*अनसुलझे रहस्य* *जहां आज भी सर्पदंश से मरे हुए लोग हो जाते हैं जीवित* दोस्तों आदाब ये जो घटना मैं आपके साथ शेयर करने जा रहा हूं वो घटना वा...
*अनसुलझे रहस्य*
*जहां आज भी सर्पदंश से मरे हुए लोग हो जाते हैं जीवित*
दोस्तों आदाब
ये जो घटना मैं आपके
साथ शेयर करने जा रहा हूं वो घटना वास्तव में बहुत ही विचित्र है... आज की इस डिजिटल और पूरी तरह से बदलती हुई वैज्ञानिक दुनियां में इस रहस्यमई और आश्चर्यजनक घटनां पर यक़ीन करना बहुत ही मुश्किल होता है... लेकिन फिर भी कहते हैं ना कि चमत्कार को नमस्कार।
ये सत्य कथा आज से तक़रीबन कोई पैंसठ बरस पहले की है.... रोंगटे खड़े कर देने वाली इस पूरी कहानीं को मुझे बाल्यावस्था में मेरी बड़ी बुआ जी जिनका नाम श्रीमती छाया घोष है,, उन्होंने सुनाया था जो कि असम बंगाल के एक संपन्न और कुलीन बंगाली कायस्थ घरानें में ब्याही थीं...
जाहिर सी बात है कि अपने बचपन में सुनी हुई इस आश्चर्यजनक कहानीं को अपने होश संभालने के बाद से इसकी सत्यता को प्रमाणित करने के लिए मैंने कई दफा बड़ी ही गहराई से उनसे इस बारे में बातचीत भी की और हमेशा की तरह ही ये संपूर्ण घटना सत्यता के हर आयाम से परखे गए पैमाने पर हमेशा की तरह खरी की खरी उतरी है...
जैसा कि आप लोग जानते ही हैं कि पारलौकिक विज्ञान मेरे गहन शोध का विषय रहा है.... आज हमारी उन बुआ जी की आयु लगभग पच्चासी वर्ष के करीब है और वो अब आसाम में ही रहती है.......
ये घटना पूर्ण रुप से सत्य है।
आसाम के गौहाटी रेलवे स्टेशन से लगभग तीन सौ किलोमीटर आगे कक्षार जिले के अंतर्गत एक जगह पड़ती है जिसे सिलचर के नाम से जाना जाता है,,, आज के दौर में तो ये एक छोटा-मोटा शहर ही है, किंतु उस ज़माने में जब की ये घटना जो कि मैं आपको बता रहा हूं उस व़क्त वहां पर आने-जाने के लिए कोई ख़ास यातायात के इंतजामात नहीं थे.. यदाकदा ही कभी-कभार कोई छोटी-मोटी मोटर या फिर बैलगाड़ी आदि का ही सहारा था...
वहीं सिलचर से काफी दूर घनें और दुर्गम जंगलों में कई पीढ़ियों से बसे हुऐ आदिवासियों का एक विचित्र कबीला था और वहां के गुनी ओझा जो कि समाज से बिल्कुल ही अलग-थलग रहते थे,,, उनका रहन सहन का तरीका बड़ा ही रहस्यमय और विचित्र था ,उन्हें चमत्कारी जंगली जड़ी बूटियों का और अत्यंत गूढ़ और सिद्ध तांत्रिक क्रियाओं से संबद्ध झाड़ फूंक आदि का बड़ा ही ज़बरदस्त ज्ञान था
आसाम आज भी अपने चाय के बागानों के लिए और विचित्र जीव जंतुओं से भरे हुए अपने विशाल घनें वर्षा वनों के लिए जाना जाता है ......
इन कुदरती जंगलों की भी अपनी एक अलग ही दुनियां होती है ,और इनके सानिध्य में रहने वालों का इक अलग ही कानून होता है ....
दोस्तों तराई का क्षेत्र होने कारण वहां पर कई प्रकार की प्रजातियों के विषैले सांपों का साम्राज्य था, दुनियां के सबसे ज़्यादा ज़हरीले माने जाने वाले बड़े आकार के किंग कोबरा यहीं पर पाए जाते हैं, जिन की लंबाई पंद्रह से बीस फुट तक की होती है और आज भी कहा जाता है कि ये सांप जिसको डस लें ,वो पानी भी नहीं मांग पाता है,, इसके एक बूंद ज़हर से लगभग 200 लोग मारे जा सकते है।
उन दिनों वहां पर कभी कभार कोई छोटा मोंटा डॉक्टर साप्ताहिक बाज़ारों में सिर्फ एक दिन के लिए ही कस्बे से आया करता था .....
लेकिन ज्यादातर स्थानीय निवासी वैध हकीमों की और प्राकृतिक चिकित्सा विधियो के जानकारों की ही शरण में अपने इलाज के लिए जाया करते थे..
कभी कभार वहां के निवासियों को जब कोई सांप या बिच्छू आदि डस लेता था तो उसके ज़हर को उतारने के लिए वहां के लोग इन्हीं वैद्य और हक़ीमों की शरण में जाकर अपना इलाज कराते थे ,......लेकिन वहां के कुछ अत्यंत ही ज़हरीले सांप ऐसे भी होते थे ,जिनके काटे का इनमें से किसी के पास कोई भी इलाज नहीं होता था........ तब ये लोग वहां से कई मील दूर उन्हीं भयानक और दुर्गम जंगलों में बसे हुए आदिवासियों के उस रहस्यमय कबीले मे जाते थे, और वहां पर शुरू होता था उनका एक आलौकिक ,और ख़ौफ़नांक इलाज,.
उन दिनों सिलचर में कोई ख़ास बड़ी आबादी नहीं रहा करती थी... इक्का-दुक्का बंगाली सामंत परिवारों के अलावा वहां पर जन सामान्य के साथ ही साथ चाय बागांन में काम करने वाले सैकड़ों की संख्या में मज़दूरों का पूरा का पूरा कुनबा अपने अपने परिवारों के साथ रहा करता था।
यहीं इसी गांव में ही तपन घोष नाम के सांवले से अदना कद काठी के एक उच्च शिक्षित सज्जन और मिलनसार व्यक्ति रहा करते थे जिनकी उम्र रही होगी लगभग पचास बरस , वो वहीं के एक बहुत बड़े चाय बागांन में मैनेजर की हैसियत से काम किया करते थे , जिन्हें आस पास के स्थानीय लोग बाग,,
बागांन बाबू के नाम से भी बुलाते थे,,, बड़ा ही सामान्य सा रहन-सहन था उनका ,क्योंकि चाय बागान का काम लगभग ऐसा हुआ करता था कि मौसम के हालात चाहे जैसे भी हों रात दिन ,आंधी तूफान बारिश कुछ भी हो बागानों की देखभाल के लिए ,कभी भी और किसी भी समय जाना पड़ सकता था ........इसी के चलते अपनी सुविधा और ज़िम्मेदारी को देखते हुए तपन बाबू अपने इस बागान से लगभग 2 किलोमीटर की दूरी पर ही रहते थे .....घर में पत्नी संघमित्रा और बेटी तापसी के साथ उनका युवा पुत्र अभिजीत भी उनके साथ ही रहता था... लेकिन साल भर पहले अपनी स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद अभिजीत नें अपनी आगे की कॉलेज की पढ़ाई के लिए कोलकाता के द प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय में दाख़िला ले लिया था और वहीं पर स्थित छात्रावास में वो रहा करता था।
पूरे बंगाल में दुर्गा पूजा का उत्सव बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है ,इन पवित्र दिनों में चाहे कोई भी बंगाली समाज का व्यक्ति हो उसकी सर्वोपरि यही इच्छा होती है कि वो दुर्गा पूजा में अपने गांव में अपने घर और परिवार के साथ हो..., दुर्गा पूजा में अपने कॉलेज से अवकाश के दिनों अभिजीत भी अपने घर आया हुआ था ,उसके आने से उसकी मां संघमित्रा और छोटी बहन बहुत ही खुश थे और बड़े ही ज़ोर शोर से दुर्गा पूजा की तैयारियों में लगे हुए थे......
दुर्गा पूजा के पंडाल को बनाने के लिए उन दिनों जंगली लकड़ियां और बांस आदि लाने के लिए स्थानीय गांव के लोग आसपास के इन्हीं घने जंगलों में अक्सर ही आया जाया करते थे।
एक दिन अभिजीत भी अपने कुछ स्थानीय युवा मित्रों के साथ पास के ही एक घने जंगल में बांस और लकड़ियों को लाने के लिए जाना चाहता था.... किंतु मां कतई ही नहीं चाहती थी, कि अभिजीत उन भयानक जंगलों में लकड़ी काटने के लिए जाए.....न जाने क्यों एक अंजान और अनहोनी आशंका से रह रह कर उनका मन घबरा रहा था किंतु अभिजीत और उसके दोस्तों के आग्रह के आगे उनकी एक भी ना चली...
मां बाबा...... मैं शाम तक हर हाल में लौट आऊंगा,... ये कहकर हंसता हुआ अभिजीत....... उनकी आंखों से ओझल हो गया....
हांलांकि इन दिनों चाय के बागानों में अवकाश के दिन चल रहे थे ,,,फिर भी आज सुबह से ही तपन बाबू दुर्गा पूजा के उत्सव की तैयारियों के लिए मज़दूरों को उनका वेतन देने के लिए बागान के ऑफिस में थे.. लेकिन काम की व्यस्तता के बीच रह-रहकर उनका मन अभिजीत की ही ओर लगा हुआ था.... ,और इधर घर में अभिजीत की मां और छोटी बहन तापसी भी अनमने मन से घर की साफ-सफाई में लगी हुई थी ,रह-रहकर संघमित्रा न जाने क्यों आज घर के मंदिर में बार-बार जाती अौर मां महामाया के सामने अपने कलेजे के टुकड़े अभिजीत की सलामती के लिए आंखों में आंसू लिए प्रार्थना कर बुझे हुये मन से लौट आती थी..... कहते हैं ना कि हर एक मां को अपनी संतान पर आने वाले किसी भी प्रकार के संकट का कहीं ना कहीं पूर्वाभास निश्चित हो ही जाता है..... कुछ ऐसी ही स्थिति थी आज संघमित्रा की....
सूर्य अपनी दिन भर की थकी हुई यात्रा से ,बोझिल, पश्चिम में अपनी गहराती हुई लालिमा के साथ धीरे-धीरे अस्त हो रहा था........ गांव के घरों में संध्या की पूजा और अर्चना का सुगंधित धुआं मां महामाया दुर्गा की सुमधुर आरती के साथ धीरे-धीरे गहराती हुई शाम के अंधियारे वातावरण में घुलता जा रहा था........
उन दिनों आज की तरह गांवों में बिजली नहीं हुआ करती थी... केरोसिन से जलने वाली लालटेन या फिर मोमबत्ती आदि का इस्तेमाल सभी घरों में हुआ करता था......कभी कदार किसी धनी सामंत के यहां किसी वैवाहिक समारोह आदि में ही शहर से गैस बत्ती वाली लालटेनें किराए पर आया करती थीं....
अंधेरा धीरे-धीरे रात्रि के साम्राज्य को कायम कर रहा था.......... तभी अचानक दूर गांव के मुहाने से आते हुऐ दौड़ती हुई बैलगाडीं के बैलो के गले की घंटियों की आवाज़ से अजीब सा डरावना कोलाहल मचने लगा था ,और उसके पीछे दौड़ते और चिल्लाते हुए पसीने से लतपथ ,गांव के युवा घबराए हुए बदहवास से भागते चले आ रहे थे.......तेज़ आवाज़ के साथ बैलगाड़ी सीधे तपन बाबू के घर के अहाते में आकर रुकी....... बैलों की हुंकार के साथ ,गांव वालों का शोर सुनकर संघमित्रा के संग तापसी भी तेज़ कदमों के साथ बाहर आई तो....... बाहर का दृश्य देखकर संघमित्रा ज़ोरों से चीख कर बेहोश हो गई ,और तापसी भी चीखकर रोने लगी बैलगाड़ी पर अभिजीत का बेजान शरीर पड़ा हुआ था ....शरीर में कोई भी हरकत नहीं हो रही थी.... अफरातफरी के माहौल में सारा गांव तपन बाबू के घर पर उमड़ आया था ,,,तपन बाबू को भी बागान के ऑफिस में इस बात की सूचना मिल चुकी थी ,और वो बड़ी तेज़ी से बागान के मज़दूरों के साथ बदहवासी के आलम में भागते हुए घर पहुंच चुके थे।
अभिजीत को कुछ लोग उठाकर घर के आंगन में ले आए थे ..........गांव के ही वैध बिश्वास दादा लालटेन की रोशनी में चारपाई पर लेटे हुए अभिजीत का परीक्षण कर रहे थे...उसके मुंह से झाग निकल रहा था और शरीर लगभग नीला पड़ चुका था बस नाम मात्र के ही प्राण उसके शरीर में बचे हुए थे..... ग़ौर से देखनेे पर पता चला कि उसके पांव में नाग दंश का निशान था... उनके पूछने पर साथ गए मित्रों ने बताया के जंगल में ही बांस के झुरमुटों के पास अभिजीत बांस काट रहा था फिर वहीं पर उसके चीखने की आवाज़ सुनकर जब उसके मित्रों ने उसे देखा तो उसने फटी हुई आंखों से इशारा करके बताया कि उसको नाग ने डस लिया है इतना कहने के साथ साथ ही वो मूर्छित हो गया तो वह लोग उसे बैलगाड़ी पर डालकर यहां वापस ले आए........ विश्वास दादा ने कुछ जड़ी बूटियों और हरी पत्तियों का घोल अभिजीत के नीले हुए होंठों को फैलाकर चम्मच की सहायता से उसके मुंह में डाल दिया और किसी अच्छे परिणाम की प्रतीक्षा करने लगे.... इधर घर में रो-रो कर सबका बुरा हाल था विक्षिप्त अवस्था में तपन बाबू सब से यही कह रहे थे कि काश, मैंने उसको जाने ही ना दिया होता.....
रात काफी गहरा चुकी थी,... धीरे-धीरे ,गांव के ज्यादातर लोग मायूस से अपने घरों को वापस लौट रहे थे ,बस केवल अभिजीत के कुछ मित्र और चाय बागान के मज़दूर ही वहां पर रुके हुए थे.....
विश्वास दादा की औषधियां कोई लाभ सिद्ध ना कर पाई थी .......उन्होंने तपन बाबू से क्षमा मांगते हुए अपनी असमर्थता जाहिर कर दी........ एकमात्र और बची हुई आशा भी अपना दम तोड़ चुकी थी ,उनके जवाब देते ही घर में फिर से एक बार कोहराम सा मच गया....
तापसी का रो रो कर बुरा हाल था........ कि तभी अचानक चाय बागान का एक मजदूर शुभेंदु सरकार ,तपन बाबू के सामने आया और हाथ जोड़कर बोला कि दादा ,यहां से कई किलोमीटर दूर ,बीरोनझुली के जंगलों में प्राचीन आदिवासियों की एक रहस्यमई बस्ती है, जहां के शामन ओझा ,सांप के दंश से मरे हुए लोगों को फिर से जीवित कर देते है......
ये बात सुनकर वहां उपस्थित गांव के कुछ बड़े बुजुर्गों ने भी इस तथ्य का हवाला ,तपन बापू को दिया हालांकि तपन बाबू ने भी इस बात को सुन रखा था लेकिन पढ़े लिखे होने के कारण वो इस पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे ,पर क्या करते, इस व़क्त वो हालात के हाथों मजबूर थे और एक पिता की ममता उन्हें इस तथ्य पर विश्वास करने के लिए मजबूर कर रही थी ,अब एकमात्र सहारा बस उन्हीं आदिवासियों की बस्ती में जाकर अभिजीत का इलाज कराना था.....
उन दिनों रात का सफ़र ,बड़ा ही ख़तरनाक माना जाता था फिर भी गांव के कुछ साहसी और मज़बूत किस्म के लोग ,लाठी भाले और तलवार आदि के साथ ,आदिवासियों के रहस्यमई कबीले में जाने के शलिए तैयार हो गए...... तपन बाबू के पास एक दुनाली बंदूक हुआ करती थी उन दिनों ,..जिसका इस्तेमाल वो अक्सर चाय के बागान को हाथियों के उत्पात से बचाने के लिए किया करते थे ........कारतूस की एक बड़ी पेटी को साथ लेकर ,लालटेनों और मशालों की रोशनी में ,एक और बैलगाड़ी मे सभी मजदूरों और अभिजीत के मित्रों को लेकर वो रात में ही बीरोनझुली के भयानक जंगलो की ओर रवाना हो गए...
घनें जंगल के कच्चे ,और दुर्गम रास्तों को मशालों की रोशनी में पार करते हुए, दोनों बैलगाड़ियों के गाड़ीवान बैलों को जोर-जोर से हांकते हुए मंज़िल की ओर बढ़े चले जा रहे थे,, रह रह के जंगली जानवरों की डरावनी आवाज़ो को सुनकर बैल बिदकने लगते थे...... जितने भी लोग बैल गाड़ी पर सवार थे ,सबके सब हथियारों के साथ चौकन्ने थे क्योंकि वो जानते थे रात के व़क्त उन पर कभी भी जंगली जानवरों का हमला हो सकता है ..खुद तपन बाबू भी अपनी दुनाली बंदूक के साथ पूरी तरह से सतर्क थे, सफ़र था कि ख़त्म होने का मानो नाम ही नहीं ले रहा था....
भोर होने को थी...... रात भर के सफर से,, थके हारे ये लोग काली विद्याओं के जानकार शामन ओझाओ के रहस्यमय कबीले में पहुंच चुके थे........ लगभग तीस चालीस कच्चे घरों वाली एक बड़ी ही अजीब सी दुनियां थी यहां की.. बस्ती के बिल्कुल बीचोबीच कुछ अधजली सी धूनियां वहां पर सुलग रही थी जिनके पास , तंत्र मंत्र में प्रयोग होनें वाली सामग्रियों के अलावा कुछ मानव कपाल पड़े हुए थे ,,मज़दूर शुभेंदु सरकार वहां के कुछ लोगों से परिचित था और उनकी कबीलाई भाषा को बोल और समझ सकता था, लगभग दौड़ते हुए वो एक बड़े ही पुराने खंडहर से मकान के सामने गया और अजीब सी भाषा में चिल्लाते हुए ज़ोर-ज़ोर से उस पुराने से दरवाज़े को पीटनें लगा,..... तो अंदर से किसी औरत के जवाब को सुनकर वो रुक सा गया एक भयानक सी दिखने वाली औरत दरवाज़े को खोलकर बड़े ही गुस्से में बड़बड़ाते हुए बाहर आई तो शुभेंदु ने उसकी भाषा में , क्षमा याचना, करते हुए पूरे विवरण को कह सुनाया... जिसे सुनकर वो बहुत तेज़ी से भीतर गई और अपने साथ एक वृद्ध और अजीब सी वेशभूषा वाले व्यक्ति को बाहर लेकर आई ,,जिसका नाम शिमोईधूली था और वो इस कबीले का प्रमुख शामन ओझा था... उसने अपनी लाल और धधकती हुई बड़ी आंखों से तफन बाबू को घूरते हुए ऊपर से नीचे की ओर देखा ऐसा लग रहा था जैसे कि वो शामन ओझा एक ही नज़र में सारे मामले को समझ चुका हो .....तपन बाबू रोते और लड़खड़ाते हुए उसके पैरों पर गिर पड़े तो उसने अपनी भाषा में शुभेंदु को कुछ कहा ,, शुभेंदु ने तपन बाबू से कहा की ओझा कह रहा है ,,यदि नाग देवता वासुकी ने चाहा.... तो अभिजीत ठीक हो जाएगा ,ये सुनकर तपन बाबू को कुछ तसल्ली हुई लेकिन फिर भी वह लगातार रोते ही जा रहे थे....
शोरगुल सुनकर आसपास के अन्य कबीलाई ओझा भी अपने घरों से निकलकर बाहर आ गए,, उनमें से कुछ बड़ी ही डरावनी सी दिखने वाली महिलाएं भी वहां पर मौजूद थीं ........बड़ी ही अजीब सी वेशभूषा थी उन सभी की ,उन्होंने हड्डियों की बनी हुई मालाऐं ,अपने गले मे पहन रखी थी और सर पर जंगली जानवरों के सींघ और जंगली पक्षियों के रंग-बिरंगे पंख लगा रखे थे ,,रात की पी हुई महुए की कच्ची शराब की भभक उनके मुंह से आ रही थी ......उनकी बड़ी-बड़ी आंखें जिनमें सुर्ख़ लाल डोरे तैर रहे थे, वो उनके चेहरों को और भी ख़ौफ़नाक बना रहे थे ,,उन सभी ने अभिजीत को देखा और अपनी अबूझ भाषा में एक दूसरे से बात करने लगे,... उनकी सारी बातचीत के गोपनीय अर्थ को शुभेंदु सरकार अपने साथ आए हुए लोगों को बता रहा था.... जिसका मर्म यह था कि वह लोग अभिजीत की चिकित्सा करने के लिए तैयार थे और किसी बड़े ही जटिल तांत्रिक अनुष्ठान की तैयारी के बारे में बात कर रहे थे....
इधर अभिजीत के शरीर में तो मानो प्राण बचे ही ना थे पूरा शरीर नीला और लगभग ठंडा ही पड़ चुका था,नाक और कान से निकलता हुआ रक्त कबका सूख चुका था उसकी आंखें पलट कर सफेद पड़ चुकीं थी।
शुभेंदु सरकार को शिमोईधूली ने अपनी भाषा में कुछ निर्देश दिये जिसे सुनकर वो तपन बाबू के पास आया और बोला कि ओझा ने कहा है कि अनुष्ठान की समाप्ति के बाद, यदि अभिजीत के प्राण बच जाते हैं ,तो शामन ओझा को आने वाली पूर्णमासी के दिन 7 बकरे दो दुधारू गाय ,पांच वस्त्र और पांच धातुओं के पात्र ,दान स्वरूप देने होंगे.......... और उसके उपरांत सारे कबीले को भात मछली और शराब का भोजन कराना होगा.... जिसके लिए तपन बाबू सहर्ष ही तैयार हो गये........ और उन्होंने अपनी स्वीकृति शामन ओझा के सामने संकल्प लेते हुए की....
सारी क्रियाओं की तैयारी करते-करते सुबह के लगभग 10:00 बज चुके थे... तभी शिमोईधुली ने अपने दोनों युवा पुत्रों को पास की नदी से जल लाने का आदेश दिया तो उसके पुत्र कुछ अन्य लोगों के साथ बड़े-बड़े लोहे के डोमचोंं मे जल भर-भरकर लाने लगे........ किसी विशेष प्रकार के जंगली वृक्ष की बड़ी-बड़ी पत्तियों का एक बड़ा सा बिछौना बना कर उसके ऊपर अभिजीत को लिटा दिया गया और दो सांवली आदिवासी युवतियों को जोकि देखने में बड़ी ही सुंदर थीं उन के नैन नक्श बेहद तीख़े और लुभावने थे,.....उन्हें अपने पास बुला कर कुछ सांकेतिक निर्देश दिए फिर अन्य सहायक शामन ओझाओ को बुलाकर अभिजीत को निर्वस्त्र करने के आदेश दिऐ......
मृतप्रायः अभिजीत का पूरा शरीर लकड़ी की तरह सख्त़ हो चुका था.... ये देखकर तपन बाबू अपने आप को रोक नहीं पाए और फूट-फूट कर रोने लगे ,उन्हें शायद पूरी तरह से विश्वास नहीं हो पा रहा था कि अब उनका पुत्र जीवित होगा या नहीं...
अभिजीत के मित्र भी पूरी तरह से निराश हो चुके थे और वो सब के सब थके हारे एक तरफ बैठे हुए सारे क्रियाकलाप को एकटक निहार रहे थे...... साथ में आए हुए गांव के लोग तपन बाबू को बार-बार दिलासा दे रहे थे... किंतु उनके शब्दों में गहरी मायूसी साफ-साफ झलक रही थी....
दोनों आदिवासी युवतियां किसी पात्र में कुछ औषधियों का घोल ले कर आई और अभिजीत के पास आकर खड़ी हो गई ... और उन्होंने नदी से लाया हुआ जल किसी विशेष धातु से बने हुए तुंबी दार घड़ो मे भरकर एक ही धार मे बिना रुके हुए लगातार उसके माथे के बीच में और नाभि स्थल पर डालना प्रारंभ कर दिया........इधर शामन ओझा ने अपनी तेज आवाज़ में मंत्रोचार करते हुए बुझी हुई धूनी को फिर से प्रज्वलित कर दिया और उसके चारों तरफ नर मुंड कपाल रख दिये तथा अपनी विशेष तांत्रिक क्रियाओं को प्रारंभ कर दिया....... तब तक वहां के कुछ भले आदिवासियों ने भूख और थकान से बेहाल हो चुके गांव से आए हुए लोगों को काली चाय पिलाने के बाद मिष्टी दोई और बासी भात खिलाया... लेकिन तपन बाबू की भूख प्यास मानो मर सी गई थी बड़ी अनुनय-विनय के बाद वो बस कुछ घूंट चाय ही पी पाए...
शामन ओझाओं का मंत्रोचारण चारों दिशाओं में गूंज रहा था।
इधर गांव में संघमित्रा और तापसी घर के मंदिर में अपनी आराध्य देवी तारा मां के सामने अभिजीत के प्राणों की रक्षा के लिए अश्रुपूरित नेत्रों से निरंतर याचना और प्रार्थना किए जा रही थी... गांव की कुछ अन्य महिलाएं भी उनके साथ ही बैठी थी और उन्हें बार-बार दिलासाऐं दे रही थी....
ओझाओं की बस्ती के कुछ गोहारू जोगिया जिनकी संख्या लगभग बारह के आसपास रही होगी इन सभी की आयु तीस से चालीस के मध्य होगी...उनका अर्धनग्न तांबाई और मजबूत शरीर बड़ी बड़ी खूबसूरत आंखे ,कमर तक झूलते हुए काले और घने केश ,हाथ ,पैर और गले में मोटे मोटे चांदी के हसुले और कड़े इन्होंने पहन रखे थे इन सबों नें अपनी कमर में सांप की हड्डियों से बने हुए कमरबंद लपेट रखे थे और इनके हाथों में बड़ी ही खूबसूरत नक्काशीदार बीनें थी जिसमें असंख्य रंग बिरंगी कौड़ियां ,तांबे चांदी की मुद्राएं और खूबसूरत पत्थर जड़े हुए थे....
ये सब के सब अत्यंत गूढ़ और प्राचीन सर्प तंत्र के माहिर और दीक्षित सपेरे थे, लंबे लंबे डग भरते हुए ये सभी लोग शिमोईधूली के सामने बड़े अदब के साथ सर झुका कर खड़े हो गए और अपनी भाषा में उसका अभिवादन किया , शिमोईधूली ने आशीर्वाद की मुद्रा में अपने दोनों हाथो को उठाते हुए उन्हें कुछ निर्देश दिए जिसे सुनकर यह सारे सपेरे बस्ती के चारों ओर एक विशेष गोल घेरा बनाकर बैठ गये और अपनी-अपनी बीन को अपने माथे से छुआ कर उस पर अभिमंत्रित जल को छिड़कते हुए कुछ अश्फुट मंत्रोचार करने लगे , फिर इसके साथ ही साथ उन्होंने एक ही सुर में बीन बजाना प्रारंभ कर दिया .....बड़ी ही रहस्यमई और सम्मोहित करने वाली धुन में ये लोग समावेत बीन बजा रहे थे,
तभी न जाने कहां से आये हुऐ स्याह काले बादलों ने आसमान को पूरी तरह से ढक लिया था...तेज़ी से बहती हवा अचानक बहुत सर्द हो गई थी....घने काले बादलों में रह-रहकर गगनभेदी बिजली कड़क उठती थी........ तांत्रिक अनुष्ठान की क्रियाओं में लगे हुए सभी लोगों की आंखें बार-बार बस्ती के प्रवेश द्वार की ओर उठ जाती थी... ऐसा लग रहा था मानो सभी को किसी के आने की प्रतीक्षा हो......तपन बाबू के साथ साथ गांव से जितने लोग आए थे सभी को एक अभिमंत्रित सुरक्षा घेरा बनाकर उसके बीचो-बीच बैठा दिया गया था और उन्हें इस बात के कड़े निर्देश दे दिए गए थे कि चाहे कुछ भी हो कोई भी उस सुरक्षा घेरे से बाहर नहीं निकलेगा.....
इन सारी क्रियाओं में पूरा दिन बीत चुका था।
बादलों से घिरा हुआ शाम का अंधेरा धीरे धीरे बस्ती के इर्द-गिर्द फैलता जा रहा था लोग अपने-अपने घरों में दिया बाती कर रहे थे ,........बहुत सी लालटेनों और मशालों को रौशन कर दिया गया था...... सपेरों की बीन की धुन के साथ साथ शामन ओझाओ के मंत्रोच्चारण की आवाजें भी तेज़ होती जा रही थी..... तपन बाबू ने सुरक्षा घेरे में अपने साथ ही बैठे हुए शुभेंद्र सरकार से पूछा कि मुख्य द्वार पर इतनी रोशनी क्यों की जा रही है... आखिर किसके आने की प्रतीक्षा यहां सभी लोग कर रहे है ..तो शुभेंदु ने जो बताया उसे सुनकर सब की रीढ़ की हड्डी मे सिहरन दौड़ उठी........ शुभेंदु ने कहा कि जिस नाग ने अभिजीत को डसा है उसे शामन ओझा ने अपनी मंत्र शक्ति से यहां पर आमंत्रित किया है....ये सभी उसी की प्रतीक्षा कर रहे हैं... सभी की आंखें कौतूहल से फटी की फटी रह गई.....
तभी अचानक मुख्य द्वार पर किसी नाग के फुफकारने की भयंकर आवाज को सुनकर, गांव से आये हुऐ सभी लोग दहल गए , सबने देखा के नाग-नागिन का एक बड़ा ही भयंकर सियाह काला जोड़ा जिन की लंबाई बारह से पंद्रह फुट तो अवश्य ही रही होगी ,अपनी लाल सुर्ख अंगारे जैसी बड़ी बड़ी आंखों वाले, अपने बड़े बड़े फनों के साथ लगभग आदमकद अवस्था में लहरा रहे थे ..... अपनी लपलपाती हुई जीभ के साथ वो दोनों नाग नागिन बड़े ही भयंकर लग रहे थे, ओझा ने उनके ऊपर अभिमंत्रित राई के दाने फेंके ,इसके साथ ही नाग नागिन के जोड़े का क्रोध और भी बढ़ गया था वे दोनों अपने फन को लगातार ज़मीन पर पटकते हुए बड़े ही ज़ोरों से फुफकारने लगे,,,जोगिया सपेरों ने उनको चारों तरफ से घेर लिया था,..शामन ओझा उनके ऊपर अभिमंत्रित राई और जल के छींटे लगातार फेकता जा रहा था.....
अचानक एक बड़ा ही जबरदस्त परिवर्तन उनमें आ गया ,बीन की मदमस्त धुन में दोनों नाग-नागिन मंत्रमुग्ध होकर झूमने लगे ,ये शायद ओझा के मंत्र पूरित वस्तुओं के उन पर छिड़कने की वजह से हुआ था...... नाग नागिन का जोड़ा अब पूरी तरह से ओझा के नियंत्रण में आ चुका था.... यंत्र वत धीरे-धीरे रेंगते हुए वहां उपस्थिति धूंनी के समक्ष वे आ चुके थे..... दोनों ही अपने फ़नो को समेट कर ओझा की धूनी के सामने सर झुकाए बैठे हुए थे... ऐसा लग रहा था कि मानो वो दोनों ही किसी अक्षम्य अपराध बोध से ग्रस्त हो........ बड़ा ही तिलिस्माती माहौल वहां पर छाया हुआ था.... अब ओझा नें अपनी आंखों को खोलते हुए किसी विचित्र भाषा में उनसे वार्तालाप करना प्रारंभ किया ,जिसके साथ ही साथ वो दोनों बार-बार अपने फनो को आगे पीछे करते हुए मानसिक संवाद के द्वारा ओझा के प्रश्नों का मानो उत्तर सा दे रहे हो.......... ये सारी क्रिया लगभग आधे घंटे तक चलती रही....... रात के 11:00 बज चुके थे और सब के सब विस्फारित नेत्रों से सारे क्रियाकलाप को ,सांस रोके हुए देख रहे थे.....
अचानक ओझा ने चीखते हुए ,कोई आदेश उन दोनों नाग नागिन को दिया .,जिसको सुनकर जोगिया सपेरों ने फिर से वही रहस्यमई धुन अपनी-अपनी बीन पर छेड़ दी.......
अचानक नाग पीछे की ओर मुड़ा और धीरे-धीरे रेंगते हुए अभिजीत के पास पहुंचकर रुक गया...... आसपास खड़ी हुई कबीले की शामन औरते कई कदम पीछे हट चुकी थी, नाग फन को फैलाए हुए अभिजीत को झुक झुक कर देख रहा था अचानक नाग अभिजीत के पैरों के पास पहुंचा और जहां पर नाग दंश का घाव था, उस जगह को अपनी लपलपाती हुई जीभ से चाटने लगा, गांव के सभी लोग सहमे हुए इस अभूतपूर्व दृश्य को देख रहे थे ....तब शुभेंदु ने तपन बापू को बताया कि अब ये नागराज अभिजीत के सारे ज़हर को वापस खींच लेगा ,उसके बाद अभिजीत के शरीर सारा जहर निकल जाएगा ,सभी लोग दम साधे हुए इस रहस्यमई और आश्चर्यजनक घटना के प्रत्यक्षदर्शी बन रहे थे....
आकाश में रह रह कर बिजली कड़क रही थी ,गगन भेदी गर्जनाओ के साथ काले बादल गरज रहे थे..... नाग अपने ज़हर को धीरे-धीरे चूस रहा था, अपने फन को उठाकर वह बार-बार अभिजीत के चेहरे को देखता और फिर से ज़हर को चूसने में लग जाता..... नाग की दहकती हुई लाल अंगारे जैसी आंखें धीरे-धीरे नीली पड़ रही थीं... वो बार-बार अपने सारे शरीर को अलट पलट रहा था एैसा लग रहा था कि.... जैसे वह गहरे नशे में आ चुका हो धीरे-धीरे नाग शांत पड़ गया उसका मुख् अब अभिजीत के घाव से अलग हो चुका था अभिजीत के घाव से अब चमकता हुआ ,लाल रक्त बूंद बूंद करके बह रहा था.... नाग ने अपना सारा ज़हर चूस कर अपने प्राणों की आहुति दे दी थी........ आदिवासियों ने अभिजीत के शरीर को उठाकर एक चारपाई पर लेटा दिया था और उसके घाव से बह रहे रक्त को पोंछ कर साफ कर दिया..... उसके घाव पर किसी औषधि का लेप लगाकर पत्तों से लपेट कर उस पर एक कपड़ा बांध दिया....... लोगों के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब उन्होंने देखा की अभिजीत के शरीर में थोड़ी थोड़ी हरकत होनी शुरू हो गई थी और उसकी आंखें धीरे-धीरे खुल रही थी और बंद हो रही थी जीवन का संचार उसके शरीर में हो चुका था सारे कबीले में हर्ष की एक लहर दौड़ गई अभिमंत्रित सुरक्षा के घेरे हटा दिए गए थे अचानक लोगों ने देखा शामन ओझा के सामने सर झुका कर बैठी हुई नागिन धीरे-धीरे रेंगते हुए नाग के पास आई और उसके मृत शरीर से लिपट गई ...वह बार-बार अपने फन को उसके मृत शरीर पर फेर रही थी....... यह दृश्य देखकर वहां उपस्थित लगभग सभी लोगों की आंखें नम हो गई थी....... अचानक बादलों की गरज के साथ बड़ी तेज बारिश शुरु हो गई... अभिजीत को उठाकर ओझा के घर में ले जाया गया... तपन बाबू तेजी से आए और अभिजीत से लिपट गए उनकी आंखों में खुशी के आंसू थे अभिजीत भी बाबा कह कर उनसे लिपट गया......
रात भर मूसलाधार बारिश होती रही.. रह रह कर बादल गरज रहे थे ....... आकाश में लगातार चमक रही बिजली की चमक में लोगों ने बाहर देखा,,, नागिन बार बार अपने फन को नाग के शरीर पर पटक रही थी ऐसा लग रहा था मानो वो शोकाकुल होकर विलाप कर रही हो... बारिश अपने चरम पर थी ,ऐसा लग रहा था जैसे प्रकृति भी आज नागिन की वेदना को देखकर तड़प रही हो...... सभी लोग थके हारे जिसको जहां जगह मिली वहां पर बैठकर इस अनोखी घटना के बारे मे बातें कर रहे थे..........शामन ओझा गांजे की चिलम को खींचते हुए अपने सहायक ओझाओ के साथ बैठकर महुआ की मदमस्त शराब का आनंद ले रहा था वे सभी लोग बहुत खुश थे............ रात कब बीत गई किसी को पता ही न चला ..... सुबह जब लोग बाहर आए तो उन्होंने जो दृश्य देखा वो बहुत ही मार्मिक था ...नाग के मृत शरीर के साथ लिपटी हुई नागिन ने भी अपने प्राण त्याग दिए थे....... आदिवासी महिलाओं ने बड़े ही दुखी मन के साथ नाग नागिन का पारंपरिक श्रृंगार किया... ओझा ने एक छोटी सी चिता बना कर पारंपरिक रीति रिवाजों के अनुसार नाग और नागिन का अंतिम संस्कार अभिजीत के हाथों अग्नि देकर, करवा दिया.....
शुभेंदु सरकार को जो कहानी ओझा ने बताई वो तो और भी विस्मयकारी थी...... दरअसल बांस के झुरमुटों में जब अभिजीत बांस काट रहा था तो वहीं सूखी पत्तियों के नीचे नागिन के तुरंत जन्मे हुए छोटे छोटे बच्चे थे, जिनकी रक्षा उस समय नाग कर रहा था, तभी अनजाने में अभिजीत का पैर वहां पर पड़ गया ,अपने बच्चों के जीवन की रक्षा के लिए नाग ने अभिजीत को डस लिया था ....... और नाग जब अपना विष स्वयं खींचता है तो उसको अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ती है.....
शिमोईधूली ने बताया कि गोहारु जोगिया सपेरे अपनी ़सर्प तंत्र शक्ति के आधार पर ये पता लगा लेते है कि जिसको नाग ने डसा है,,वो व्यक्ति कहीं अपने किसी व्यक्तिगत हित या नाग को बिना किसी कारण के मारने की इच्छा तो नही रखता था,,
यदि ऐसा होता है तो ये नांग लोक के दंड का विधान है कि उस व्यक्ति की मृत्यु निश्चित है और हम लोग भी इस तरह के मामले में हाथ नहीं लगाते हैं ,लेकिन यदि नांग ने अकारण ही किसी भय के चलते किसी व्यक्ति को डस लिया हो ..... और वो व्यक्ति जीवन की आशा में हमारे पास आता है..... तो हम भगवान महादेव की इच्छा मानकर नांग दंश से पीड़ित व्यक्ति का उपचार करते हैं और दोषी नांग को अपना ज़हर पीने यहां आना ही पड़ता है.... अपने प्राणों की आहुति देना यही उस नाग का पश्चाताप होता है....
कुछ दिनों के बाद पूर्णमासी से 2 दिन पहले तपन बाबू ने ओझा से किया हुआ अपना वायदा पूरी तरह से निभाया,.... मांगी गई दान की सभी वस्तुएें,दुधारू गाय बकरे , शराब और भी काफी धन-धान्य,शिमोईधूली को उपहार स्वरूप दिया गया....... आज पूर्णमासी है और कबीले में जश्न का माहौल है....
दोस्तों आज भी संसार की कई प्राचीन सभ्यताओं में इसी तरह के रहस्मय रीति-रिवाज होते हैं, जिन पर आज का आधुनिक मानव सहज ही यक़ीन नहीं कर पाता है..... लेकिन आज भी कुछ ऐसी जगहे हैं जहां इस तरह की परंपराएं और रहस्यमय रीति रिवाज जीवित हैं.... उम्मीद करता हूं आपको इस सत्य घटनां नें अवश्य ही रोमांचित किया होगा और साथ ही साथ कुछ सोचने पर मजबूर भी किया होगा.......
आपका मित्र
डॉ मुकेश चित्रवंशी।
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*जे डी की कलम से* 🖋🙏🌹🙏
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