“हमारे ब्लॉगर साथी अक्सर मुझे मेल किया करते हैं और पूछते हैं के आप अब अमन का पैगाम ब्लॉग पे उतना ध्यान नहीं दे रहे जितना पहले दिया करते थ...
“अमन का पैगाम “ पे आज भी सामाजिक सरोकारों से जुड़े लेख आया करते हैं और इसके पाठक भी दिन बा दिन बढ़ते जा रहे हैं| हाँ यह सत्य है की अब पहले की तरह से मैं यहाँ ध्यान कम दे प् रहा हूँ क्यों की मैं अपने वतन जौनपुर और मुंबई में ज़मीनी स्तर पे समाज में अमन और शांति के लिए काम करना अधिक पसंद कर रहा हूँ |
“अमन का पैगाम “ जिस समय मैंने शुरू किया यह उस समय की मांग थी क्यों कि ब्लॉगजगत में धर्म के नाम पे झगडे , नफरत की एक आग सी लगी हुई थी | ऐसे समय में मैंने सभी ब्लॉगर से समाज में अमन और शांति की अपील की और सबसे इस विषय पे लेख | मुझे सभी ब्लॉगर का सहयोग मिला और समीर लाल जी से लेकर अमित शर्मा तक जैसे ब्लॉगर से अपने अपने लेख भेजे |
राजेन्द्र स्वर्णकार जी ने तो अपने इन शब्दों के साथ “हिंदू कहां जाएगा प्यारे ! कहां मुसलमां जाएगा ? इस मिट्टी में जनमा जो , आख़िर वो यहीं समाएगा ! “ यह साबित कर दिया की इस समाज में अमन और शांति सभी चाहते हैं |
मेरा मकसद एक था और वो यह दिखाना की जो लोग धर्म के नाम पे अक्सर एक दुसरे से लड़ते देखे जाते रहे हैं वो भी इस समाज में अमन और शांति ही चाहते हैं | मेरी इस पहल के साथ साथ ब्लॉगजगत से धर्म के नाम पे झगड़ों में ९०% तक की कमी आ गयी और मुझे लगा हम सभी की मेहनत कामयाब हुई |
सवाल यह उठता है की जब सभी अमन और शांति चाहते हैं तो यह झगडे क्यों हुआ करते हैं? इसका एक ही जवाब है | हम समाज में अमन और शांति अपनी अपनी शर्तों पे चाहते हैं ,जो की सही नहीं है | इस दुनिया के सभी धर्म इंसान को इंसान बनाने आये थे और हमने उसी धर्म का इस्तेमाल समाज में शांति काएम करने की जगह झगडे के लिए और इंसानों को बांटने के लिए किया |
ब्लॉगजगत भी इस से अछूता नहीं रहा और मुझे भी बहुत से ब्लागरों ने एक इंसान, एक ब्लॉगर की जगह एक मुसलमान की नज़र से देखना शुरू किया और इस ब्लॉग के लिए लोगों के दिलों में शक पैदा करने की कोशिश करते रहे | लेकिन सत्य के आगे किसी की नहीं चलती और आज सभी ब्लॉगर इस बात से सहमत हैं की “अमन का पैगाम “ आज की आवश्यकता है और इसने हमेशा समाज में अमन और शती के लिए काम किया है |
जहाँ मुझे इस बात की ख़ुशी है की मुझे अपने ब्लॉगर भाई बहनों का सहयोग बड़े पैमाने पे मिले वंही इस बात का दुःख भी है की मुझे कुछ ब्लॉगर भाइयों ने मुझे एक इंसान की जगह मुसलमान का नाम दिया | यकीनन धर्म के नाम पे इंसानों को बांटने वाले इस ब्लॉगजगत में बहुत कम हैं लेकिन यह एक दो ही ब्लॉगजगत के खुशाल माहोल को गन्दा करने के लिए काफी हैं |
अर्चना जी का मैं बहुत ही आभारी हूँ की उन्होंने इस अमन के पैगाम को अपनी आवाज़ दी और इसे लोगों तक फैलाने में सहयोग दिया |
“अमन का पैगाम “ से मैंने हमेशा ऐसे मुद्दे उठाये जिनसे समाज में कोई बुराई फैलती हो या इस ब्लॉगजगत में कहीं नफरत फैलती हो | चाहे यह मुद्दा टिपण्णी माफियाओं का रहा हो, या ब्लॉगजगत के व्यापारीकरण का, चाहे यह मुद्दा धर्म के नाम पे नफरत फैलाने का रहा हो या महिलाओं के साथ अन्याय का रहा हो, यह मुद्दा भ्रष्टाचार का रहा हो या अनैतिक संबंधो का ,यह मुद्दा समाज में दोहरे चरित्र वाले लोगों का रहा हो या गन्दी मानसिकता का रहा हो | ज़ुल्म के खिलाफ और आतंकवाद के खिलाफ इस ब्लॉग से हमेशा आवाज़ उठाई गयी और लोगों से उसे सराहा भी |
मैं अक्सर बेवजह की टिपण्णी करने दूर रहा करता हूँ और टिपण्णी वंही करता हूँ जहां मुझे लगता है की कुछ कहना आवश्यक है या लेख ,कविता इस काबिल है की उसकी तारीफ की जाए | किसी ब्लॉगर के लिए यह संभव नहीं की वो हर दिन प्रकाशित सारे लेख या कविता पढ़ के टिपण्णी करे और बेवकूफ बनाना मेरी फितरत में नहीं | टाइम पास ब्लोगिंग और टाइम पास टिपण्णी दोनों समय की बर्बादी हुआ करती है |
“अमन और शांति “ की इस राह पे अपना यह कारवां आगे बढ़ता रहेगा चाहे वो “अमन का पैगाम “ ब्लॉग हो या जौनपुर का समाज |
मुझे अपने शुभचिंतको और साथियों पे गर्व है और उनसे यह वादा है की इस अमन का पैगाम ब्लॉग से हमेशा सामाजिक सरोकारों से जुड़े लेख आपके सामने आते रहेंगे | जो भी प्यार से मिला हम उसी के हो लिए के साथ अगले लेख का इंतज़ार करें |