इन्सान हमदर्द और , रहमदिल होता है,लेकिन जब यह नफरत करता है तो बड़ा सख्त दिल हो जाया करता है। आखिर यह नफरत फैलती कैसे है? आज दो इंसानों ...
समाज में ज़िन्दगी बसर करना सख़्त है। क्योंकि समाज में मुख़तलिफ़ तबियतों, मुख़तलिफ़ सलीक़ों, और मुख़तलिफ़ फ़िक्र व नज़रिए के लोग मौजूद होते हैं और यह बात वाज़ेह है कि फ़र्दी ज़िन्दगी मुख़तलिफ़ गिरोह व मुखतलिफ़ फ़िक्र व नज़र वाले अफ़राद के साथ बहुत सख़्त और दुशवार है। मिसाल के तौर पर जिस समाज में आलिम, जाहिल, उसूली, मंतिक़ी, लापरवाह, जज़बाती, बूढ़े, जवान व बच्चे सभी मौजूद हो उसमें फ़र्दी ज़िन्दगी बसर करना आसान काम नही है। बल्कि वहाँ पर ऐसी क़ुदरत व ताक़त की ज़रूरत है जिससे इंसान सबको राज़ी रख सके और किसी भी गिरोह से टकराव न हो।
ब्लॉगर्स की दुनिया भी बाहर की दुनिया जैसी ही है.एक गिरोह मैंने देखा जिसमें बहुत से अलग अलग धर्म के लोग झूट और फरेब से धर्म के नाम पे नफरत फैला रहे हैं।कुछ का तो लगता है यह पेशा है, शायद पैसे भी मिलते हों, झूटी कहानिया गढ़ने के लिते, कुछ जज्बाती जाहिल लगे ,जिनको ना खुद का धर्म मालूम और ना दूसरों का।
एक गिरोह देखा जो पढ़ा लिखा है, अमन की बात करता है, यह नेक लोग हैं। कुछ ऐसे लोग भी हैं जो दुसरे धर्म वालों को खुश करने के लिए खुद के ही धर्म में कमियां निकाल के दुसरे धर्म वालों की वाह वाही लूटने हैं,इनको शोहरत की लालच है, वोह कैसे भी मिले इस से इक कोई लेना देना नहीं.
यह सब देख कभी दुःख भी होता है, कभी गुस्सा आता है . मोमिन की एक ख़ूबी यह है कि वह जाहिल व नादान लोगों के साथ नेक बर्ताव करता है और उनके ग़ैर उसूली और नाज़ेबा सुलूक पर नाराज़ व ग़ुस्सा नही होता हैं बल्कि बुज़ुर्गवारी का सुबूत देता है।
लेकिन सच कहूँ कल ग़ुस्सा आ ही गया, आखिर हूँ तो एक अदना सा कमज़ोर नफ्स वाला इंसान. एक ब्लॉग पे देखा, कहीं इस्लाम के नबियों पे तोहमत, कहीं मुस्लमान को दहशत गर्द, झूट ओ फरेब से भरी भड़काने वाली बातें. सोंचा आज उनकी ही ज़बान में जवाब दे ही देता हूँ।
अभी सोंच ही रहा था की एक दोस्त मिल गया, कहने लगा बड़े गुस्से में हो, क्या इरादा है? दोस्त था मैंने उसको वजह बता दिया . वोह कुछ बोला नहीं , ज़रा उसने इधेर उधर की बातें की और अचानक मुझको बोला "लंगड़ा " मैंने हंस के कहा अरे क्या हुआ, क्यों ऐसा कह रहा है, में तो दो पैरों पे खड़ा हूँ ? उसने कहा और अगर में यही कहता रहूँ तो? मैंने कहा कोई बात नहीं, जिस दिन मुझको दुनिया दो पैरों पे चलते देखेगी उस दिन तू झूठा कहलाएगा। दोस्त बोला खुदा हाफिज़ जा जिस काम के लिए जा रहा था लेकिन सोंचता जा तूने अभी क्या कहा है।
मैं चला सोंचता और ध्यान आया,मेरे दोस्त ने तो हक़ीक़त में मुझे रास्ता दिखा दिया और वोह भी मेरी ही ज़बान से. मैं क्यूँ उनको, जो झूठे इलज़ाम से नफरत पहला रहे हैं, जवाब नफरत से देने जाऊं .क्यों ना एक सच्चे मुस्लमान का किरदार और एखलाक पेश करूँ , मुहब्बत और अमन का पैग़ाम दूं, लोग जब एक मुसलमान को ऐसा करते देखेंगे तो खुद ही उनको झूठा और फरेबी कहेंगे।
अल्लाह के नेक बंदें वह हैं जो ज़मीन पर नर्म रफ़तारी से चलते हैं और जब कोई जाहिल उनके साथ ग़ैर मुनासिब सुलूक करता है तो वह करामत व बुज़ुर्गवारी से नज़र अंदाज़ करते हुए गुज़र जाते हैं। और अपने किरदार से उनको हिदायत देते हैं।
समाजी ज़िन्दगी की कामयाबी के लिये हमें अपना दिल बड़ा करने, सबका एहतराम करने, के साथ कुछ जगहों पर चश्मपोशी व ग़फ़लत से काम लेना पड़ेगा ताकि मुख़तलिफ़ लोगों के साथ सभी धर्म के लोगों के साथ ज़िन्दगी बसर की जा सके। दूसरे लफ़्जों में हमारे पास इतना हौसला होना चाहिए कि हमसे बूढ़े मर्द व औरत नाराज़ न हों, हम बच्चों की ग़लतियों पर सब्र व ज़ब्त कर सकें ताकि वह भी राज़ी व ख़ुश रहें।
धर्म पे खूब बातें करो, लेकिन अपने धर्म को सही कहने के लिए दूसरों के धर्म मैं कमियां, बुराई निकालना ज़रूरी नहीं।
तुम अपने ज़ह्न के इन बदनुमा ख़यालों को
ख़ुदा के वास्ते बच्चों में मुन्तक़िल न करो।
- शेफा कज्गओंवी
क्योंकि इंसान का काम नफरत फैलाना नहीं और कोई भी धर्म इसकी इजाज़त नहीं देता। हमें यह कोशिश करनी चाहिये कि हम जज़बाती होने व लड़ाई झगड़े करने के बजाए सुल्ह व सफ़ाई और मेल जोल वाली आदत अपनायें।