बनारस से मेरा बहुत ही गहरा रिश्ता रहा है. सुबहे बनारस दशाश्वमेघ घाट पे बैठ के देखना मेरा शौक रहा है. आज अमन के पैग़ाम पे सितारों की तरह च...
बनारस से मेरा बहुत ही गहरा रिश्ता रहा है. सुबहे बनारस दशाश्वमेघ घाट पे बैठ के देखना मेरा शौक रहा है. आज अमन के पैग़ाम पे सितारों की तरह चमकें की पांचवी श्रेणी मैं पेश हैं ...देवेन्द्र पाण्डेय जी बनारस से.... और ….विवेक रस्तोगी जी मुंबई से
दुश्मन.. !
तड़पता है मेरे भीतर
कोई
मुझसा
मचलता है बार-बार
बच्चों की तरह
जिद करता है
हर उस बात के लिए
जो मुझे अच्छी नहीं लगती।
कोई
मुझसा
मचलता है बार-बार
बच्चों की तरह
जिद करता है
हर उस बात के लिए
जो मुझे अच्छी नहीं लगती।
वह
सफेद दाढ़ी वाले मौलाना को भी
साधू समझता है !
जबकि मैं उसे समझाता हूँ ..
'हिन्दू' ही साधू होते हैं
वह तो 'मुसलमान' है !
वह
गंदे-रोते बच्चे को देख
गोदी में उठाकर चुप कराना चाहता है
जो सड़क के किनारे
भूखा, नंगा, भिखारी सा दिखता है !
मैं उसे डांटता हूँ
नहीं s s s
वह 'मलेच्छ' है।
वह
करांची में
आतंकवादियों के धमाके से मारे गए निर्दोष लोगों के लिए भी
उतना ही रोता है
जितना
कश्मीर के अपने लोगों के लिए !
मैं उसे समझाता हूँ
वह शत्रु देश है
वहाँ के लोगों को तो मरना ही चाहिए।
मेरा समझाना बेकार
मेरा डांटना बेअसर
वह उल्टे मुझ पर ही हंसता
मुझे ऐसी नज़रों से देखता है
जैसे मैं ही महामूर्ख हूँ !
अजीब है वह
हर उस रास्ते पर चलने के लिए कहता है
जो सीधी नहीं हैं
हर उस काम के लिए ज़िद करता है
जिससे मुझे हानि और दूसरों को लाभ हो !
मै आजतक नहीं समझ पाया
आखिर उसे
मुझसे क्या दुश्मनी है
……………देवेन्द्र पाण्डेय
हमारे विवेक रस्तोगी भाई मुंबई से अमन के पैग़ाम देते हुए कहते हैं :

अमन और शांति का नाम लेते ही सबसे पहले हमारे आगे सांप्रदायिक विद्वेष दिखने लगता है। जबकि अमन और शांति तो घर में भी नहीं है। इस सोच के पीछे हमारा इतिहास जिम्मेदार है, नहीं तो धर्म तो केवल एक है और वह है मानव धर्म। मानव ने धर्मों में अपने आपको वर्गीकरण कर बांट दिया।
अमन और शांति की हवा बनाये रखने के लिये हमें अपने मन में प्रेम और परस्पर सद्भाव की मशाल जलानी होगी, जो किसी ध्रर्म से संबंधित नहीं है। पहले अमन और शांति हमें अपने अंदर लाना होगा, फ़िर समाज में इस क्रांति को फ़ैलाना होगा। चाहे कोई भी कितनी भी कोशिश कर ले अमन और शांति को खत्म करने की परंतु हमें(मानव) अपना मानव धर्म निभाना चाहिये।
……….विवेक रस्तोगी