" खुशियाँ लुटा के जीने का इस ढंग है ज़िंदगी “समीर लाल ( उड़नतश्तरी) “ यह नाम इस ब्लॉगजगत मैं किसी के तार्रुफ़ का मुहताज नहीं है ....
"खुशियाँ लुटा के जीने का इस ढंग है ज़िंदगी
“समीर लाल (उड़नतश्तरी) “ यह नाम इस ब्लॉगजगत मैं किसी के तार्रुफ़ का मुहताज नहीं है . इनके अलफ़ाज़ "खुशियाँ लुटा के जीने का इस ढंग है ज़िंदगी " ही काफी है, इनके तार्रुफ़ के लिए.
पेश ए खिदमत है समीर लाल "समीर" अमन के पैग़ाम पे सितारों की तरह चमकें की दूसरी पेशकश…… 
समीर जी अपने शांति सन्देश मैं कहते हैं :
हर दिल की यह चाहत है कि चहु ओर अमन कायम हो-फिर आखिर वो कौन हैं जो अमन कायम नहीं होने देते, चैन से रहने नहीं देते. चंद सिरफिरे सियासी लोगों के स्वार्थ भरे मंसूबे ठीक वैसे ही कामयाब हो जाते हैं जैसे एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है या खराब मुद्रा अच्छी मुद्रा को चलन के बाहर कर देती है.
हमें इन सिरफिरों के मंसूबों को मिलकर नेस्तनाबूत करना होगा. समझदारी से काम लेना होगा. स्वविवेक और समझदारी से चलने पर एक दिन हर ओर अमन और चैन कायम होगा, यह मेरा विश्वास है. अनेक शुभकामनाएँ.
वो देखो कौन बैठा, किस्मतों को बांचता है
उसे कैसे बतायें, उसका घर भी कांच का है.
नहीं यूँ देखकर मचलो, चमक ये चांद तारों सी
जरा सा तुम संभलना, शोला इक ये आंच का है.
वो मेरा रहनुमा था, उसको मैने अपना जाना था,
बचा दी शह तो बेशक, शक मगर अब मात का है.
पता है ऐब कितने हैं, हमारी ही सियासत में
मगर कब कौन अपना ही गिरेबां झांकता है.
यूँ सहमा सा खड़ा था, कौन डरके सामने मेरे
जरा सा गौर से देखा, तो चेहरा आपका है.
चलो कुछ फैसला लेलें, अमन की फिर बहाली का
वो मेरे साथ न आये, जो डर से कांपता है.
थमाई डोर जिसको थी, अमन की और हिफाजत की
उसी को देखिये, वो देश को यूँ बांटता है.
दिखे है आसमां इक सा, इधर से उस किनारे तक
न जाने किस तरह वो अपनी सरहद नापता है.
कफ़न है आसुओं का और शहीदों की मज़ारें है
बचे है फूल कितने अब, बागबां ये आंकता है.
समीर लाल ’समीर
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हज़रत अली (अ.स) ने कहा: यह ना देखो की कौन कह रहा है, यह देखो कि क्या कह रहा है.