हेजाब या आवरण एक ऐसा विषय है जिसपर हर थोड़े समय के पश्चात संचार माध्यमों में बात होती रहती है। आवरण एक ऐसी सामाजिक रीति है जिसकी सीमाओ...
हेजाब या आवरण एक ऐसा विषय है जिसपर हर थोड़े समय के पश्चात संचार माध्यमों में बात होती रहती है।
आवरण एक ऐसी सामाजिक रीति है जिसकी सीमाओं तथा विभिन्नताओं का समाज की शान्ति एवं सुरक्षा पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। इसके द्वारा समाज में महिलाओं एवं पुरुषों की गतिविधियों तथा कार्यों के लिए उचित वातावरण उत्पन्न होता है।आवरण महिलाओं एवं पुरुषों को लिंग भेद से हट कर बुद्धिमान मनुष्य के रुप में अपनी योग्यताओं को निखारने का अवसर प्रदान करता है। इसी प्रकार समाज में भ्रष्टाचार को रोकने में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है।सैद्धान्तिक रुप से मनुष्य की आत्मा की अत्यधिक इच्छाएं तथा अवश्यकताएं होती हैं। जिस प्रकार मनुष्य, चाहे वो नर हो या नारी, धन सम्पन्ति, पद, तथा सत्ता की चाह से कभी छूटकारा नहीं पाता, उसी प्रकार यौन संबंधों के विषय में भी यदि वो उचित मार्गों द्वारा स्वंय पर नियंत्रण नहीं कर पाता तो पतन के भंवर में फंस कर बर्बाद हो जाता है।
असीमित इच्छाएं एवं चाह, चूंकि पूरी नहीं हो सकती इसलिए मनुष्य को एक प्रकार से कमियों का आभास होने लगता है। जिसके कारण उसकी आत्मा में विकार उत्पन्न हो जाता है और वो मानसिक रोगों का शिकार हो जाता है। इस्लामी दर्शनशास्त्र में आवरण की धारणा इन्हीं इच्छाओं तथा भावनाओं को नियंत्रित करने तथा नर एवं नारी में एक दूसरे के प्रति आदर भाव उत्पन्न करने हेतु अपनाई गई है।कुछ लोगों का विचार है कि आवरण, महिला की सामाजिक उपस्थिति तथा योग्यताओं के विकास में बाधा उत्पन्न करता है। जबकि ऐसा नहीं है।ईश्वर ने स्वंय अपने किसी प्राणी के लिए जो क़ानून बनाए हैं, उनका उल्लंघन वो कदापि नहीं करता। जैसा कि प्राकृतिक व्यवस्था में जब किसी में एक कार्य करने की क्षमता उत्पन्न हो जाती है तो वो उसे भली – भांति कर सकता है। इसलिए यदि कोई व्यक्ति एक महिला को उन प्रयासों से रोके जिनकी योग्यता उसमें स्वाभाविक रुप से मौजूद है तो उसने महिला पर अत्याचार और समाज के साथ विश्वासघात किया है।महिला भी पुरुपष की ही भांति एक इन्सान और समाज की सदस्य है। समाज को उसकी क्षमताओं और योग्यताओं से अवश्य लाभ उठाना चाहिए।
आवरण, महिलाओं के लिए समाज में एक स्वीकृत तथा सन्तुलित सीमा निर्धारित करता है, जिसके कारण समाज में उसकी स्वस्थ तथा लाभदायक उपस्थिति होती है।इस्लामी सूत्रों में हम देखते हैं कि इस्लाम ने शिक्षा एवं ज्ञान प्राप्ति को नर तथा नारी, दोनों का कर्तव्य बताया है और राजनैतिक , सामाजिक तथा ज्ञान संबंधी गतिविधियों को भी दोनों के लिए आवश्यक तथा लाभदायक बताया है। इसलिए इस्लामी आवरण किसी भी प्रकार से महिला को एक चारदीवारी में बन्द नहीं करता तथा उसकी योग्यताओं को निखरने से की नहीं रोकता।इस्लाम में आवरण महिलाओं तथा पुरुषों की योग्यताओं के विकास तथा स्वस्थ सामाजिक संबंध व्यवस्था के लिए है। जैसा कि विश्व देख रहा है कि आज ईरानी महिलाएं आवरण की सुरक्षा में सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक सभी क्षेत्रों में संलग्न है।
समाज के कल्याण को ध्यान में रखते हुए यदि महिलाओं तथा पुरुषों से कुछ विशेष नियमों का पालन करने का आग्रह किया जाता है तो इसका अर्थ ये नहीं है कि उनकी स्वतंत्रता को धीना गया है। जैसा कि सभी देशों के सामाजिक तथा नागरिक क़ानूनों में लोग विशेष नियमों का पालन करने पर बाध्य होते हैं, इन नियमों पर कटिबद्ध रहने को स्वतंत्रता में रुकावट नहीं कहा जा सकता।इस्लामी आवरण का एक और महत्वपूर्ण पहलू महिला के स्वामिमान तथा गरिमा की सुरक्षा करना है। इस्लाम ने महिलाओं को अपने तथा पुरुषों के बीच की सीमाओं को बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया है ताकि वो अपनी लज्जा एवं पवित्रता को सुरक्षित रख सकें। इस्लाम ने बल देकर कहा है कि एक महिला जितनी अधिक स्वाभिमानी तथा गौरवपूर्ण होगी और अपना प्रदर्शन नहीं करेगी, उतना ही अधिक उसका आदर बढ़ेगा। वस्तुत: पवित्रता और आत्म सम्मान वो उपकरण हैं जिनको महिलाओं ने सदैव पुरुषों के मुक़ाबले में अपने स्थान की सुरक्षा के लिए प्रयोग किया है।
वेल डोरेन्ट इसी संबंध में कहते हैं:लज्जा कोई स्वाभाविक भावना नहीं है बल्कि इसे सीखा जाता है। महिलाओं ने यह समझ लिया है कि अत्यधिक स्वतन्त्रता में अपमान तथा धिक्कार है और यह बात उन्हों ने अपनी बेटियों को भी बताई है।आवरण, महिला को एक विशेष गौरव प्रदान करता है जिसकी छत्र छाया में उसका मानवीय व्यक्तित्व निखरता है। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता इस संबंध में कहते हैं: महिला की सुरक्षा के लिए जो भी कार्य किए जाएं उनका मूल स्तंभ सतीत्व एवं पवित्रता होनी चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि महिला की पवित्रता की, जो उसके व्यक्तित्व का सबसे महत्वपूर्ण तत्व होता है, उपेक्षा हो। महिला की पवीत्रता वो माध्यम है जिससे दूसरों यहॉ तक कि बिना रोक टोक का जीवन व्यतीत करने वालों की दृष्टि में भी महिला की गरिमा होती है।
बेलजियम की एक राजनीतिज्ञ सु श्री क्रिस्टीयन बारेल्ता ने अपनी ईरान यात्रा के पश्चात कहा था−इटली का सिसली नगर जहॉं मैने कुछ दिन बेलजियम की काउन्सलर के रुप में काम किया यह महिला प्रधान नगर है, परन्तु मेरा विश्वास है कि महिला तथा पुरुष दोनों के बीच पारस्पारिक आदर भाव होना चाहिए और जीवन में सन्तुलन होना चाहिए।
ईरान में हमने देखा कि महिलाएं परिवार को अत्यधिक महत्व देती हैं। वे बड़ी ही चतुर हैं और उन्होंने आवरण को अपने व्यक्तित्व के बचाव के उपकरण के रुप में अपना रखा है और यह बात अत्यन्त रोचक है।
आवरण एक ऐसी सामाजिक रीति है जिसकी सीमाओं तथा विभिन्नताओं का समाज की शान्ति एवं सुरक्षा पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। इसके द्वारा समाज में महिलाओं एवं पुरुषों की गतिविधियों तथा कार्यों के लिए उचित वातावरण उत्पन्न होता है।आवरण महिलाओं एवं पुरुषों को लिंग भेद से हट कर बुद्धिमान मनुष्य के रुप में अपनी योग्यताओं को निखारने का अवसर प्रदान करता है। इसी प्रकार समाज में भ्रष्टाचार को रोकने में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है।सैद्धान्तिक रुप से मनुष्य की आत्मा की अत्यधिक इच्छाएं तथा अवश्यकताएं होती हैं। जिस प्रकार मनुष्य, चाहे वो नर हो या नारी, धन सम्पन्ति, पद, तथा सत्ता की चाह से कभी छूटकारा नहीं पाता, उसी प्रकार यौन संबंधों के विषय में भी यदि वो उचित मार्गों द्वारा स्वंय पर नियंत्रण नहीं कर पाता तो पतन के भंवर में फंस कर बर्बाद हो जाता है।
असीमित इच्छाएं एवं चाह, चूंकि पूरी नहीं हो सकती इसलिए मनुष्य को एक प्रकार से कमियों का आभास होने लगता है। जिसके कारण उसकी आत्मा में विकार उत्पन्न हो जाता है और वो मानसिक रोगों का शिकार हो जाता है। इस्लामी दर्शनशास्त्र में आवरण की धारणा इन्हीं इच्छाओं तथा भावनाओं को नियंत्रित करने तथा नर एवं नारी में एक दूसरे के प्रति आदर भाव उत्पन्न करने हेतु अपनाई गई है।कुछ लोगों का विचार है कि आवरण, महिला की सामाजिक उपस्थिति तथा योग्यताओं के विकास में बाधा उत्पन्न करता है। जबकि ऐसा नहीं है।ईश्वर ने स्वंय अपने किसी प्राणी के लिए जो क़ानून बनाए हैं, उनका उल्लंघन वो कदापि नहीं करता। जैसा कि प्राकृतिक व्यवस्था में जब किसी में एक कार्य करने की क्षमता उत्पन्न हो जाती है तो वो उसे भली – भांति कर सकता है। इसलिए यदि कोई व्यक्ति एक महिला को उन प्रयासों से रोके जिनकी योग्यता उसमें स्वाभाविक रुप से मौजूद है तो उसने महिला पर अत्याचार और समाज के साथ विश्वासघात किया है।महिला भी पुरुपष की ही भांति एक इन्सान और समाज की सदस्य है। समाज को उसकी क्षमताओं और योग्यताओं से अवश्य लाभ उठाना चाहिए।
आवरण, महिलाओं के लिए समाज में एक स्वीकृत तथा सन्तुलित सीमा निर्धारित करता है, जिसके कारण समाज में उसकी स्वस्थ तथा लाभदायक उपस्थिति होती है।इस्लामी सूत्रों में हम देखते हैं कि इस्लाम ने शिक्षा एवं ज्ञान प्राप्ति को नर तथा नारी, दोनों का कर्तव्य बताया है और राजनैतिक , सामाजिक तथा ज्ञान संबंधी गतिविधियों को भी दोनों के लिए आवश्यक तथा लाभदायक बताया है। इसलिए इस्लामी आवरण किसी भी प्रकार से महिला को एक चारदीवारी में बन्द नहीं करता तथा उसकी योग्यताओं को निखरने से की नहीं रोकता।इस्लाम में आवरण महिलाओं तथा पुरुषों की योग्यताओं के विकास तथा स्वस्थ सामाजिक संबंध व्यवस्था के लिए है। जैसा कि विश्व देख रहा है कि आज ईरानी महिलाएं आवरण की सुरक्षा में सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक सभी क्षेत्रों में संलग्न है।
समाज के कल्याण को ध्यान में रखते हुए यदि महिलाओं तथा पुरुषों से कुछ विशेष नियमों का पालन करने का आग्रह किया जाता है तो इसका अर्थ ये नहीं है कि उनकी स्वतंत्रता को धीना गया है। जैसा कि सभी देशों के सामाजिक तथा नागरिक क़ानूनों में लोग विशेष नियमों का पालन करने पर बाध्य होते हैं, इन नियमों पर कटिबद्ध रहने को स्वतंत्रता में रुकावट नहीं कहा जा सकता।इस्लामी आवरण का एक और महत्वपूर्ण पहलू महिला के स्वामिमान तथा गरिमा की सुरक्षा करना है। इस्लाम ने महिलाओं को अपने तथा पुरुषों के बीच की सीमाओं को बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित किया है ताकि वो अपनी लज्जा एवं पवित्रता को सुरक्षित रख सकें। इस्लाम ने बल देकर कहा है कि एक महिला जितनी अधिक स्वाभिमानी तथा गौरवपूर्ण होगी और अपना प्रदर्शन नहीं करेगी, उतना ही अधिक उसका आदर बढ़ेगा। वस्तुत: पवित्रता और आत्म सम्मान वो उपकरण हैं जिनको महिलाओं ने सदैव पुरुषों के मुक़ाबले में अपने स्थान की सुरक्षा के लिए प्रयोग किया है।
वेल डोरेन्ट इसी संबंध में कहते हैं:लज्जा कोई स्वाभाविक भावना नहीं है बल्कि इसे सीखा जाता है। महिलाओं ने यह समझ लिया है कि अत्यधिक स्वतन्त्रता में अपमान तथा धिक्कार है और यह बात उन्हों ने अपनी बेटियों को भी बताई है।आवरण, महिला को एक विशेष गौरव प्रदान करता है जिसकी छत्र छाया में उसका मानवीय व्यक्तित्व निखरता है। इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता इस संबंध में कहते हैं: महिला की सुरक्षा के लिए जो भी कार्य किए जाएं उनका मूल स्तंभ सतीत्व एवं पवित्रता होनी चाहिए। ऐसा नहीं होना चाहिए कि महिला की पवित्रता की, जो उसके व्यक्तित्व का सबसे महत्वपूर्ण तत्व होता है, उपेक्षा हो। महिला की पवीत्रता वो माध्यम है जिससे दूसरों यहॉ तक कि बिना रोक टोक का जीवन व्यतीत करने वालों की दृष्टि में भी महिला की गरिमा होती है।
बेलजियम की एक राजनीतिज्ञ सु श्री क्रिस्टीयन बारेल्ता ने अपनी ईरान यात्रा के पश्चात कहा था−इटली का सिसली नगर जहॉं मैने कुछ दिन बेलजियम की काउन्सलर के रुप में काम किया यह महिला प्रधान नगर है, परन्तु मेरा विश्वास है कि महिला तथा पुरुष दोनों के बीच पारस्पारिक आदर भाव होना चाहिए और जीवन में सन्तुलन होना चाहिए।
ईरान में हमने देखा कि महिलाएं परिवार को अत्यधिक महत्व देती हैं। वे बड़ी ही चतुर हैं और उन्होंने आवरण को अपने व्यक्तित्व के बचाव के उपकरण के रुप में अपना रखा है और यह बात अत्यन्त रोचक है।