मैं ने जब इस हिंदी ब्लॉगजगत मैं क़दम रखा , तो बहुत से विषय थे जिनपे मैं लिखना चाहता था. जिसमें सबसे ऊपर था हिंदुस्तान मैं अपनी राष्ट्रभाषा ...
मैं ने जब इस हिंदी ब्लॉगजगत मैं क़दम रखा , तो बहुत से विषय थे जिनपे मैं लिखना चाहता था. जिसमें सबसे ऊपर था हिंदुस्तान मैं अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी भाषा का इस्तेमाल. लेकिन उस समय मुझे दिखाई यह दिया की यहाँ ब्लॉगजगत मैं कोई धर्म युद्ध चल रहा है ऐसे मैं फैसला लिया की चलो शुरू करते हैं "अमन के पैग़ाम" से. मैं खुशकिस्मत हूँ की मुझे बहुत कम समय मैं आप लोगों साथ मिल गया और आज "अमन का पैग़ाम" लोगों के दिलों पे असर कर रहा है.
इंसान को समाजी एतेबार से एक दूसरे की मदद की ज़रूरत होती है. यह कहा जा सकता है कि एक इंसान ज़िन्दगी बसर करने के लिए समाज के दूसरे सभी लोगों का का मोहताज होता है और चूँकि वह उनका मोहताज है इस लिए उसे उनके वुजूद और ख़िदमात का शुक्रिया अदा करना चाहिए. इसलिए सबसे पहले तो मैं अपने सभी ब्लॉगर साथिओं का शुक्रिया अदा करता हूँ, जिनकी वजह से मैं कामयाबी के साथ यह काम कर पा रहा हूँ. आशा करता हूँ की आगे भी आप सबका प्रेम मेरे इस शांति सन्देश से बना रहेगा.
जब बात शुक्रिये की चली है तो आज इस की अहमियत पे कुछ कहता चलूँ.
तरक़्क़ी याफ़्ता व मोहज़्ज़ब समाजों में छोटी छोटी और मामूली मामूली बातों पर शुक्रिया अदा करने का रिवाज है, लेकिन पिछड़े समाज़ों में ऐसा कम ही देखने को मिलता है. उनकी सोंच यही होती है कि चौकीदार तो पहरा देने के पैसे लेता है,ड्राईवर है तो ड्राईवरी के पैसे लेता है. ऐसे मैं धन्यवाद किस बात के लिए दिया जाए. यह सोंच हक़ीएक़त मैं सही नहीं है.
एक ड्राईवर जिसकी ज़िम्मेदारी हमें एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाना है अगर हम अपनी मंज़िल पर उतरते वक़्त उसका शुक्रिया अदा कर दें तो हमारा यह शुक्रिये का एक जुमला, उसकी पूरे दिन की थकन को दूर कर देगा और वह अपने काम को और ज़्यादा खुशी के साथ अंजाम देगा.
अगर घरेलू ज़िन्दगी में मर्द, अपनी बीवी की ज़हमतों के बदले में एक बार भी उसका शुक्रिया अदा न करे, या अगर बीवी, शौहर की बेशुमार ज़हमतों के बदले एक बार भी ज़बान पर शुक्रिये के अलफ़ाज़ न लाये तो ऐसे घर में कुछ मुद्दत के बाद अगर लडाई झगड़ा न भी हुआ तो मुहब्बत व ख़ुलूस यक़ीनी तौर रुख़सत हो जायेगा, और ऐसी फ़ज़ा में सिर्फ़ घुटन की ज़िन्दगी ही बाक़ी रह जायेगी.
कोई भी इंसान जब भी आपकी मदद करे या आप किसी कि मदद लें तो उसका शुक्रिया अपनी सलाहियतों के मुताबिक करें, क्योंकि यह उसका हक है. हम इंसानों का फ़रीज़ा यह है कि नेमतों को अल्लाह की इनायत समझे और उसका शुक्र अदा करे, लेकिन चूँकि अल्लाह की इस नेअमत व रहमत के पहुँचने में इंसान जरिया बना है, लिहाज़ा उसका भी शुक्रिया अदा करना चाहिए.
इस्लामी रिवायातों में मिलता है कि जिसने मदद करने वाले का शुक्र अदा नही किया, उसने अल्लाह का भी शुक्र अदा नही किया. ऐसा इंसान जो किसी से मदद ले के अल्लाह का शुक्र तो अदा करता है लेकिन जिस इंसान ने मदद की उसका शुक्रिया अदा नहीं करता उसके लिए हजरत मुहम्मद (स.अ.व०) ने फ़रमाया की ऐसे इंसान से अल्लाह कहेगा : तूने उनका शुक्र अदा नही किया जिनके ज़रिये से मेरी नेमतें तुझ तक पहुचती थीं, इस लिए तुझे जन्नत जाने का हक हासिल नहीं.
शुक्रिया अल्लाह का जिसने मुझे यह तौफीक दी की आप सब के बीच "अमन के पैग़ाम को ले के आऊँ, शुक्रिया आप सब का जिन्होंने मेरा स्वागत खुले दिल से किया और मेरा साथ दिया और शुक्रिया उनका भी जिन्होंने मुझे मेरी कमियाँ बताईं और मैं खुद मैं सुधार ला सका.
आशा करता हूँ की आगे भी आप सबका प्रेम मेरे इस शांति सन्देश से बना रहेगा.
इंसान को समाजी एतेबार से एक दूसरे की मदद की ज़रूरत होती है. यह कहा जा सकता है कि एक इंसान ज़िन्दगी बसर करने के लिए समाज के दूसरे सभी लोगों का का मोहताज होता है और चूँकि वह उनका मोहताज है इस लिए उसे उनके वुजूद और ख़िदमात का शुक्रिया अदा करना चाहिए. इसलिए सबसे पहले तो मैं अपने सभी ब्लॉगर साथिओं का शुक्रिया अदा करता हूँ, जिनकी वजह से मैं कामयाबी के साथ यह काम कर पा रहा हूँ. आशा करता हूँ की आगे भी आप सबका प्रेम मेरे इस शांति सन्देश से बना रहेगा.
जब बात शुक्रिये की चली है तो आज इस की अहमियत पे कुछ कहता चलूँ.
तरक़्क़ी याफ़्ता व मोहज़्ज़ब समाजों में छोटी छोटी और मामूली मामूली बातों पर शुक्रिया अदा करने का रिवाज है, लेकिन पिछड़े समाज़ों में ऐसा कम ही देखने को मिलता है. उनकी सोंच यही होती है कि चौकीदार तो पहरा देने के पैसे लेता है,ड्राईवर है तो ड्राईवरी के पैसे लेता है. ऐसे मैं धन्यवाद किस बात के लिए दिया जाए. यह सोंच हक़ीएक़त मैं सही नहीं है.
एक ड्राईवर जिसकी ज़िम्मेदारी हमें एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाना है अगर हम अपनी मंज़िल पर उतरते वक़्त उसका शुक्रिया अदा कर दें तो हमारा यह शुक्रिये का एक जुमला, उसकी पूरे दिन की थकन को दूर कर देगा और वह अपने काम को और ज़्यादा खुशी के साथ अंजाम देगा.
अगर घरेलू ज़िन्दगी में मर्द, अपनी बीवी की ज़हमतों के बदले में एक बार भी उसका शुक्रिया अदा न करे, या अगर बीवी, शौहर की बेशुमार ज़हमतों के बदले एक बार भी ज़बान पर शुक्रिये के अलफ़ाज़ न लाये तो ऐसे घर में कुछ मुद्दत के बाद अगर लडाई झगड़ा न भी हुआ तो मुहब्बत व ख़ुलूस यक़ीनी तौर रुख़सत हो जायेगा, और ऐसी फ़ज़ा में सिर्फ़ घुटन की ज़िन्दगी ही बाक़ी रह जायेगी.
कोई भी इंसान जब भी आपकी मदद करे या आप किसी कि मदद लें तो उसका शुक्रिया अपनी सलाहियतों के मुताबिक करें, क्योंकि यह उसका हक है. हम इंसानों का फ़रीज़ा यह है कि नेमतों को अल्लाह की इनायत समझे और उसका शुक्र अदा करे, लेकिन चूँकि अल्लाह की इस नेअमत व रहमत के पहुँचने में इंसान जरिया बना है, लिहाज़ा उसका भी शुक्रिया अदा करना चाहिए.
इस्लामी रिवायातों में मिलता है कि जिसने मदद करने वाले का शुक्र अदा नही किया, उसने अल्लाह का भी शुक्र अदा नही किया. ऐसा इंसान जो किसी से मदद ले के अल्लाह का शुक्र तो अदा करता है लेकिन जिस इंसान ने मदद की उसका शुक्रिया अदा नहीं करता उसके लिए हजरत मुहम्मद (स.अ.व०) ने फ़रमाया की ऐसे इंसान से अल्लाह कहेगा : तूने उनका शुक्र अदा नही किया जिनके ज़रिये से मेरी नेमतें तुझ तक पहुचती थीं, इस लिए तुझे जन्नत जाने का हक हासिल नहीं.
शुक्रिया अल्लाह का जिसने मुझे यह तौफीक दी की आप सब के बीच "अमन के पैग़ाम को ले के आऊँ, शुक्रिया आप सब का जिन्होंने मेरा स्वागत खुले दिल से किया और मेरा साथ दिया और शुक्रिया उनका भी जिन्होंने मुझे मेरी कमियाँ बताईं और मैं खुद मैं सुधार ला सका.
आशा करता हूँ की आगे भी आप सबका प्रेम मेरे इस शांति सन्देश से बना रहेगा.