  मैं  उस  मज़हब  का  क़ायल  नहीं  हो  सकता , या  उस  मोहब्बत  पर  ईमान  नहीं  ला  सकता  जिसका  ताल्लुक   जबरी  हो . दुनिया  में  सैकड़ों   ही  मज़हब   हैं , और  हर  मज़हब  का  सुधारक   यह  दावा  करता  है  के  उसी  का  मज़हब  हक   है , और  यह  फैसला  क़यामत  से  पहले  दुनिया  की  निगाहों  के  सामने  आना   मुमकिन   नहीं  है , के  कौन  सा  मज़हब  हक  है . लेकिन  चाहे  चंद  मज़हब  हक  हों , या  एक   मज़हब  हक  हो , हम  को  इससे  ग़रज़  नहीं  है , हम  तो  सिर्फ  मोहब्बत  ही  को  हक  जानते  हैं ,और  शायद   इसी  लिए  दुनिया  के  बड़े  बड़े  पैग़ंबरों  और  ऋषियों  ने  मोहब्बत  ही  की  तालीम  दी  है । 

मोहब्बत  का  मेयार  भी  हर  दिल  में  यकसां  नहीं  होता , मोहब्बत  एक   हैवान  को  दुसरे  हैवान  से   भी  होती  है , और  इंसानों  में  भी  मोहब्बतों  के  अक्साम  का  कोई  शुमार  नहीं  है , माँ   को  बेटे  से  और  बेटे  को  माँ  से  मोहब्बत  होती   है , बहन  को  भाई  से  और  भाई  को  बहन  से  मोहब्बत  होती  है , चाचा  को  भतीजे  से  और  भतीजे  को  चाचा  से , बाप  को  बेटे  से  और  बेटे  को  बाप  से  मोहब्बत  होती  है . इन्  तमाम  मोहब्बतों  का  सिलसिला   नस्बी  रिश्तों  से  मुंसलिक  होता  है . लेकिन  ऎसी  भी  मोहब्बतें  दुनिया  में   मौजूद  हैं , जो  शौहर  को  ज़ौजा से  और  ज़ौजा  को  शौहर  से  होती  है , या  एक  दोस्त  को  दूसरे  दोस्त  से  होती  है , इन्  सब  मोहब्बतों  का  इन्हेसार  सबब  या  असबाब  पर  होता  है . मगर  वो मोहब्बतें  इन् तमाम  मोहब्बतों  से  बुलंद  होती  हैं , जो  इंसानियत  के  बुलंद  तबके  में  पाई  जाती  हैं , मसलन  पैग़म्बर  नूह  को  अपनी  कश्ती  से  मोहब्बत , या  हजरत  इब्राहीम  को  अपने  बेटे  इस्माइल  से  मोहब्बत , या  हजरत   मोहम्मद  (स)   को   अपनी  उम्मत  से  मोहब्बत , यह  तमाम  मोहब्बतें  उस  मेयार  से  बहोत  ऊंची  होती  हैं , जो  आम  सतेह   के  इंसानों  में  पाई  जाती  हैं . लिहाज़ा  यह  मानना  पढ़ेगा  के  हजरत  इमाम  हुसैन  के  दिल  में  हिन्दोस्तान  और  उसके  रहने  वालों  की  जो  मोहब्बत  थी , वो  उसी  बुलंद  मेयार  से  ता’अलुक  रखती  है  जो  पैग़म्बरे  इस्लाम  हजरत  मोहम्मद  साहेब  को  अपनी  उम्मत   से  हो  सकती  हो , क्योंके  अगर  यह  मोहब्बत  आला  मेयार  की  ना  होती  तो  उसका  वजूद  वक्ती  होता ,  या  उस  अहद  से  शुरू  होती , जब  से  इस्लाम  हिन्दोस्तान  में  आया . जब  हम  ग़ौर  करते  हैं   तो  यह  मालुम   होता  है  के  हजरत  इमाम  हुसैन  की  मोहब्बत  का लामुतनाही  सिलसिला  १३२२  बरस  पहले  से  रोज़े  आशूर  शरू  होता  है , और  यह  सिलसिला  उसवक्त  तक  बाक़ी  रहने  का   यकीन  है  जब  तक  दुनिया  और  खुद  हिन्दोस्तान  का   वजूद  है । 

ये  बात  भी  इंसान  की  फितरत  तस्लीम  कर  चुकी  है  के  रूहानी  पेशवा   जितने   भी  होते   हैं  उनमें  से  अक्सर   को  ना  सिर्फ  गुज़रे  हुए   वाकेअत  का  इल्म  होता  है , बल्कि  आइंदा  पेश  आने  वाले  हालात  भी  उनकी  निगाहों  के  सामने  रहते  हैं । 

हजरत  इमाम  हुसैन  का  भी  ऐसी  ही  बुलंद  हस्तियों  में  शुमार  है , जिनको  आइंदा  ज़माने  के  वाकेआत  वा  हालात  का  मुकम्मल  तौर  से  इल्म  था , और  इसी  बिना  पर  वो  जानते  थे  के  उनके  चाहने  वाले  हिन्दोस्तान  में  ज़रूर  पैदा   होंगे . जैसा  के  उनका  ख्याल  था  , वो   होकर  रहा , और  यहाँ  इस्लाम  के  आने  से  पहले  हिमालय  की  सर्बुलंद  चोटियों  पर  “ हुसैन  पोथी  “ पढ़ी  जाने  लगी . ज़ाहिर  है  के  जब  मुस्लमान  सरज़मीं  इ  भारत  पर  आए   नहीं  थे। ' 

उस  वक़्त  हुसैन  की  पोथी  पढ़ने  वाले  सिवाए   हिन्दुओं  के  और  कौन  हो  सकता  है ? हो  सकता  है  के  उसी  वक़्त  से  सर ज़मीन ए हिंदोस्तान  पर  हुस्सैनी  ब्रह्मण  नज़र  आने  लगे  हों , जिनका  सिलसिला  अब  तक  जारी  है , बल्की  यह  तमाम  ब्रह्मण  मज्हबन  हिन्दू  मज़हब  के  मानने  वाले  होते  हैं  सदियों   से , लेकिन  मोहब्बत  के  उसूल  पर  वो   हुसैन  की  तालीम  को  बहोत  अहमियत  देते  हैं .  यूं  तो  हुस्सैनी  ब्रह्मण  पूरे  मुल्क  में  दिखाई  देते  हैं , मगर  खुसूसियत  से  जम्मू  और  कश्मीर  के  इलाके  में  इनलोगों  की  कसीर  आबादी  है , जो  हमावक़्त  हुस्सैनी  तालीम  पर  अमल  पैर   होना  सबब ए फ़ख़्र जानते  हैं । 

लिहाज़ा  यह  तस्लीम  कर्म  पढ़ेगा  के  हजरत  इमाम   हुसैन  को  हिन्दोस्तान  और  उसके  रहने  वालों  से  जो  मोहब्बत  थी , वो   न  सिर्फ  हकीकत  पर  मबनी  कही  जा  सकती  है , बलके  उनकी  मोहब्बत  के  असरात  उनकी  शहादत  के  कुछ  ही  अरसे  बाद  से  दिलों  में  नुशुओनुम  पाने  लगे . हम   नहीं  कह  सकते  के  इमाम  हुसैन  की  मोहब्बत  को  और  उनके  ग़म  को  हिन्दोस्तान  में  लेने   वाला  कौन  था , जबके  (यहाँ ) मुसलामानों  का  उसवक्त  वजूद  ही  नहीं    था , लिहाज़ा  यह  भी  मानना पढ़ेगा  के  इमाम  हुसैन  के  ग़म  को  या  उनकी  मोहब्बत  को  सरज़मीने  हिन्दोस्तान  पर  पहुँचाने  वाली  वोही  गैबी   ताक़त   थी , जिसने  उनके  ग़म  में  आसमानों  को  खून  के  आंसुओं  से  अश्कबार  किया , और  फ़ज़ाओं  से  या  हुसैन  की  सदाओं  को  बुलंद  कराया । 

और  अब  तो  हुसैन  की  अज़मत , उनकी  शख्सीयत  और  उनकी  बेपनाह  मोहब्बत  का  क्या  कहना . हर  शख्स  अपने  दिमाग   से  समझ  रहा  है , अपने  दिल  से  जान  रहा  है , और  अपनी  आँखों  से  देख  रहा  है , के  सिर्फ  मुसलमान  ही  मुहर्रम  में   उनका  ग़म   नहीं  मानते  , बल्कि   हिन्दू  भी ग़म ए हुसैन में  अजादार  होकर  इसका  सुबूत  देते  हैं  के  अगर  इमाम  हुसैन   ने  आशूर  के  दिन  हिन्दोस्तान  आने   का   इरादा  ज़ाहिर  किया  था , तो  हम  हिन्दुओं  के  दिल  में  भी  उनकी  मोहब्बत  के  जवाबी  असरात  नुमायाँ  होकर  रहते  हैं ।
मुहर्रम  का  चाँद  देखते  ही , ना  सिर्फ  ग़रीबों  के  दिल  और  आँखें  ग़म  ऐ  हुसैन  से  छलक  उठती  हैं , बल्कि हिन्दुओं  की  बड़ी   बड़ी   शख्सियतें  भी  बारगाहे  हुस्सैनी  में  ख़ेराज ए अक़ीदत पेश  किये  बग़ैर  नहीं  रहतीं । अब  तो  खैर  हिन्दोस्तान  में  खुद  मुख्तार  रियासतों  का  वजूद  ही  नहीं  रहा , लेकिन  बीस  बरस  क़ब्ल   तक , ग्वालियर  की  अज़ादारी  और  महाराज  ग्वालियर  की  इमाम  हुसैन  से  अकीदत  इम्तेयाज़ी  हैसियत  रखती  थी ।
अगर  चे  मुहर्रम   अब  भी  ग्वालियर   में  शान  ओ  शौकत  के  साथ  मनाया  जाता  है , और  सिर्फ  ग्वालियर  ही  पर  मुन्हसिर  नहीं  है  इंदौर  का  मुहर्रम  और  वहां   का  ऊंचा  और  वजनी  ताज़िया  दुनिया  के  गोशे  गोशे  में  शोहरत  रखता  है . हैदराबाद  और  जुनूबी  हिन्दोस्तान  में  आशूर  की  रात  को  हुसैन  के  अकीदतमंद  आग  पर  चल  कर  मोहब्बत  का  इज़हार  करते  है , वहां  अब  भी  एक  महाराज  हैं  जो  सब्ज़  लिबास  पहन  कर , और  अलम  हाथ  में   लेकर  जब  तक  दहेकते  ही  अंगारों  पर  दूल्हा  दूल्हा  कहते  ही  क़दम  नहीं  बढ़ाते , तब  तक  कोई  मुस्लमान  अज़ादार  आग  पर पैर   नहीं  रख  सकता। यह  क्या  बात  है  हम  नहीं  जानते , और  हुसैन  के  मुताल्लिक़  बहुत  सी  बातें  ऐसी  हैं  जिसको  चाहे  अक्ल  ना  भी  तस्लीम  करती  हो , मगर  निगाहें   बराबर  दिखती  रहती  हैं । यानी  अगर  हजरत  इमाम  हुसैन  के  ग़म  या  उनकी  अज़ादारी  में  गैबी   ताक़त  ना  शामिल  होती  तो  वो  करामातें  दुनिया  ना  देख  सकती  जो  हर  साल  मुहर्रम  में  दिखती  रहती  है . अगर   आज  सिगरेट    सुलगाने  में  दियासलाई  का  चटका   ऊँगली  में  लग  जाता  है  तो  छाला  पढ़े  बग़ैर  नहीं  रहता , इस  लिए  के  आग  का   काम  जला  देना  ही  होता  है , मगर  दहकते हुए   अंगारों  पर  हुसैन  का  नाम  लेने  के  बाद  रास्ता  चलना   और  पांव  का  ना  जलना , या  छाले ना  पढ़ना , हुसैन  की  करामत  नहीं  तो  और  क्या  है ?
इससे  इनकार  नहीं  किया  जा  सकता  के  हमारे  भारत  में  इराक  से  कम  अज़ादारी  नहीं  होती , यह  सब  कुछ  क्या  है ? उसी  हुसैन  की  मोहब्बत   का  करिश्मा  और  असरात  हैं , जिसने  अपनी  शहादत  के  दिन  हिन्दोस्तान  आने  का  इरादा  ज़ाहिर  किया  था ।
दुनिया  के  हर  मज़हब  में मुक़्तदिर शख्सियतें  गुजरी  हैं , और  किसी  मज़हब  का  दामन  ऐसी  बुलंद  ओ   बाला  हस्तियों  से  ख़ाली  नहीं  है  जिनकी  अजमत  बहार  तौर  मानना  ही  पढ़ती  है। जैसे  के  ईसाईयों  के  हजरत  ईसा , या   यहूदियों  के  हजरत  मूसा . मगर  जितनी  मजाहेब  की  जितनी  भी  काबिले  अजमत  हस्तियाँ  होती  हैं , उनको  सिर्फ   उसी  मज़हब  वाले  अपना  पेशवा  मानते  हैं ,  जिस   मज़हब   में  वो   होती  हैं । अगर  चे  एहतराम  हर  मज़हब  के  ऋषियों , पेशवाओं ,  पैग़ंबरों  का  हर  शख्स  करता  है । लेकिन  इस  हकीकत  से  चाहे  हजरत  इमाम   हुसैन  के  दुश्मन  चश्म  पोशी  कर  लें , मगर  हम  लोग यह  कहे  बग़ैर  नहीं  रह  सकते  के  हजरत  इमाम   हुसैन  की  बैनुल अक़वामी  हैसियत  और  उनकी  ज़ात  से , बग़ैर  इम्तियाज़े  मज्हबो  मिल्लत  हर  शख्स  को  इतनी  इतनी  गहरी  मोहब्बत  है , जितनी  के  किसी  को  किसी   से  नहीं   है . ऐसा  क्यूँ  है , हम  नहीं  कह  सकते , क्यूँ के  बहुत  सी  बातें  ऐसी  भी  होती  हैं  जो  ज़बान  तक  नहीं  आ  सकती  हैं , मगर  दिल  उनको  ज़रूर  महसूस  कर  लेता  है । 

आप  दुनिया  की  किसी  भी  पढ़ी  लिखी  शख्सियत  से  अगर  इमाम  हुसैन  के  मुताल्लिक़  दरयाफ्त  करेंगे  तो  वो इस  बात  का  इकरार  किये  बग़ैर  नहीं  रह  सकेगा  के  यकीनन  हुसैन  अपने नज़रियात  में  तनहा  हैं , और  उनकी  अजमत  को  तस्लीम  करने  वाली  दुनिया  की  हर  कौम , और  दुनिया  का  हर  मज़हब , और  उसके  तालीम  याफ्ता  अफराद  हैं । 

एक  बात  मेरी  समझ  में  और  भी  आती  है , और  वो  यह  के  हिन्दोस्तान   चूंके   मुख्तलिफ  मज़हब  के  मानने  वालों  का   मरकज़  है , और  इमाम  हुसैन  की  शख्सियत  में  ऐसा जज्बा पाया  जाता  है , के  हर  कौम   उनको  खिराजे  अकीदत  पेश  करना  अपना  फ़र्ज़  जानती  है।  और  यह  मैं  पहले  ही  अर्ज़  कर  चुक्का  हूँ  के  हजरत  इमाम  हुसैन  चूंकि  आने  वाले  वाकेआत  का  इल्म  रखते  थे , इसलिए  वो  ज़रूर  जानते  होंगे  के  एक  ज़माना  वो  आने  वाला  है  के  जब  भारत  की  सरज़मीन  पर  दुनिया  के  तमाम  मज़हब  के  मानने  वाले  आबाद  होंगे . इसलिए  हुसैन  चाहते  थे  के  दुनिया  की  हर  कौम  के  अफराद  यह  समझ  लें  के  उनकी  मुसीबतें  और  परेशानियाँ  ऐसी  थीं  जिनसे  हर  इंसान  को  फितरी  लगाव  पैदा  हो  सकता  है , ख्वाह  उसका  ता’अल्लुक़  किसी  मज़हब  से  क्यूँ  ना  हो ।  

इसी  तरह  यज़ीद  के  ज़ुल्म  ओ  जौर  और  उसके  बदनाम  किरदार   को  भी   उसके  बेपनाह  मज़ालिम  की  मौजूदगी  में  समझा  जा   सकता   है . चुनांचे  हकीकत  तो  वोही  होती  है  जिसको  दुनिया  का  हर  वो  शख्स  तस्लीम  करे  जिसका  ताअल्लुक़  ख्वाह  किसी  मज़हब  से  हो।   लिहाज़ा  हिन्दोस्तान  में  चूंके   हर  कौम  ओ  मज़हब  में    इन्साफ  पसंद  हजरात  की  कमी  नहीं  है , इसलिए  हो  सकता  है  के  हजरत  इमाम  हुसैन  ने  इसी  मकसद  को  पेश  ऐ  नज़र  रखते हुए  यह  इरशाद  फ़रमाया  हो  के  वो  हिन्दोस्तान  जाने  का   इरादा  रखते  हैं।  अगर  चे  उनकी  तमन्ना  पूरी  ना  हो  सकी , लेकिन  मशीयत  का  यह  मकसद  ज़रूर  पूरा  हो  गया  के  हिन्दोस्तान  की  सरज़मीन  पर  रहने  वाले  बगैरे   इम्तियाज़े  मज़हब , इमाम हुसैन  को  मोहब्बत  ओ  अकीदत  के  मोती  निछावर  करते  रहते  हैं  और  करते  रहेंगे ।
Read in Roman English
साभार: अखिलेश पाठक , मिर्ज़ा जमाल
नाम

#amankapaigham,4,#avinash vachaspati,1,2020 alwida,1,२७ रजब,2,72 हूर,1,72 hoor,1,अंजना (गुडिया),1,अंधविश्वासी,1,अख्तर खान अकेला,1,अजय कुमार झा,1,अजादारी,2,अनवर जमाल,1,अनैतिक,3,अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस,1,अपर्णा त्रिपाठी "पलाश",1,अमन और शांति,2,अमन का पैगाम,66,अमित शर्मा,1,अयातुल्लाह सीस्तानी,1,अरुण चन्द्र रॉय,1,अलबेला खत्री,1,अश्लीलता,3,असंतुलन,4,अहलिबैत अलैहिमुस्सलाम,1,आंतिरक इच्छाओं,1,इंसान,1,इंसानियत,17,इमाम अली (अ.स),2,इमाम हुसैन,2,इस्मत जैदी,1,इस्लाम,16,ई रिक्शा,1,ईस्लाम छोडो आज़ादी कि राह मदद का वादा,1,एस एम् मासूम,2,एस.एम.मासूम,4,एहसान फरामोशी,7,ऑनर किलिंग,1,ओबामा,1,ओल्ड,1,कट्टरवादी,1,कर्बला,2,कविओं,1,कविता,2,कश्मीरी चाय,1,काबा और कर्बला,1,कुरान,6,कुरीतियों,1,कुसुमेश,1,केवल राम,1,कोरोना,1,कौटुम्बिक व्यभिचार,1,खुशदीप सहगल,1,गाँधी,1,गिरिजेश कुमार,1,गुलाब,1,चाय का मज़ा,1,जागरूकता,1,जिन्न,1,जिहाद,6,जौनपुर,7,डा. रूपचन्द्र शाश्त्री “मयंक”,1,डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट,1,डॉ टी एस दराल,1,तारकेश्वर गिरी,1,तीन तलाक़,1,दरिंदगी,1,दानिश" भारती,1,दीप पाण्डेय (विचार शून्य),1,देश भक्ति,4,दोषारोपण,2,दोहरे चरित्र,1,धर्म और राजनीति,1,धर्मदर्शन,1,धर्मपत्नी,1,धार्मिक,1,नरेन्द्र मोदी,1,नाईट क्लब,1,निर्मला कपिला,1,पकोड़ा,1,पड़ोसी,1,पत्नी से मित्रता,1,परिवार,1,पवन कुमार मिश्र,1,पश्चिमी सभ्यता,1,पूजा शर्मा,1,पेंशन,1,पेंशन एक इस्लामी मशविरा,1,पॉलिटिक्स,1,पोर्न,2,फतवे,2,फ़ातिमा,2,फेसबुक,1,फ्रांस,1,बडबोले,4,बलात्कार,2,बाप,1,बुराईयों,1,बुर्का,1,बुर्क़े,1,बेअसत,1,बेशर्मी मोर्चा,1,बॉय फ्रेंड,1,ब्रिटेन,1,ब्लॉगजगत,1,ब्लॉगर,2,ब्लोग्गेर्स की दुनिया,9,भारतीय संस्कृति,6,भ्रष्ट,1,भ्रष्टाचार,2,भ्रष्टाचार अन्धविश्वासो,1,मस्तिष्क,1,महिला अधिकार,1,महिला जगत,15,माँ,6,मानसिक विकृतियों,1,मीनाक्षी पन्त,1,मुंबई,1,मुकेश कुमार सिन्हा,1,मुफज्ज़रनगर,1,मुसलमान,1,मुहर्रम,5,मैं एक मुस्लमान हूँ ?,1,मैथली शरण गुप्त,1,मैराज ज़ैदी,1,यौन आकर्षण,1,यौन हिंसा,1,रचना बजाज,1,रज़िया राज़,1,रश्मि प्रभा,1,राजनीति,3,राजनीती,5,राजेन्द्र स्वर्णकार,1,रिश्ते नाते,1,रेखा श्रीवास्तव,1,लता हया,1,लविंग जिहाद,1,लालकृष्ण आडवाणी,1,लिव-इन-रिलेशनशिप,1,वंदे मातरम्,1,वंशावली,1,वहम,2,विकास,1,विवाह,2,विवेक रस्तोगी,1,वीणा श्रीवास्तव,1,वेबपोर्टल,1,शक,2,शक या वहम,6,शराब. ब्लू फिल्म,1,शादी या लिवइन रिलेशनशिप,1,शाहनवाज़ सिद्दीकी,1,शिखा वार्ष्णेय,1,शिशु,1,शीराज़ ऐ हिन्द,1,शेयर मार्केट,3,संगीता पुरी,1,संजय भास्कर,1,संपादकीय,7,संस्कार,1,सतीश सक्सेना,1,सदाचार,16,समलैंगिक,1,समस्याएं,1,समाज,9,समाज के दो चेहरे,18,समीर लाल ’समीर,1,सहिफा इ सज्जडिया,2,सामाजिक प्राणी,1,सामाजिक भय,1,सामाजिक मुद्दे,1,साम्‍प्रदायि‍क सद् भाव,1,सास ससुर,1,सिविल डिसओबिडियेन्स,1,सेक्स,2,सेक्स एजुकेशन,1,सोशल मीडिया,2,स्वस्थतम की उत्तरजीविता,1,हज़रत अली,1,हरकीरत हीर,1,हरदीप राणा जी,1,हिंदी ब्लॉग जगत,1,हिजाब,2,हिन्दू,1,aman,2,amankapaigham,103,arvind vidrohi,2,Asia,1,asl islam,2,blog,4,blog jagat,26,blogger,10,bloggers,11,bold,1,Civil disobedience,1,culture,22,current affairs,5,Death,1,Dipawali,1,Diwali,1,dosti,2,dua,1,e richshaw,1,Editorial,201,facebook,4,fathers day,1,featured,21,festival,3,festivals,1,Hadith,1,headline,17,Hindi,5,Hindu,1,history,1,HIV/AIDS,1,http://blogsinmedia.com,1,India,6,jihad,1,jinn,1,karonda,1,Kashi naresh,1,love marriage,2,Lungs cancer,1,Maharashtra,2,mahila jagat,33,Mantra,1,media marketting,1,Mumbai,2,naturopathy,1,Opposing Views,3,parents,2,peace message,59,photo,2,politics,23,porn,2,portfolio,3,power Game,1,Race chart,1,Religion and Spirituality,60,rizq,1,rose,1,s.m.masoom,7,S.M.MASUM,4,samaj,2,satish kaushik,1,shajra,1,shajra sadat,1,Shirdi,1,slut march,1,social issues,53,social media,3,society,56,sport,1,suroor fatima,1,talents,1,tea time,1,Teachings,22,The News International,2,tiger woods,1,vandana gupta,1,Varanasi,1,whatsapp,1,wikileaks,1,women issues,3,world,1,world issues,4,yoga,1,zeeshan zaidi,1,
ltr
item
S.M.MAsoom: पेश ऐ खिदमत है विश्वनाथ प्रसाद साहेब माथुर * लखनवी का १३८३ हिजरी मैं लिखा यह मशहूर लेख़।
पेश ऐ खिदमत है विश्वनाथ प्रसाद साहेब माथुर * लखनवी का १३८३ हिजरी मैं लिखा यह मशहूर लेख़।
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhB2MVnt9d4BP3IfPkx8PvlNm7g56jiNs8CFKNWJ5MuCqHpgU6zUlFXLVWV6PtTT4OMG8sSfW4LAMkyddmqLXTK7-nyupPBFh7VD9Fb-MWRV-7UiCY9L0Kybo48pcHEfsYhmAjnC1IUHB4//?imgmax=800
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhB2MVnt9d4BP3IfPkx8PvlNm7g56jiNs8CFKNWJ5MuCqHpgU6zUlFXLVWV6PtTT4OMG8sSfW4LAMkyddmqLXTK7-nyupPBFh7VD9Fb-MWRV-7UiCY9L0Kybo48pcHEfsYhmAjnC1IUHB4/s72-c/?imgmax=800
S.M.MAsoom
https://www.smmasoom.com/2010/07/blog-post_15.html
https://www.smmasoom.com/
https://www.smmasoom.com/
https://www.smmasoom.com/2010/07/blog-post_15.html
true
8797138421869493963
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS CONTENT IS PREMIUM Please share to unlock Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy