कल पेश किए गए " वैलेंटाइन डे और प्यार के नाम पे अनैतिक सम्बन्ध" नामक लेख मैं मैंने दो विषयों पे चर्चा की थी हमारे ब्लोगर साथ...
कल पेश किए गए "वैलेंटाइन डे और प्यार के नाम पे अनैतिक सम्बन्ध" नामक लेख मैं मैंने दो विषयों पे चर्चा की थी हमारे ब्लोगर साथियों ने उसपे अपने विचार प्रकट कर के पूरा सहयोग भी दिया. वैलेंटाइन डे पे तो सभी खुल के बोले ,जिसको मैंने एक पोस्ट की शक्ल दे के अपने ब्लॉग बेज़बान से पेश किया. वैलेंटाइन डे हम हिंदुस्तानिओं के नज़रिए पे पर शायद इस से अच्छी पोस्ट संभव नहीं क्यों की उस पोस्ट मैं २४ ब्लोगेर्स के विचार सम्मिलित किये गए हैं.
लेकिन अनैतिक संबधों से बचने के सही उपाय के बारे मैं बहुत ही कम लोग बोले.शायद इसका यह भी कारण हो की हम इस समस्या का हल तलाश ही नहीं पा रहे हैं और जैसा चल रहा है उसी को नियति मान बैठे हैं और असहमति के बावजूद उसको वैसे ही चलते रहने देने पे मजबूर है.या फिर हमने अनचाहे रूप से ऐसे संबंधों को सहमती दे दी है.
मेरे सवाल था की " क्या वो सेक्स की इच्छा जो १३-१५ साल से ही युवा महसूस करना शुरू कर देता है हमारे शादी की सही उम्र १८-२७ या ३५ कर देने से ख़त्म हो जाएगी?यदि नहीं तो १० से २० वर्ष (शादी होने तक) इस इच्छा को हमारा युवा दबा के रखेगा , यह आशा करना और संस्कार देने के भाषण देना क्या हकीकत से आंखें मोड़ना नहीं है?क्या ऐसा नहीं लगता की हम सेक्स की सही उम्र की हकीकत से आँखें मोड़ के अपने युवाओं को शादी से पहले नाजायज शारीरिक संबध बनाने के लिए मजबूर करते हैं और इसका इलज़ाम भी उन्ही युवाओं पे रखते हैं. "
अब ज़रा देखिये शादी की उम्र और शारीरिक संबंधों पे पाठकों ने क्या विचार प्रकट किए हैं.मैंने १० ऐसे विचारों को सम्मिलित किया है जो इस विषय पे कोई दिशा दे रहे हैं.
इन सभी टिप्पणिओं मैं पाठकों ने या तो यह कह दिया की आत्मनिर्भर होने पे ही विवाह किया जाना चाहिए या फिर कुछ ने शादी की १७ से २२ के बीच की उम्र पे सहमती जताई. मुझे लगता है की दोनों ही स्थिति मैं हमने अपनी सहूलियतों की आवाज़ को तो सुना लेकिन शरीर की आवाज़ को सुनने से इनकार कर दिया.
किसी लड़के को आत्मनिर्भर होने के लिए पढाई पूरी कर के नौकरी मिलने तक का सफ़र तय करना पड़ता है और इस सफ़र को तय करते करते लड़का २२ से 30 वर्ष का हो चुका होता है. अब कमाने के बाद भी यह कहा जाता है की कुछ वर्ष नौकरी के के लड़का ज़िम्मेदारी उठाने लायक अपनी हैसीयत बना ले तब शादी करें और इस प्रकार २५ से ३५ वर्ष मैं शादी लड़कों की हुआ करती है.
और लड़की का रिश्ता तलाशना हमारे समाज मैं उसके २० वर्ष की हो जाने के बाद हुआ करता है. एक तो रिश्ते जल्दी मिलते नहीं , फिर मिल गए तो दहेज़ की फ़िक्र मैं शादी की उम्र बढ़ती ही जाती है.
यह समझ लें की शरीर की ज़रुरत को पूरा करने के लिए १० से २० साल का इंतज़ार से सभी युवाओं को गुज़रना पड़ता है और संस्कार के नाम पे अपनी सेक्स की इच्छा को या तो दबाना पड़ता है या फिर उसको ग़लत रिश्ते बना के पूरा करना पड़ता है .
जब यही युवा आपस मैं चोरी छुपे शारीरिक सम्बन्ध बना लेना चाहते हैं तो ना आत्मनिर्भर होने की शर्त है ना दहेज़ की और ना ही बेकार की रस्मों की आवश्यकता हुआ करती है. क्या इतनी असानिओं के बाद युवाओं को शारीरिक सम्बन्ध बनाने से संस्कार का भाषण दे या मनोवैज्ञानिक स्तर पे ट्रीट कर के रोका जा सकना आसान है?
वैसे भी हमारे समाज में ‘सेक्स’ अथवा ‘यौन’ को एक ऐसे विषय के रूप में सहज स्वीकार्यता प्राप्त है जो पर्दे के पीछे छिपाकर रखने वाला है.इसलिए अधिकतर युवा इसको सीखते भी बाहर से ही हैं और अपनी जिज्ञासा एवम इच्छा को शांत भी बाहर से चोरी छिपे करने की कोशिश किया करते हैं और नतीजे मैं बहुत सी अनचाही बिमारियों औरटीनएज़ प्रेगनेन्सी, गर्भपात, यौनजनित रोग, आत्महत्या जैसी स्थितियों का शिकार हो जाते हैं. यौन शिक्षा’ हमारे युवा को इन मुश्किलों से तो कुछ हद तक बचा लेगी लेकिन उनकी किसी जिज्ञासा को और शारीरिक ज़रुरत को शान्त नहीं कर सकेगी.
भारतवर्ष की बात करें तो यहाँ के लिए डॉ श्याम गुप्ता जी का मशविरा की लडकियों के लिये १७-१८ वर्ष ही ठीक है, लडकों के लिये..२०-२२ ही सबसे सही है. और यदि इसको किसी ख़ास उम्र से ना जोडें तो भोजपुरी खोज जी का मशविरा की "विवाह की उम्र ऐसी हो जिसमे जच्चा बच्चा को कोई खतरा न हो" सबसे अच्छा मशविरा है.
दहेज़ जैसी सामाजिक बुराई को ख़त्म कर के और आत्मनिर्भर होने का इंतज़ार किए बिना शादी कर देने से ही इस समस्या का हल संभव है. दहेज़ पे तो शायद कोई पाठक आपत्ति ना जताए (चाहे लेता रहे) लेकिन आत्मनिर्भर हुए बिना शादी के मशविरे पे असहमति अवश्य आएगी. असहमति से समस्या का समाधान तो संभव नहीं इसलिए हम सभी को इस समस्या का हल मिल के तलाशना होगा या फिर अनैतिक शारीरिक सम्बन्ध को सहमती दे देनी होगी जो की किसी भी हाल मैं सही नहीं होगा.
एक सवाल यह भी है की यदि आप के केवल २ लड़के हैं और आप उनकी शादी करवा दें तो आप अपनी बहु की ज़िम्मेदारी बेटे के आत्मनिर्भर होने तक क्यूं नहीं उठा सकते? चलिए कोई मुश्किल होगी तो यह बताएं यदि आप को इश्वेर ने २ बेटे और दो बेटी दी होती तो आप उसकी परवरिश करते या नहीं?
मुझे इसमें कोई बुराई नहीं दिखती और ना ही कोई बड़ी रुकावट ही नज़र आती है. हाँ लड़के वालों के लिए यह समस्या अवश्य पैदा हो सकती है की दहेज़ जो आने वाला था अब नहीं आएगा और ऊपर से दो लड़कियों पे परवरिश का खर्च और बढ़ जाएगा.
यह काम यदि सभी करने लगें तो समाज मैं संतुलन बन सकता है. अपनी अपनी बेटी को पालने और दहेज़ की चिंता से बेहतर है की आप सभी एक दुसरे की बेटियों को बहु की शक्ल मैं पालें, तब जा कर कहीं शादी के पहले अनैतिक संबंधों जैसी समस्या का हल संभव है.
इश्वेर ने इंसान को बनाया तो उसकी नैसर्गिक इच्छाओं जैसे भूख लगना, प्यास लगना,सेक्स की इच्छा, नींद का आना इत्यादि , को पूरा करने के ज़रिये भी बनाए. अन्न पैदा किया, पानी दिया , दो विपरीत लिंगी प्राणियों को पैदा किया. यह हम हैं की उसकी दी हुई नेमतों को भी सही वक़्त और सही तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पाते.
पाठकों के विचार भी आमंत्रित हैं
लेकिन अनैतिक संबधों से बचने के सही उपाय के बारे मैं बहुत ही कम लोग बोले.शायद इसका यह भी कारण हो की हम इस समस्या का हल तलाश ही नहीं पा रहे हैं और जैसा चल रहा है उसी को नियति मान बैठे हैं और असहमति के बावजूद उसको वैसे ही चलते रहने देने पे मजबूर है.या फिर हमने अनचाहे रूप से ऐसे संबंधों को सहमती दे दी है.
मेरे सवाल था की " क्या वो सेक्स की इच्छा जो १३-१५ साल से ही युवा महसूस करना शुरू कर देता है हमारे शादी की सही उम्र १८-२७ या ३५ कर देने से ख़त्म हो जाएगी?यदि नहीं तो १० से २० वर्ष (शादी होने तक) इस इच्छा को हमारा युवा दबा के रखेगा , यह आशा करना और संस्कार देने के भाषण देना क्या हकीकत से आंखें मोड़ना नहीं है?क्या ऐसा नहीं लगता की हम सेक्स की सही उम्र की हकीकत से आँखें मोड़ के अपने युवाओं को शादी से पहले नाजायज शारीरिक संबध बनाने के लिए मजबूर करते हैं और इसका इलज़ाम भी उन्ही युवाओं पे रखते हैं. "
अब ज़रा देखिये शादी की उम्र और शारीरिक संबंधों पे पाठकों ने क्या विचार प्रकट किए हैं.मैंने १० ऐसे विचारों को सम्मिलित किया है जो इस विषय पे कोई दिशा दे रहे हैं.
- हमे सिर्फ अपने बच्चों के करीब रह कर उन्हें सही और गलत पहलुओं से अवगत करवाते रहना चाहिए और सिर्फ ये जानने की कोशिश करनी चाहिए की क्या वो सही दिशा मै जा रहें है या नहीं ? Minakshi Pant
- अपने बच्चों के साथ ज्यादा समय बिताना होगा और दोस्ती का रिश्ता कायम करना होगा. वीना सैद
- Iqbal साहब ने कहा की जिस्म की फितरती ज़रुरत को खूबसूरत लव्जों और भाषणों से पूरा नहीं किया जा सकता.
- विवाह की उम्र ऐसी हो जिसमे जच्चा बच्चा को कोई खतरा न हो ,मेरे ख्याल से लङकीयोँ की उम्र 19 व लङकोँ की 22 वर्ष होनी चाहिये Bhojpurikhoj
- मेरी समझ से जब तक आज के युवाओं को मनोवैज्ञानिक स्तर पर नहीं ट्रीट किया जाता, इस वातावरण से मुक्ति पाना असम्भव है।ज़ाकिर अली ‘रजनीश’
- यहाँ सिर्फ युवा ही नहीं और बड़े भी अपनी वासनाओं को संयमित करने कि क्षमता खो चुके हैं तभी तो स्कूल, टैक्सी , घर कहीं भी दुराचार की घटनाएँ होती रहती हैं. रेखा श्रीवास्तव
- वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए युवा पीढ़ी को आत्मनिर्भर होने पर ही विवाह करना चाहिए .वाणी गीत
- जब नर नारी में मैथुन की इच्छा पैदा हो जाए तो समझ लीजिए कि अब वे गर्भ धारण कर सकने और करा सकने के योग्य हो चुके हैं ।DR. ANWER जमाल
- अपने से छोटों को यौन शिक्षा दीजिये, जिससे उन्हें पता हो की उन्हें सम्बन्ध किस उम्र में बनाने हैं, क्योंकि कई बार तो जिज्ञासा के कारण लोग ये कदम उठा बैठते हैं..शादी की बात करें तो आज की पीढी independent बनना चाहती है. POOJA...
- विवाह की उम्र..लडकियों के लिये १७-१८ वर्ष ही ठीक है, लडकों के लिये..२०-२२.....उम्र बढाने का कोई लाभ नहीं है Dr. shyam gupta
इन सभी टिप्पणिओं मैं पाठकों ने या तो यह कह दिया की आत्मनिर्भर होने पे ही विवाह किया जाना चाहिए या फिर कुछ ने शादी की १७ से २२ के बीच की उम्र पे सहमती जताई. मुझे लगता है की दोनों ही स्थिति मैं हमने अपनी सहूलियतों की आवाज़ को तो सुना लेकिन शरीर की आवाज़ को सुनने से इनकार कर दिया.
किसी लड़के को आत्मनिर्भर होने के लिए पढाई पूरी कर के नौकरी मिलने तक का सफ़र तय करना पड़ता है और इस सफ़र को तय करते करते लड़का २२ से 30 वर्ष का हो चुका होता है. अब कमाने के बाद भी यह कहा जाता है की कुछ वर्ष नौकरी के के लड़का ज़िम्मेदारी उठाने लायक अपनी हैसीयत बना ले तब शादी करें और इस प्रकार २५ से ३५ वर्ष मैं शादी लड़कों की हुआ करती है.
और लड़की का रिश्ता तलाशना हमारे समाज मैं उसके २० वर्ष की हो जाने के बाद हुआ करता है. एक तो रिश्ते जल्दी मिलते नहीं , फिर मिल गए तो दहेज़ की फ़िक्र मैं शादी की उम्र बढ़ती ही जाती है.
यह समझ लें की शरीर की ज़रुरत को पूरा करने के लिए १० से २० साल का इंतज़ार से सभी युवाओं को गुज़रना पड़ता है और संस्कार के नाम पे अपनी सेक्स की इच्छा को या तो दबाना पड़ता है या फिर उसको ग़लत रिश्ते बना के पूरा करना पड़ता है .
जब यही युवा आपस मैं चोरी छुपे शारीरिक सम्बन्ध बना लेना चाहते हैं तो ना आत्मनिर्भर होने की शर्त है ना दहेज़ की और ना ही बेकार की रस्मों की आवश्यकता हुआ करती है. क्या इतनी असानिओं के बाद युवाओं को शारीरिक सम्बन्ध बनाने से संस्कार का भाषण दे या मनोवैज्ञानिक स्तर पे ट्रीट कर के रोका जा सकना आसान है?
वैसे भी हमारे समाज में ‘सेक्स’ अथवा ‘यौन’ को एक ऐसे विषय के रूप में सहज स्वीकार्यता प्राप्त है जो पर्दे के पीछे छिपाकर रखने वाला है.इसलिए अधिकतर युवा इसको सीखते भी बाहर से ही हैं और अपनी जिज्ञासा एवम इच्छा को शांत भी बाहर से चोरी छिपे करने की कोशिश किया करते हैं और नतीजे मैं बहुत सी अनचाही बिमारियों औरटीनएज़ प्रेगनेन्सी, गर्भपात, यौनजनित रोग, आत्महत्या जैसी स्थितियों का शिकार हो जाते हैं. यौन शिक्षा’ हमारे युवा को इन मुश्किलों से तो कुछ हद तक बचा लेगी लेकिन उनकी किसी जिज्ञासा को और शारीरिक ज़रुरत को शान्त नहीं कर सकेगी.
भारतवर्ष की बात करें तो यहाँ के लिए डॉ श्याम गुप्ता जी का मशविरा की लडकियों के लिये १७-१८ वर्ष ही ठीक है, लडकों के लिये..२०-२२ ही सबसे सही है. और यदि इसको किसी ख़ास उम्र से ना जोडें तो भोजपुरी खोज जी का मशविरा की "विवाह की उम्र ऐसी हो जिसमे जच्चा बच्चा को कोई खतरा न हो" सबसे अच्छा मशविरा है.
दहेज़ जैसी सामाजिक बुराई को ख़त्म कर के और आत्मनिर्भर होने का इंतज़ार किए बिना शादी कर देने से ही इस समस्या का हल संभव है. दहेज़ पे तो शायद कोई पाठक आपत्ति ना जताए (चाहे लेता रहे) लेकिन आत्मनिर्भर हुए बिना शादी के मशविरे पे असहमति अवश्य आएगी. असहमति से समस्या का समाधान तो संभव नहीं इसलिए हम सभी को इस समस्या का हल मिल के तलाशना होगा या फिर अनैतिक शारीरिक सम्बन्ध को सहमती दे देनी होगी जो की किसी भी हाल मैं सही नहीं होगा.
एक सवाल यह भी है की यदि आप के केवल २ लड़के हैं और आप उनकी शादी करवा दें तो आप अपनी बहु की ज़िम्मेदारी बेटे के आत्मनिर्भर होने तक क्यूं नहीं उठा सकते? चलिए कोई मुश्किल होगी तो यह बताएं यदि आप को इश्वेर ने २ बेटे और दो बेटी दी होती तो आप उसकी परवरिश करते या नहीं?
मुझे इसमें कोई बुराई नहीं दिखती और ना ही कोई बड़ी रुकावट ही नज़र आती है. हाँ लड़के वालों के लिए यह समस्या अवश्य पैदा हो सकती है की दहेज़ जो आने वाला था अब नहीं आएगा और ऊपर से दो लड़कियों पे परवरिश का खर्च और बढ़ जाएगा.
यह काम यदि सभी करने लगें तो समाज मैं संतुलन बन सकता है. अपनी अपनी बेटी को पालने और दहेज़ की चिंता से बेहतर है की आप सभी एक दुसरे की बेटियों को बहु की शक्ल मैं पालें, तब जा कर कहीं शादी के पहले अनैतिक संबंधों जैसी समस्या का हल संभव है.
इश्वेर ने इंसान को बनाया तो उसकी नैसर्गिक इच्छाओं जैसे भूख लगना, प्यास लगना,सेक्स की इच्छा, नींद का आना इत्यादि , को पूरा करने के ज़रिये भी बनाए. अन्न पैदा किया, पानी दिया , दो विपरीत लिंगी प्राणियों को पैदा किया. यह हम हैं की उसकी दी हुई नेमतों को भी सही वक़्त और सही तरीके से इस्तेमाल नहीं कर पाते.
पाठकों के विचार भी आमंत्रित हैं