मैं एक गृहिणी हूँ। मुझे पढ़ने-लिखने का शौक है तथा झूठ से मुझे सख्त नफरत है। मैं जो भी महसूस करती हूँ, निर्भयता से उसे लिखती हूँ। अपनी प...

मैं एक गृहिणी हूँ। मुझे पढ़ने-लिखने का शौक है तथा झूठ से मुझे सख्त नफरत है। मैं जो भी महसूस करती हूँ, निर्भयता से उसे लिखती हूँ। अपनी प्रशंसा करना मुझे आता नही इसलिए मुझे अपने बारे में सभी मित्रों की टिप्पणियों पर कोई एतराज भी नही होता है। मेरा ब्लॉग पढ़कर आप नि:संकोच मेरी त्रुटियों को अवश्य बताएँ। मैं विश्वास दिलाती हूँ कि हरेक ब्लॉगर मित्र के अच्छे स्रजन की अवश्य सराहना करूँगी। ज़ाल-जगतरूपी महासागर की मैं तो मात्र एक अकिंचन बून्द हूँ। आपके आशीर्वाद की आकांक्षिणी- "…………..श्रीमती वन्दना गुप्ता"
आज पेश ए खिदमत हैं हर दिल अज़ीज़ श्रीमती वन्दना गुप्ता" जी कि एक बेहतरीन रचना जो उन्होंने अमन के पैग़ाम के लिए भेजी है. वंदना जी कि एक कविता कि पंक्तियाँ मुझे कभी नहीं भूलती, आप भी पढ़ें.
अब ख्वाब आँखों मैं कहाँ सजते हैं,
ख्वाब से पहले ही इंसान बदल जाते हैं.
पैगाम -ए-अमन
अमन अमन अमन
बस एक शब्द
उसके बाद इसका अर्थ
जानते हुए भी
ना स्वीकारना
यही हमारी
मानसिकता का
परिचायक बना
बस एक शब्द
उसके बाद इसका अर्थ
जानते हुए भी
ना स्वीकारना
यही हमारी
मानसिकता का
परिचायक बना
खुद से आगे कभी
सोच को ना
बढ़ने दिया
देश समाज को
हमने क्या दिया
ये ना कभी
विश्लेषण किया
समाज से सिर्फ चाहा
देने की बारी
अपना परिवार ही दिखा
अपनी स्वार्थपरता से आगे
ना हमको कुछ दिखा
और आज हम
अमन अमन चिल्लाते हैं
जो बीज अतीत ने बोये थे
उनकी ही आज भी
फसल उगाते हैं
फिर कैसे अमन कायम हो
जब तक सोच ना
पूरी मुकम्मल हो
जब तक पीढ़ियों में
अमन का बीज ना
रोपित हो
सिर्फ चाहतों से
कुछ नहीं हुआ करता
चाहतें कुर्बानी चाहती हैं
कुछ स्वार्थों से ऊपर
उठना होगा
अपने साथ देश
और समाज के लिए
भी कुछ करना होगा
देश और समाज को
एक इकाई मानना होगा
ज़िन्दगी की धुरी बनाना होगा
फिर अमन का पैगाम
फैलाना होगा
तब सच में अमन की
फसलें लहलहायेंगी
हर चेहरे पर सुकून की
कलियाँ मुस्कुरायेंगी
सादर आभार
वन्दना गुप्ता
३१/०३/२०११