जी हाँ कुछ दिनों से ब्लॉगजगत की उडती उडती ख़बरों में सुनाई देने लगा है कि अब हिंदी ब्लॉगजगत में भी टोपी पहनाओ और टीका लगवाओ प्रतियोगि...
धीरे धीरे लगने लगा यह जो अच्छे लेखक और शायर हैं यह बहुत अधिक टिपण्णी और शोहरत के चक्कर में नहीं पड़ा करते और अक्सर लोगों का ध्यान भी उनकी और आकर्षित नहीं होता | मैं आज भी उन्ही को पढ़ा करता हूँ | फिर कुछ लोगों से संपर्क होने लगा और पता लगा की यहाँ ऐसे शायर बहुत हैं जो वास्तविक दुनिया में ग्राहक तलाशा करते थे की कोई तो मिले उनको सुनने वाला और दाद देने वाला | ब्लॉगजगत में टिपण्णी दो और टिपण्णी लो के दस्तूर ने उनकी समस्या को हल कर दिया | अब तो यह शायर कुछ भी कह देते हैं और लगते हैं २५ -५० ब्लॉग पे टिपण्णी कर के अपने ब्लॉग पर वाह वाह करने वालों का इंतज़ार | चलिए शायर के लिए तो माफी है क्यूंकि उनको दाद न मिले तो शेर नया निकलता ही नहीं | कुछ लेखको का यह हाल देखा कि अख़बारों और पत्रिकाओं में अपने लेख और कविताओं को छपवाने के चक्कर में न जाने कितनी बार मुर्ख बनाये जाते हैं फिर भी आस नहीं छोड़ते |
सुना है कि कुछ होशियार सियार ऐसे शोहरत के लालची लोगों को पहचान जाते हैं और तब शुरू होता है टोपी पहनाओ और तिलक लगाओ अभियान | मेरे लेख अखबार वाले नहीं छापते तो क्या हुआ मैं अखबार ही रजिस्टर करवा लूँगा और खुद के लेख और इंटरव्यू छाप के शोर मचाऊंगा और शोहरत कमाऊंगा | जी हाँ ऐसा भी सुना है | न जाने आज के यह ब्लॉगर महोदय क्या क्या हथकंडे अपनाते हैं केवल शोहरत और नाम के लिए ।बहुत से ब्लॉगर जब ऐसे सियारों के शिकार हो जाते हैं, बेवकूफ बन जाते हैं ,पैसे डूबा लेते हैं तो शर्म के मारे कुबूल भी नहीं पाते कि ,लोग उनपे हंसेंगे | यह भी संभव है की यह सब सुनी सुनायी बातें ही हों |
काश ऐसा हो यह जो कुछ सुना सच न हो ।
क्या ही अच्छा होता की लोग इन सब चक्करों में पड़ने की जगह लेखनी पे ध्यान देते और अगर अच्छा लिख नहीं पा रहे तो अच्छा सोंच तो सकते हैं | सामाजिक सरोकारों से जुड़ कर समाज के भले के लिए कुछ लिखे और जैसा आता है वैसा लिखें कौन सा आपको साहित्य का पुरस्कार जीतना है |याद रखें ऐसा करने पे न चाहते हुए भी पुरस्कार आपके पास चलके आएगा ।