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आज आवश्यकता है यह विचार करने की के हम हैं कौन?

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एक समय था जब धर्म की बातें लोग बहुत ध्यान से सुना करते थे, और अपने बच्चों  को भी सुनाते  थे, क्योंकि हमारा विश्वास था धर्म इंसान के चरित्र ...

एक समय था जब धर्म की बातें लोग बहुत ध्यान से सुना करते थे, और अपने बच्चों  को भी सुनाते  थे, क्योंकि हमारा विश्वास था धर्म इंसान के चरित्र को अच्छा बनाता है. अच्छे संस्कार मिलते हैं धार्मिक  बातें सुनके. आज वैसे भी इमानदारी तरक्की  की निशानी नहीं, लोग बच्चे को ना पूरा इमानदार बनाना चाहते हैं और ना ही पूरा बेईमान. आज धर्म के नाम पे प्रेम की जगह नफरत के बीज बोये  जाते हैं,और  गन्दी राजनीति ,राजशाही का असर बढ़ने के कारण होने लगी  है.
ऐसे माहौल मैं लोग खुद भी धर्म की बातों से दूर रहना पसंद करते हैं और बच्चों को भी दूर रखने की कोशिश करते हैं. धर्म अब केवल मुरादें मांगने और त्योहारों के समय आनंद उठने के लिए ही इस्तेमाल किया जाता.
जब एक  शिशु  दुनिया मैं आता है, तो बड़ा मासूम होता है. यह हम हैं जो धीरे धीरे उसको अपने जैसा बना देते हैं. हमने इस समाज मैं रह के बहुत से ग़लत विचार, ग़लत विश्वासों,अंधविश्वासों  को जन्म दिया है और यही सब हम अपने बच्चे को भी सिखा देते  हैं. जबकि  यह व्यवहार स्थाई नहीं होते क्यूंकि यह सत्य से  दूर हुआ करते हैं.
सत्य तो यह है की संसार के जितने भी धर्म हैं वोह सब समाज मैं शांति , प्रेम, भाईचारे के लिए आये हैं और आज इन धर्मों के मान ने वाले अशांत हैं और शांति की तलाश करते हैं, शराब मैं, क्लबों   मैं, डिस्को मैं, अनैतिक संबंधों मैं, टीवी सीरिअल्स और फिल्मों मैं, फिर भी शांति नहीं मिलती क्योंकि  हकीकत मैं यह सही राह नहीं है. 
आज समाज मैं चारों और  अशांति ही अशांति है. ओलाद   माता पिता की इज्ज़त नहीं करते, बूढ़े अनाथ आश्रम मैं या गाँव के घरों मैं अकेले दिन काटने हैं, औलाद शहरों मैं पैसे , ऐश ओ आराम के पीछे भाग रहा है. भाई भाई मैं नफरत , रिश्तेदारों  मैं भरोसा नहीं , हर तरफ अविश्वास और बेईमानी का माहौल है. ज़रुरत को मुहब्बत का नाम दे रखा है. पैसा और ताक़त ही सबका ईमान है, बेईमानी से कमाया पैसा और फरेब से पैदा की गयी ताक़त घमंड, इर्षा, और अशांति पैदा करता है. यही कारण है की  आज सभी ऐश ओ आराम के बावजूद हर इंसान खुद को अकेला महसूस करता है. 
हमें आज आवश्यकता है यह विचार करने की के हम हैं कौन? कहां से आये हैं? कहां हमारी मंजिल है? क्या हमको चहिये? सच्चा सुख किस्में है? हमें स्वंय से संबंधित वास्तविकताओं का पता लगाने का प्रयास करना पड़ेगा.
अब प्रश्न यह उठता है कि हम अपने अन्दर परिवर्तन लाएं भी तो किस प्रकार? यदि हम अपने अन्दर परिवर्तन लाना चाहते हैं तो हमें  हमें स्वंय से संबंधित वास्तविकताओं को पता करने  के लिए  ईश्वर की ओर ध्यान देना पड़ेगा ताकि हम यह देखें कि हमारे बारे में उसका दृष्टिकोण क्या है? यह ईश्वर है जिसने हमारी रचना की है और हमारे बारे मैं हमसे बेहतर जानता है. हमें आज आवश्यकता है , अपने धर्म के सही रूप को पहचानने की और उसपे इश्वर के बताए तरीक़े से अमल करने की. 
जब भी कोई काम करो, कोई फैसला करो ,ध्यान दो इस बात पे की हमारे धर्म की किताबों मैं , उस बारे मैं क्या कहा गया है? इश्वेर को पहचानना है तो किसी ग़रीब के, मजबूर के चेहरे पे मुस्कराहट लाने की कोशिश करो और देखो, कितनी शांति मिलती है. यही इश्वर की ख़ुशी है और इश्वेर के प्रति प्रेम प्रकट करने का सही तरीका.
मैं अमन का पैग़ाम ले के आप सबके सामने आया और मुसलमान होने के कारण , इस्लाम का सहारा लेता हूँ  इस शांति सन्देश को आगे बढ़ने के लिए. यदि मैं हिन्दू होता तो यकीनन , रामायण, गीता और वेद का सहारा ले रहा होता , लेकिन सन्देश शांति और इंसानियत का ही दे रहा होता. मैं उन बातों की और आप सबका ध्यान आकर्षित करने की कोशिश किया करता हूँ, जिनके  कारण समाज मैं असंतुलन की स्थिति पैदा हो जाया करती है और हमारा मन अशांत रहने लगता है .
diyaGIF दीपावली का त्यौहार निकट है, लेकिन पटाखों की आवाज़ अभी से सुनाई देने लगी है. दीपावली रोशनी का त्यौहार है. दिया या प्रकाश बुराई पर भलाई के विजय का प्रतीक है.हम मुसलमानों मैं भी शबे बारात की रात , इमाम महदी (अ.स) की पैदाइश की खुशिया मैं पटाखे  छुड़ाने का रिवाज है. मैं नहीं समझता की किसी भी ख़ुशी का  इन पटाखों से किसी भी प्रकार का  रिश्ता हो सकता है.चाहे वो दिवाली हो या शब् ए बारात ,उसदिन ख़ुशी मनाओ दिए जला के, मिठाई बाँट के, रिश्तेदारों, से मित्रों से प्रेम प्रकट करके और इश्वेर को याद करके,इश्वेर के बताए हुए रास्ते  पे चलने की कसम खा के, और  इश्वेर की ख़ुशी के लिए सदका और दान कर के ना की करोणों रुपये पटाखे मैं बर्बाद करके.
यदि यही करोणों रूपए उन ग़रीबों के घर पहुँच जाए, जिनके बच्चे दिवाली पे मजदूरी कर के इन पटाखों को बनाते तो हैं, लेकिन घर मैं दिए नहीं जला पाते, मिठाइयां नहीं का पाते, नए कपडे नहीं बनवा पाते .महसूस करें उन घरों की खशी को तो आप आपको लगेगा, सही दिवाली उन मजबूर लोगों के चेहरे की मुस्कराहटों मैं है.
महापुरुषों का कथन है कि  अपने अस्तित्व में ईश्वर की वास्तविकता को पहचानिए और समझिए. स्वंय अपने अस्तित्व से उसका नाता जोड़ने का प्रयास कीजिए. हम जब  ईश्वरिय इच्छा के अनुरुप जीवन बिताने का प्रयास करेंगे तब कहीं जा के हमें  एहसास होगा की , सच्ची भक्ति क्या है? और मन की शांति इंसानों से प्रेम मैं मिला करती है.
 diya आप सबको दीपावली की ढेर सारी शुभकामनाए.diya
नाम

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S.M.MAsoom: आज आवश्यकता है यह विचार करने की के हम हैं कौन?
आज आवश्यकता है यह विचार करने की के हम हैं कौन?
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