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इस्लाम के नाम पे धोका

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मैं एक ब्लॉग पढ़ रह था जिसमें  इस्लाम के कानून मैं  सुधार  की बात एक मुसलमान मोहतरमा कर रही थीं और वाह वाह कर  रहे थे वोह जिनका मज़हब ही इस्...

मैं एक ब्लॉग पढ़ रह था जिसमें  इस्लाम के कानून मैं  सुधार  की बात एक मुसलमान मोहतरमा कर रही थीं और वाह वाह कर  रहे थे वोह जिनका मज़हब ही इस्लाम नहीं था. मोहतरमा कुछ सवाल उठा रही थीं मुसलमानों को निशाना बना के, और हकीकत मैं उनका निशाना थी कुरान. वैसे भी कुरान अल्लाह का कलाम है और उसपे ऊँगली उठाने वाला मुसलमान नहीं हो सकता.

सवाल नंबर १ : अल्लाह ने संसार की सृष्टि करके इसे हिन्दुओं के हवाले क्यों कर दिया...??? हिन्दुओं के दौर में भी संसार आगे बढ़ा... कई सभ्यताएं आईं...


सवाल नंबर २ :दूसरे मज़हब के लोगों को किसने पैदा क्या है...??? अगर अल्लाह ने... तो फिर क्यों अल्लाह को मानने वाले 'मुसलमान' दूसरे मज़हबों के लोग को 'तुच्छ' समझते हैं... क्या अपने ही अल्लाह की संतानों (दूसरे मज़हब के लोगों) के साथ ऐसा बर्ताव जायज़ है...???

सवाल नंबर ३ : जब अल्लाह ने सभी को 'मुसलमान' पैदा नहीं किया तो फिर क्यों मज़हब के ठेकेदार सभी कौमों को 'मुसलमान' बनाने पर तुले हुए हैं...???


इस्लाम धर्म के संस्थापक हज़रत मुहम्मद (सल्लल.) से पहले जो एक लाख 24 हज़ार नबी हुए हैं... वो किस मज़हब को मानते थे...???

सवाल नंबर ४: सुधार तो निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है... इसमें 'कोमा' तो हो सकता है, लेकिन 'फ़ुल स्टॉप' नहीं. हिजाब जैसी हर कुप्रथा को दूर किया जाए.

 जवाब : हेजाब या आवरण और इस्लाम
ऐसे मुस्लिम  जो की अल्लाह के हुक्म मैं सुधार की बात करते हैं सिर्फ इसलिये की दूसरे मज़हब वाले खुश हो जाएं दर असल वे किसी के नहीं होते  . यह नाम और शोहरत के लिये कुछ भी कर  सकते हैं. ग़ैर मज़हब के लोगों  का दिल जीतना इस्लाम का हुक्म है और यह काम एखलाक और बेहतरीन किरदार को पेश कर  के किया जाता है न की इस्लाम और मुसलमान की बुराईयाँ केर के.


जो मुस्लिम नहीं आज इस्लाम को उनसे कोई खतरा दरसल नहीं है बल्कि खतरा है ऐसे मुनाफ़िक़(दो चेहरे वाले )  मुस्लिम  से.

इस्लाम आदम का भी मज़हब था और मुहम्मद (स.अ.व ) का भी. आदम से दुनिया शुरू हुई थी. इस्लाम मज़हब के कानून की किताब का नाम है कुरान और इस से पहले भी नबी और अल्लाह की किताबें आती रहीं और जो हिदायतें आयी वोह सब इस्लाम की हिदायतें थीं और कुरान मैं मौजूद हैं.

आज अगर  हर इंसान तरक्की  के नाम पे इस्लाम ,सुधार  के नाम पे नए नए कानून, नयी फ़िक्र  लेगा  तो फितना ओ फसाद  पैदा  होगा.

इस्लाम के कानून को आप पहले समझें  और यकीन कर  लें की इसमें कोई सुधार हम इंसानों  को करने की ज़रुरत नहीं. दर असल आज ज़रा से नाम और शोहरत के लिये लोग  कुरान के कानून को निशाना बना ते हैं और यह पैग़ाम  देने की कोशिश करते हैं की इस्लाम एक १४०० साल पुराना मज़हब है और उसके कानून भी आज के लिय दुरुस्त नहीं , जब की ऐसा हैं नहीं. ये कम इल्मी है उस मुसलमान की जो ऐसी सोंच  रखता है.

या तो  कुरान को कानून मान के उस पे अमल  करो और मुसलमान बन जाओ या फिर खुद का कोई नया मज़हब बना लो और इस्लाम को मान ने  से इनकार कर  दो. यह क्या बात हुई की इस्लाम पे भी हैं, खुद को नेक मुसलमान भी कहते हैं और अल्लाह के बनाये कानून (कुरान) मैं कमियाँ निकाल ते हैं औए यह पैग़ाम देते हैं की अल्लाह को नहीं मालूम था १४०० साल के बाद सुधार की ज़रुरत पड़ेगी.

अब आप के कुछ सवालों  के जवाब :

इस्लाम इसके मन ने वालों की  मुनाफ़िक़ हरकतों से खतरे मैं नहीं पड़ता बल्कि बदनाम हो जाता है. आज के इस दौर मैं इस्लाम के सिध्दांतों और आम मुसलमानों के व्यवहार को अलग-अलग करके देखना होगा। यह मुसलमान के लिये शर्म की बात है. अगर  आज का मुसलमान जो करता है उसको इस्लाम मान लिया जाए तो  इस्लाम पामाल जो जाएगा और बदनाम तोह हो ही रहा  है, लोग देख सकते हैं. अफ़सोस तोह यह की कुछ मुसलमान खुद इस्लाम को नहीं समझ सकते और दूसरे मज़हब के लोगों  को खुश करने का नया तरीका , इस्लाम को  १४०० साल पुराना क़ानून बता के और खुद को सुधार वादी  और सभी धर्म के शुभचिंतक रहे हैं.


इंसानियत का नाम हैं इस्लाम और अगर  दूसरे  मज़हब वालों  को खुश करना  है तो अपने नेक किरदार से रखो  हिंदू पहले नहीं आया ना मुसलमान, पहले आये  हज़रत आदम और उनका मज़हब इस्लाम था. अल्लाह नए हर  इंसान को इस्लाम पे पैदा किया और पैगम्बरों  के ज़रिय्र  इस्लाम के कानून को समझाया.


अल्लाह ने संसार की सृष्टि करके इसे हिन्दुओं के हवाले नहीं किया बल्कि नाबिओं  के और नेक  इंसानों    के हवाले किया.

 इस्लाम का कहना है इंसानियत के रिश्ते  से  सब इंसान आपस मैं भाई हैं. .ज़ब कोई बच्चा पैदा होता  है तो उसका मज़हब इंसानियत होता है या कह लो इस्लाम होता है, यह हम हैं जो उसको बाद मैं अपने जैसा बना ले ते  हैं.

इस्लाम किसी को तुच्छ नहीं समझता बल्कि अल्लाह को सब से  बड़ा मान ने मैं यक़ीन रखता  है. इस्लाम मैं जब्र नहीं,अपनी बात लोगों  तक पहुँचाओ औरे अगर  ना मानें तो उन पे  जब्र  ना करो बल्कि अपने क़िरदार और एख़लाक़ को और बेह्तेर बना  के  पेश करो .

क़त्ल  करने  वालों , चोर  और फरेबी का कोई मज़हब नहीं होता यह इंसानी कमज़ोरी है जो हर मज़हब के मान ने वालों मैं पाई जाती है.

'असामाजिक तत्व जज़्बाती धर्मांध  हर मज़हब मैं पाए जाते  हैं हम को किसी धर्म विशेष से नहीं बल्कि इंसान की बुराईयों  से  लड़ना है.और  यह किसी धर्म के  मानने वालों  पे  हमला कर के  नहीं बल्कि अच्छा  किरदार पेश करने पे मुमकिन होगा. .


मेरा ख्याल है मोहतरमा  जिन सवालों   का जवाब बचपन साए तलाश रही थीं उनका जवाब मिल गया होगा.  इस्लाम को और क़रीब से समझने के  बाद आप का यह इंसानियत का पैग़ाम  और बेहतर  तरीके से  पहुँचेगा लोगों  तक.
इंसान जिसका मज़हब इंसानियत है.और इस्लाम इंसानियत सिखाता है.

S.M.MAsum

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S.M.MAsoom: इस्लाम के नाम पे धोका
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