हर एक दौर मैं , समाज के ठेकेदारों ने नारी का उपयोग किया, आवश्यकतानुसार नारी स्थान का परिवर्तन करते रहे, लेकिन प्रत्येक धर्म में नारी को महव...
हर एक दौर मैं , समाज के ठेकेदारों ने नारी का उपयोग किया, आवश्यकतानुसार नारी स्थान का परिवर्तन करते रहे, लेकिन प्रत्येक धर्म में नारी को महवपूर्ण स्थान प्राप्त है।
निसन्देह मानव समाज के विकास तथा प्रशिक्षण में महिलाओं की निर्णयक भूमिका है। यहॉं तक कि कोई भी क़ानून को अनदेखा नहीं कर सकता हैं। इस्लाम धर्म में नारी के उचित स्थान को लेकर कुछ लोग भ्रमित हैं, जबकि इस्लाम नें नारी को समाज के विकास का स्त्रोत बताया है। पैग़मबर ईस्लाम (स) के पौत्र हज़रत इमाम सादिक़ (अ) ने इस संबंध में फरमाया है कि :सबसे अधिक भलाई तथा अच्छाई महिलों के आस्तिव से है।
धर्म गुरु खुमैनी (र) ने महिलाओं को समाज की शिक्षक तथा आगामी पीढ़ी की सफलताओं तथा विकास का स्रोत बताया है। उनका विचार है कि अपनी प्रशिक्षण की भूमीका के कारण महिलाओं का स्थान मूल्यवान तथा श्रेष्ठ है। इस प्रकार के दृष्टिकोण से, वो लोग या घारणाएं जो महिलाओं को तुच्छ और उन्हें सारी बुराइयों की ज़ड़ समझती हैं, बुद्धि तर्क तथा घार्मिक विश्वासों के विपरीत हैं चाहे उनमें कुछ धार्मिक नेता भी सम्मिलित हों।
भारतीय संस्कृति में लज्जा को नारी का श्रृंगार माना गया है। पश्चिमी सभ्यता या हर वो दूसरी सभ्यता कि जो महिलों को नग्नता के लिए प्रोत्साहित करती है, सभी महिलाओं पर घोर अत्याचार करती है। ईश्वर की दृष्टि में, जो कि इन्सान और दृष्टि का जन्मदाता है, पैग़म्बरों तथा ईश्वरीय धर्मों की दृष्टि में, समाज में महिला हर चीज़ से अधिक एक इन्सान के रूप में देखी जानी चाहिए। एक ऐसा इनसान कि जो अपनी सभी क्षमताओं तथा योग्यताओं के साथ, अत्यन्त आदरणीय है।
महिलाऐं जो किसी समूह या सार्वजनिक स्थानों पर अपने शरीर के अंगों को उचित रूप से नहीं ढ़कती, वास्तव में वो स्वयं को एक बिकाऊ वस्तु के रुप में ख़रीदारों के सम्मुरव प्रस्तुत करती हैं। वो बजाए इसके कि एक, योग्य सक्षम तथा लाभदायक इन्सान के रूप, में समाज में पहचानी जाए, और अपने झान,शिक्षा वफादारी तथा गुणों व मानवीय मूल्यों को दुसरों को पहचानवाए बने केवल अपने यौंन आकषर्णों को ही दुसरों के सामने प्रस्तुत किया है और इस प्रकार वो मानवीय मूल्यों से स्वयं को दूर कर लेती है।
यह जान के आश्चर्य होगा की जो पश्चिमी सभ्यता जो बराबरी के दर्जे और आज़ादी के नाम पे जो महिलाओं को नग्नता के लिए प्रोत्साहित करती है, उसमें इंग्लैंण्ड में महिलाएँ वोट देने के अधिकार से 1918 तक वंचित रहीं। अमेरिकी उच्चतम न्यायालय ने Bradwell Vs.lllnois (1873) में व्यवस्था दी है कि विवाहित महिलाएँ व्यक्ति की श्रेणी में नहीं हैं और वकालत नहीं कर सकतीं। अमेरिका में 21 वर्ष से ऊपर की महिलाओं को मत देने की अनुमति अमेरिकी संविधान के 19वें संशोधन (1920) के द्वारा ही मिल पायी।
वर्तमानसम्यता ने महिला के सौन्दर्य तथा आकषर्ण से लाभ उठाते हुए और स्वतंत्रता तथा बराबरी के नाम पर उसे अपने स्वाभाविक तथा मानवीय नियमों के मुकाबले में खड़ा कर दिया है। पश्चिमी महिला जो वेल ड़ोरेन्ट के अनुसार 19 वीं शताबदी के आंरम्भिक काल तक मानवधिनारों से वंचित की, आकस्मिक रूप से लालची लोगों के हाथ लग गई। इस प्रकार इन समाजों में महिला एक वस्तु तथा उपकरण के रूप में सामने आई है। यही कारण है कि इन समाजों में महिला ने अपना गौरव खो दिया है। अब ये इन महिलाओं का दाइत्व है कि अपनी खोई हुई मर्यादा को दोबारा प्राप्त करने का प्रयास करें और समाज को अनेक बुराइयों से बचा लें।
पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा है: कृपालु तथा सज्जन लोग महिलाओं का आदर करते हैं और गिरे हुए लोग उनका अनादर करते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने यह भी कहा है की स्बर्ग माता के पावं तले है।
मनुस्मृति के अनुसार ''जहाँ स्त्रियों का आदर किया जाता है, वहाँ देवता रमण करते हैं और जहाँ इनका अनादर होता है, वहाँ सब कार्य निष्फल होते हैं।
महिलाओं को जागरूक होना पड़ेगा. लता हया साहेबा का एक पैगाम मुझे अच्छा लगा था लिंक दे रहा हूँ.
निसन्देह मानव समाज के विकास तथा प्रशिक्षण में महिलाओं की निर्णयक भूमिका है। यहॉं तक कि कोई भी क़ानून को अनदेखा नहीं कर सकता हैं। इस्लाम धर्म में नारी के उचित स्थान को लेकर कुछ लोग भ्रमित हैं, जबकि इस्लाम नें नारी को समाज के विकास का स्त्रोत बताया है। पैग़मबर ईस्लाम (स) के पौत्र हज़रत इमाम सादिक़ (अ) ने इस संबंध में फरमाया है कि :सबसे अधिक भलाई तथा अच्छाई महिलों के आस्तिव से है।
धर्म गुरु खुमैनी (र) ने महिलाओं को समाज की शिक्षक तथा आगामी पीढ़ी की सफलताओं तथा विकास का स्रोत बताया है। उनका विचार है कि अपनी प्रशिक्षण की भूमीका के कारण महिलाओं का स्थान मूल्यवान तथा श्रेष्ठ है। इस प्रकार के दृष्टिकोण से, वो लोग या घारणाएं जो महिलाओं को तुच्छ और उन्हें सारी बुराइयों की ज़ड़ समझती हैं, बुद्धि तर्क तथा घार्मिक विश्वासों के विपरीत हैं चाहे उनमें कुछ धार्मिक नेता भी सम्मिलित हों।
भारतीय संस्कृति में लज्जा को नारी का श्रृंगार माना गया है। पश्चिमी सभ्यता या हर वो दूसरी सभ्यता कि जो महिलों को नग्नता के लिए प्रोत्साहित करती है, सभी महिलाओं पर घोर अत्याचार करती है। ईश्वर की दृष्टि में, जो कि इन्सान और दृष्टि का जन्मदाता है, पैग़म्बरों तथा ईश्वरीय धर्मों की दृष्टि में, समाज में महिला हर चीज़ से अधिक एक इन्सान के रूप में देखी जानी चाहिए। एक ऐसा इनसान कि जो अपनी सभी क्षमताओं तथा योग्यताओं के साथ, अत्यन्त आदरणीय है।
महिलाऐं जो किसी समूह या सार्वजनिक स्थानों पर अपने शरीर के अंगों को उचित रूप से नहीं ढ़कती, वास्तव में वो स्वयं को एक बिकाऊ वस्तु के रुप में ख़रीदारों के सम्मुरव प्रस्तुत करती हैं। वो बजाए इसके कि एक, योग्य सक्षम तथा लाभदायक इन्सान के रूप, में समाज में पहचानी जाए, और अपने झान,शिक्षा वफादारी तथा गुणों व मानवीय मूल्यों को दुसरों को पहचानवाए बने केवल अपने यौंन आकषर्णों को ही दुसरों के सामने प्रस्तुत किया है और इस प्रकार वो मानवीय मूल्यों से स्वयं को दूर कर लेती है।
यह जान के आश्चर्य होगा की जो पश्चिमी सभ्यता जो बराबरी के दर्जे और आज़ादी के नाम पे जो महिलाओं को नग्नता के लिए प्रोत्साहित करती है, उसमें इंग्लैंण्ड में महिलाएँ वोट देने के अधिकार से 1918 तक वंचित रहीं। अमेरिकी उच्चतम न्यायालय ने Bradwell Vs.lllnois (1873) में व्यवस्था दी है कि विवाहित महिलाएँ व्यक्ति की श्रेणी में नहीं हैं और वकालत नहीं कर सकतीं। अमेरिका में 21 वर्ष से ऊपर की महिलाओं को मत देने की अनुमति अमेरिकी संविधान के 19वें संशोधन (1920) के द्वारा ही मिल पायी।
वर्तमानसम्यता ने महिला के सौन्दर्य तथा आकषर्ण से लाभ उठाते हुए और स्वतंत्रता तथा बराबरी के नाम पर उसे अपने स्वाभाविक तथा मानवीय नियमों के मुकाबले में खड़ा कर दिया है। पश्चिमी महिला जो वेल ड़ोरेन्ट के अनुसार 19 वीं शताबदी के आंरम्भिक काल तक मानवधिनारों से वंचित की, आकस्मिक रूप से लालची लोगों के हाथ लग गई। इस प्रकार इन समाजों में महिला एक वस्तु तथा उपकरण के रूप में सामने आई है। यही कारण है कि इन समाजों में महिला ने अपना गौरव खो दिया है। अब ये इन महिलाओं का दाइत्व है कि अपनी खोई हुई मर्यादा को दोबारा प्राप्त करने का प्रयास करें और समाज को अनेक बुराइयों से बचा लें।
पैग़म्बरे इस्लाम ने कहा है: कृपालु तथा सज्जन लोग महिलाओं का आदर करते हैं और गिरे हुए लोग उनका अनादर करते हैं। पैग़म्बरे इस्लाम ने यह भी कहा है की स्बर्ग माता के पावं तले है।
मनुस्मृति के अनुसार ''जहाँ स्त्रियों का आदर किया जाता है, वहाँ देवता रमण करते हैं और जहाँ इनका अनादर होता है, वहाँ सब कार्य निष्फल होते हैं।
महिलाओं को जागरूक होना पड़ेगा. लता हया साहेबा का एक पैगाम मुझे अच्छा लगा था लिंक दे रहा हूँ.