कुरान की आयात सूरए अस्र का हिंदी अनुवाद कुछ ऐसा है. शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो रहमान और रहीम है। 1- समय की सौगंध। 2- पूरी मानवता घाट...
कुरान की आयात सूरए अस्र का हिंदी अनुवाद कुछ ऐसा है. शुरू करता हूँ अल्लाह के नाम से जो रहमान और रहीम है। 1- समय की सौगंध। 2- पूरी मानवता घाटे मे है ।3- उन लोगों को छोड़ कर जिन्होंने ईमान लाने के बाद नेक काम किये और आपस मे एक दूसरे को हक़ और सब्र की नसीहत की।
यह आयात साफ़ साफ़ कह रही है की किसी इंसान का सिर्फ ईमान ले आना या कलेमा पढ़ के खुद को मुसलमान कहलवा लेना काफी नहीं है. अगर उसका अमाल, उसके काम, इस्लामिक कानून के मुताबिक नहीं हुए तोह वोह घाटे में ही रहेगा. इसको इस तरह समझ लें की नमाज़ , रोज़ा हज ज़कात, अम्र बिल मारूफ ... यह सब अहकाम उसके लिये हैं जो ईमान ले आया और खुद को मुसलमान कहलवाने लगा. जो ग़ैर मुस्लिम है उसके लिए यह कानून नहीं ,उसने कोई हज्ज नहीं किया न कोई पैसा खर्च हुआ, न ज़हमत हुई मक्का तक जाने की, अब अगेर उसको कोई सजा मिली भी तोह कम से कम माली नुकसान से तोह बच गया. दूसरी तरफ एक मुसलमान भाई हैं, नमाज़ भी पढ़ते हैं, रोज़ा और हज करने की ज़हमत भी उठाते हैं. लेकिन हिजाब के खिलाफ हैं, पैसे का मसला आ जाए तो बेईमान होते वक़्त नहीं लगता. इस तरह के इंसान जो ईमान ले आने के बाद न तोह नेक काम करते हैं और न ही आपस मे एक दूसरे को हक़ और सब्र की नसीहत की, यकीनन घाटे में ही रहेंगे. इनका घाटा दुनिया में भी है और आखिरत में तोह अमाल न होने का घाटा उठाना ही है।
इस आयात से उनलोगों को नसीहत लेनी चाहिए जो खुद को मुसलमान तो कहते हैं लेकिन कुरान के ही बताए कानून के खिलाफ मोर्चा ख़ोल के बैठे हैं. फतवों पे नौजवान अमल न करे तोह यह खुश हो जाते हैं. यह नसीहत नहीं करते की फतवा उस से मांगो जो कुरान का हदीस का इल्म रखता हो. जाहिलों के मुनाफिकों के फतवों ने ही इस्लाम को बदनाम कर रखा है आज. में ऐसे सुधारवादी नज़रिए को फैलाने वालों से येही कहना चाहूँगा की सुधार लाओ मुसलमानों में इल्म के ज़रिये से , न की कुरान के कानून के खिलाफ चलने की नसीहत कर के. हक़ कुरान का कानून है, जो की बहुत आसान है, उसको समझो और लोगों को समझाओ. लोगों को हक़ की नसीहत करो वरना घाटे में रहोगे।
जाहिल कौम के ठेकेदारों के फतवे के खिलाफ अगर गैर मुस्लिम बोलता है,और इस्लाम के कानून को गलत कहता है तो यह उसका दोष नहीं क्यूंकि कुरान और हदीस में क्या है वोह नहीं जनता. वोह तो कुछ जाहिल और कट्टरवादी मुसलमानों की हरकतों को इस्लाम समझ बैठा है।
लेकिन उनको क्या हो गया है जो खुद को मुस्लमान भी कहते हैं और यह तमीज भी नहीं रखते की कौन कुरान का इल्म रखता है? किसको फतवा देने का हक है ? और जाहिलों के फतवों को सही बता के इस्लाम में ही सुधार लेन की बातें करते हैं. इस्लाम को जाहिल दुनिया परस्त मुल्लाओं से आजाद करो तब ही कहीं जा के असल इस्लाम जो की समानता, सहयोग, भाईचारा, समर्पण, त्याग, संतोष तथा क्षमा और बलिदान का पैग़ाम देता है सामने आएगा.
लेखक हरियाणा साहित्य अकादमी, शासी परिषद के सदस्य तनवीर जाफरी साहेब की बात से में सहमत हूँ "इस्लाम धर्म का लगता है कुछ धुर इस्लाम विरोधी विचारधारा रखने वालों ने संभवत: किसी बड़ी इस्लाम विरोधी साजिश के तहत अपहरण कर लिया है।"
आज इस बात की अधिक ज़रुरत है की सच्चा मुसलमान कौन है यह कुरान और मोहम्मद (स.अ.व) और उनके घराने की सीरत से पहचाना जाए और उसे दूसरी कौम के लोगों तक भी पहुँचाया जाए ,जिस से लोगों के दिलूँ में आपस में मुहब्बत और भाईचारा पैदा हो और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चलने वाली इस्लाम विरोधी साजिश ,जिसका मकसद मुसलमानों के लिए लोगों के दिलों में नफरत पैदा करना है ,बेनकाब हो जाए और इंसानियत की विजय हो।
S.M.MAsum
यह आयात साफ़ साफ़ कह रही है की किसी इंसान का सिर्फ ईमान ले आना या कलेमा पढ़ के खुद को मुसलमान कहलवा लेना काफी नहीं है. अगर उसका अमाल, उसके काम, इस्लामिक कानून के मुताबिक नहीं हुए तोह वोह घाटे में ही रहेगा. इसको इस तरह समझ लें की नमाज़ , रोज़ा हज ज़कात, अम्र बिल मारूफ ... यह सब अहकाम उसके लिये हैं जो ईमान ले आया और खुद को मुसलमान कहलवाने लगा. जो ग़ैर मुस्लिम है उसके लिए यह कानून नहीं ,उसने कोई हज्ज नहीं किया न कोई पैसा खर्च हुआ, न ज़हमत हुई मक्का तक जाने की, अब अगेर उसको कोई सजा मिली भी तोह कम से कम माली नुकसान से तोह बच गया. दूसरी तरफ एक मुसलमान भाई हैं, नमाज़ भी पढ़ते हैं, रोज़ा और हज करने की ज़हमत भी उठाते हैं. लेकिन हिजाब के खिलाफ हैं, पैसे का मसला आ जाए तो बेईमान होते वक़्त नहीं लगता. इस तरह के इंसान जो ईमान ले आने के बाद न तोह नेक काम करते हैं और न ही आपस मे एक दूसरे को हक़ और सब्र की नसीहत की, यकीनन घाटे में ही रहेंगे. इनका घाटा दुनिया में भी है और आखिरत में तोह अमाल न होने का घाटा उठाना ही है।
इस आयात से उनलोगों को नसीहत लेनी चाहिए जो खुद को मुसलमान तो कहते हैं लेकिन कुरान के ही बताए कानून के खिलाफ मोर्चा ख़ोल के बैठे हैं. फतवों पे नौजवान अमल न करे तोह यह खुश हो जाते हैं. यह नसीहत नहीं करते की फतवा उस से मांगो जो कुरान का हदीस का इल्म रखता हो. जाहिलों के मुनाफिकों के फतवों ने ही इस्लाम को बदनाम कर रखा है आज. में ऐसे सुधारवादी नज़रिए को फैलाने वालों से येही कहना चाहूँगा की सुधार लाओ मुसलमानों में इल्म के ज़रिये से , न की कुरान के कानून के खिलाफ चलने की नसीहत कर के. हक़ कुरान का कानून है, जो की बहुत आसान है, उसको समझो और लोगों को समझाओ. लोगों को हक़ की नसीहत करो वरना घाटे में रहोगे।
जाहिल कौम के ठेकेदारों के फतवे के खिलाफ अगर गैर मुस्लिम बोलता है,और इस्लाम के कानून को गलत कहता है तो यह उसका दोष नहीं क्यूंकि कुरान और हदीस में क्या है वोह नहीं जनता. वोह तो कुछ जाहिल और कट्टरवादी मुसलमानों की हरकतों को इस्लाम समझ बैठा है।
लेकिन उनको क्या हो गया है जो खुद को मुस्लमान भी कहते हैं और यह तमीज भी नहीं रखते की कौन कुरान का इल्म रखता है? किसको फतवा देने का हक है ? और जाहिलों के फतवों को सही बता के इस्लाम में ही सुधार लेन की बातें करते हैं. इस्लाम को जाहिल दुनिया परस्त मुल्लाओं से आजाद करो तब ही कहीं जा के असल इस्लाम जो की समानता, सहयोग, भाईचारा, समर्पण, त्याग, संतोष तथा क्षमा और बलिदान का पैग़ाम देता है सामने आएगा.
लेखक हरियाणा साहित्य अकादमी, शासी परिषद के सदस्य तनवीर जाफरी साहेब की बात से में सहमत हूँ "इस्लाम धर्म का लगता है कुछ धुर इस्लाम विरोधी विचारधारा रखने वालों ने संभवत: किसी बड़ी इस्लाम विरोधी साजिश के तहत अपहरण कर लिया है।"
आज इस बात की अधिक ज़रुरत है की सच्चा मुसलमान कौन है यह कुरान और मोहम्मद (स.अ.व) और उनके घराने की सीरत से पहचाना जाए और उसे दूसरी कौम के लोगों तक भी पहुँचाया जाए ,जिस से लोगों के दिलूँ में आपस में मुहब्बत और भाईचारा पैदा हो और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चलने वाली इस्लाम विरोधी साजिश ,जिसका मकसद मुसलमानों के लिए लोगों के दिलों में नफरत पैदा करना है ,बेनकाब हो जाए और इंसानियत की विजय हो।
S.M.MAsum