बचपन से सुनता आया हूँ अगेर कोई शख्स अपने मर्हूमीन को सपने में हँसता या खुश देख ले तोह समझ लो उसके भी जाने के दिन आ गए. इस बात में कितनी...
बचपन से सुनता आया हूँ अगेर कोई शख्स अपने मर्हूमीन को सपने में हँसता या खुश देख ले तोह समझ लो उसके भी जाने के दिन आ गए. इस बात में कितनी हकीकत है में नहीं जानता लेकिन एक सोंच है जो कुछ हलचल मचा रही थी सोंचा कह ही डालूँ .मेरा ख्याल है मरने वाला अपने रिश्तेदार के वहाँ आने से खुश होता है. लेकिन मुझे यकीन है की अगर वही रिश्तेदार जिंदा होता, तोह अपने रिश्तेदार के इन दुनिया से जाने की खबर से दुखी हो जाता.
यह बदलाव क्यूं? क्या जो इस दुनिया से चले गए , वोह जान गए की यह दुनिया भी एक सजा है, जो नरक से कम नहीं और अपने रिश्तेदार की मुक्ति और मिलन से प्रसन होने लगे ?
क्या इस दुनिया में रहने वाले को अपने कर्मों की वजह से उस दुनिया में नरक दीखता है जो किसी के मरने की खबर से या शक से दुखी हो जाते हैं?
दुनिया में रहना ख़ुशी की बात है या दुनिया से चले जाना? इसी प्रकार के ख्यालात आते रहे कभी दुनिया में रहना अच्छा लगा कभी लगा यह दुनिया सच में नरक से कम नहीं, यह नफरत, यह खून खराबा, यह नफ्सा नफ्सी, यह धोका फरेब, यह धर्म के नाम पे लड़ना , यह दोस्ती के नाम पे धोका चले जाना ही बेहतर है.
जब जाना चाहा तो दोस्त, रिश्तेदार, अपने सब याद आये दिल न चाहा उनसे दूर जाने का जाने का. एक एहसास सा पैदा हुआ , क्या हुआ अगर जो दोस्त धोका देता है, क्या हुआ अगेर रिश्तेदार भला नहीं करता? क्या हुआ अगेर एक भाई दुसरे भाई की तरकी पे खुश नहीं होता?
क्यूं न हम ही सबसे पहले खुद को बदल लें, जब सब अमन, सुकून और मुहब्बत सभी चाहते हैं तोह मुझे यकीन है दुसरे भी ज़रूर बदलेंगे.
जब यह दुनिया एक दिन छोडनी ही है तोह क्यूं न अपने पीछे चाहने वाले, मुहब्बत करने वाले छोड़ जाएं, जिस से हम मरने के बाद भी जिंदा रह सकें.
इस दुनिया को स्वर्ग बना के जाओ तब हकीकत समझ में आएगी की एक नेक इंसान के जाने से दुनिया वाले दुखी होते हैं क्यूँ? और उसके मरहूम रिश्तेदार उसकी सवर्ग में आने की खबर से खुश होते हैं क्यूँ?