हमारे एक ब्लॉगर भाई अनवर जमाल साहब ने इस बात पे ज़ोर दिया की मैं हज़रत अली (अ.स) की शहादत कैसे हुई इस बात पे कुछ रौशनी डालूँ. हजरत अली (...
हमारे एक ब्लॉगर भाई अनवर जमाल साहब ने इस बात पे ज़ोर दिया की मैं हज़रत अली (अ.स) की शहादत कैसे हुई इस बात पे कुछ रौशनी डालूँ. हजरत अली (र अ) की शहादत से पहले , ज़रा उनका तार्रुफ़ भी करवा दूं, जिस से लोग समझ सकें किसकी बात हो रही है.
हज़रत अली इब्ने अबी तालिब का जन्म रजब मास की 13वी तारीख (17 मार्च 600)को हिजरत से 23 वर्ष पूर्व मक्का शहर के विश्व विख्यात व अतिपवित्र स्थान काबे मे हुआ था। आप (6) वर्ष की आयु तक अपने माता पिता के साथ रहे। बाद मे आदरनीय पैगम्बर हज़रतअली को अपने घर ले गये। इस प्रकार सात वर्षों तक हज़रतअली(र अ) पैगम्बर (स.अ.व) की देखरेख मे प्रशिक्षित हुए। हज़रतअली ने अपने एक प्रवचन मे कहा कि मैं पैगम्बर के पीछे पीछे इस तरह चलता था जैसे ऊँटनी का बच्चा अपनी माँ के पीछे चलता है। पैगम्बर प्रत्येक दिन मुझे एक सद्व्यवहार सिखाते व उसका अनुसरन करने को कहते थे।
जब आदरनीय मुहम्मद (स0)ने अपने पैगमबर होने की घोषणा की तो हज़रतअली(र अ) वह प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने आपके पैगम्बर होने को स्वीकार किया तथा आप पर ईमान लाए।
हजरत अली (अ.स) सभी मुसलमानों के खलीफा हैं . हज़रत पैगम्बर ने अपने स्वर्गवास से तीन मास पूर्व हज से लौटते समय ग़दीरे ख़ुम नामक स्थान पर अल्लाह के आदेश से सन् 10 हिजरी मे ज़िलहिज्जा मास की 18वी तिथि को हज़रतअली को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया।
हज़रत अली (अ.स) केवल पांच साल खलीफा रहे और अपने पाँच वर्षीय शासन काल मे विभिन्न युद्धों, विद्रोहों, षड़यन्त्रों, कठिनाईयों व समाज मे फैली विमुख्ताओं का सामना किया।
इमाम अली (अ.स) इन्साफ करने मैं बहुत सख्त थे , जिसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है की, जब शाम (सिरिया) के बादशाह से किसी ने कहा की अली (अ.स) युद्ध कर के खलीफा के पद से हटा दो तो उसने कहा इनकी अदालत , इन्साफ इनकी बादशाहत को खुद ख़त्म कर देगा।
इमाम अली राजकोष का विशेष ध्यान रखते थे, वह किसी को भी उसके हक़ से अधिक नही देते थे। वह राजकोष को सार्वजनिक सम्पत्ति मानते थे। तथा राजकोष के धन को अपने नीजी कार्यो मे व्यय करने को जनता के घरों मे चोरी करने के समान मानते थे। एक बार आप रात्री के समय राजकोष के कार्यों मे वयस्त थे। उसी समय आपका एक मित्र भेंट के लिए आया जब वह बैठ गया और बातें करने लगा तो आपने जलते हुए चिराग़ (दिआ) को बुझा दिया। और अंधेरे मे बैठकर बाते करने लगे। आपके मित्र ने चिराग़ बुझाने का कारण पूछा तो आपने उत्तर दिया कि यह चिराग़ राजकोष का है।और आपसे बातचीत मेरा व्यक्तिगत कार्य है अतः इसको मैं अपने व्यक्तिगत कार्य के लिए प्रयोग नही कर सकता। क्योंकि ऐसा करना समस्त जनता के साथ विश्वासघात है।
हज़रत अली अलैहिस्सलाम सदा ही कहा करते थे कि मेरी रचना केवल इसलिए नहीं की गई है कि चौपायों की भांति अच्छी खाद्य सामग्री मुझे अपने में व्यस्त कर ले या सांसारिक चमक-दमक की ओर मैं आकर्षित हो जाऊं और उसके जाल में फंस जाऊं। मानव जीवन का मूल्य अमर स्वर्ग के अतिरिक्त नहीं है अतः उसे सस्ते दामों पर न बेचें।
उन्होंने अपने अस्तित्व के विभिन्न आयामों को इस प्रकार से विकसित किया था कि साहस, लोगों के साथ सुव्यवहार, न्याय, पवित्रता व ईश्वरीय भय एवं उपासना की अन्तिम सीमा तक पहुंच गए। हज़रत अली अलैहिस्सलामअपने जीवन के प्रत्येक चरण में इस बिंदु पर विशेष रूप से बल देते थे किमनुष्य का आत्मसम्मान उसके अस्तित्व की वह महान विशेषता है जिसको कसी भी स्थिति में ठेस नहीं लगनी चाहिए अतः समाजों की राजनैतिक पद्धतियों एवं राजनेताओं के लिए यह आवश्यक है कि मानव सम्मान के मार्गों को समतल करे। उन्होंने अपने शासनकाल में एसा ही किया और आत्मसम्मान को मिटाने वाली बुराइयों जैसे चापलूसी और चाटुकारिता के विरूद्ध कड़ा संघर्ष किया। इमाम अली अलैहिस्सलाम अपने अधीन राज्यपालों को उपदेश एवं आदेश देते हुए कहते हैं कि अपने पास उपस्थित लोगों को एसा बनाओ कि तुम्हारी प्रशंसा में न लगे रहें और अकारण ही तुम्हें प्रसन्न न करें। एक दिन इमाम के भाषण के दौरान एक व्यक्ति उठा और वह उनकी प्रशंसा करने लगा। इमाम अली अलैहिस्सलाम ने कहा कि मेरी प्रशंसा न करो ताकि मैं लोगों के जो अधिकार पूरे नहीं हुए हैं उन्हें पूरा कर सकूं और जो अनिवार्य कार्य मेरे ज़िम्मे है उन्हें कर सकूं।
हज़रत अली ने वैज्ञानिक जानकारियों को बहुत ही रोचक ढंग से आम आदमी तक पहुँचाया.
एक प्रश्नकर्ता ने उनसे सूर्य की पृथ्वी से दूरी पूछी तो जवाब में बताया की एक अरबी घोड़ा पांच सौ सालों में जितनी दूरी तय करेगा वही सूर्य की पृथ्वी से दूरी है. उनके इस कथन के चौदह सौ सालों बाद वैज्ञानिकों ने जब यह दूरी नापी तो 149600000 किलोमीटर पाई गई. अगर अरबी घोडे की औसत चाल 35 किमी/घंटा ली जाए तो यही दूरी निकलती है।
इसी तरह एक बार अंडे देने वाले और बच्चे देने वाले जानवरों में फर्क इस तरह बताया कि जिनके कान बाहर की तरफ होते हैं वे बच्चे देते हैं और जिनके कान अन्दर की तरफ होते हैं वे अंडे देते हैं।
हज़रत इमाम अली की शहादत (स्वर्गवास)
हज़रत इमाम अली सन् 40 हिजरी के रमज़ान मास की 19वी तिथि को जब सुबह की नमाज़ पढ़ने के लिए गये तो सजदा करते समय अब्दुर्रहमान पुत्र मुलजिम ने आपके ऊपर ज़हर पिलाई तलवार से हमला किया जिससे आप का सर बहुत अधिक घायल हो गया ,जो कि उनकी म्रत्यु का कारण बना ।
उस रात भी हज़रत अली अलैहिस्सलाम रोटी तथा खजूर की बोरी, निर्धनों और अनाथों के घरों ले गए। अन्तिम बोरी पहुंचाकर जब वे घर पहुंचे तो ईश्वर की उपासना की तैयारी में लग गए। "यनाबीउल मवद्दत" नामक पुस्तक में अल्लामा कुन्दूज़ी लिखते हैं कि शहादत की पूर्व रात्रि में हज़रत अली अलैहिस्सलाम आकाश की ओर बार-बार देखते और कहते थे कि ईश्वर की सौगंध मैं झूठ नहीं कहता और मुझसे झूठ नहीं बताया गया है। सच यह है कि यह वही रात है जिसका मुझको वचन दिया गया है।
भोर के धुंधलके में अज़ान की आवाज़ नगर के वातावरण में गूंज उठी। हज़रत अली अलैहिस्सलाम धीरे से उठे और मस्जिद की ओर बढ़ने लगे। जब वे मस्जिद में प्रविष्ठ हुए तो देखा कि इब्ने मल्जिम सो रहा है। आपने उसे जगाया और फिर वे मेहराब की ओर गए। वहां पर आपने नमाज़ आरंभ की। अल्लाहो अकबर अर्थात ईश्वर उससे बड़ा है कि उसकी प्रशंसा की जा सके। मस्जिद में उपस्थित लोग नमाज़ की सुव्यवस्थित तथा समान पक्तियों में हज़रत अली अलैहिस्सलाम के पीछे खड़े हो गए। हज़रत अली अलैहिस्सलाम के चेहेर की शान्ति एवं गंभीरता उस दिन उनके मन को चिन्तित कर रही थी। हज़रत अली अलैहिस्सलाम नमाज़ पढ़ते हुए सज्दे मेंगए। उनके पीछे खड़े नमाज़ियों ने भी सज्दा किया किंतु हज़रत अलीअलैहिस्सलाम के ठीक पीछे खड़े उस पथभ्रष्ट ने ईश्वर के समक्ष सिर नहींझुकाया जिसके मन में शैतान बसेरा किये हुए था। इब्ने मुल्जिम ने अपनेवस्त्रों में छिपी तलावार को अचानक ही निकाला। शैतान उसके मन पर पूरी तरह नियंत्रण पा चुका था। दूसरी ओर अली अपने पालनहार की याद में डूबे हुए उसका गुणगान कर रहे थे। अचानक ही विष में बुझी तलवार ऊपर उठी और पूरी शक्ति से वह हज़रत अली अलैहिस्सलाम के सिर पर पड़ी तथा माथे तक उतर गई। पूरी मस्जिद का वातावरण हज़रत अली के इस वाक्य से गूंज उठा कि फ़ुज़्तो व रब्बिलकाबा अर्थात ईश्वर की सौगंध में सफल हो गया।
एक शोर मच गया लोगों में की अली (अ.स) मारे गए. कुछ ही क्षणों में वार करने वाले अब्दुर्रहमान इब्ने मुलजिम को पकड़ लिया गया और उसे इमाम के सामने लाया गया। इमाम अली अलैहिस्सलाम ने जब उसकी भयभीत सूरत देखी तो अपने सुपुत्र इमाम हसन से कहा, उसे अपने खाने-पीने की वस्तुएं दो। यदि मैं संसार से चला गया तो उससे मेरा प्रतिशोध लो अन्यथा मैंबेहतर समझता हूं कि उसके साथ क्या करूं और क्षमा करना मेरे लिए उत्तम है। हजरत अली (अ .स) ने कहा इस पे ज़ुल्म ना करना. इसको कस के रस्सी से ना बांधना. इतना अली (अ.स) को अपने दुश्मन का भी इतना ख्याल था।
तलवार का ज़ख्म गहरा था, ज़हर असर दिखा गया और दो दिन पश्चात रमज़ान मास की 21वी रात्री मे नमाज़े सुबह से पूर्व आपने इस संसार को त्याग दिया। हज़रत अली (अ.स) का वोह घर जहाँ उनको गुसल ओ कफ़न दिया गया था।
आपकी शहादत के समय स्थिति बहुत भयंकर थी। चारो ओर शत्रुता व्याप्त थी तथा यह भय था कि शत्रु कब्र खोदकर लाश को निकाल सकते हैँ। अतः इस लिए आपको बहुत ही गुप्त रूप से दफ़्न कर दिया गया।एक लम्बे समय तक आपके परिवार व घनिष्ठ मित्रों के अतिरिक्त कोई भी आपकी समाधि से परिचित नही था। परन्तु एक लम्बे अन्तराल के बाद अब्बासी ख़लीफ़ा हारून रशीद के समय मे यह भेद खुल गया कि इमाम अली की समाधि नजफ़ नामक स्थान पर है। बाद मे आपके अनुयाईयों ने आपकी समाधि का विशाल व वैभवपूर्ण निर्माण कराया। वर्तमान समय मे प्रति वर्ष लाखों दर्शनार्थी आपकी समाधि पर जाकर सलाम करते हैं।
एक सहाबी मालिक ऐ अश्तर के लव्ज़ हैं :
रन में ग़ाज़ी खेत में मज़दूर मिन्बर पर ख़तीब
अल्लाह अल्लाह कितने रुख़ हैं एक ही तस्वीर में ।
।। अल्लाहुम्मा सल्ले अला मुहम्मदिंव वा आलिमुहम्मद।।