पेश ए खिदमत है "अमन के पैग़ाम पे सितारों की तरह चमकें" की तीसवीं वी पेशकश शिखा वार्ष्णेय का नाम हिंदी चिट्ठाकारी में ...
पेश ए खिदमत है "अमन के पैग़ाम पे सितारों की तरह चमकें" की तीसवीं वी पेशकश
शिखा वार्ष्णेय का नाम हिंदी चिट्ठाकारी में बहुत सम्मान के साथ लिया जाता है .दिल्ली की शिखा वार्ष्णेय की स्कूली शिक्षा वैसे तो रानीखेत में हुई है इन्होने मास्को स्टेट यूनिवर्सिटी से गोल्ड मैडल के साथ टी.वी. जर्नलिज्म में मास्टर्स करने के बाद कुछ समय एक टीवी चेनेंल में न्यूज़ प्रोड्यूसर के तौर पर काम किया ,इन्हें हिंदी भाषा के साथ ही अंग्रेजी ,और रुसी भाषा पर भी समान अधिकार है परन्तु खास लगाव अपनी मातृभाषा से ही है.वर्तमान में लन्दन में रहकर इनका स्वतंत्र लेखन जारी है. शिखा वार्ष्णेय जी के सुनहरे एवं यशस्वी भविष्य की कामना करते हुए आज यहाँ हम अमन के पैग़ाम के लिए उनकी भेजी एक रचना आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं .. |
पर आज के बच्चों के पास ऐसी यादें नहीं होंगी. स्वार्थ की घिनोनी राजनीति ने नफरत के बीज बो दिए हैं कोमल मन पर .एक स्वस्थ मन बचपन ही सुदृढ़ भविष्य का निर्माण करता है ,भूल जाते हैं हम कि इनके हाथों ही सभ्य समाज की बागडोर है .करो अपनी राजनीति बचाओ अपनी कुर्सी. पर बक्श दो इनके बचपन को खिलने दो इन फूलों को प्यार से तभी महकेगा गुलिस्ताँ तुम्हारा ...आमीन.
ये नन्हे फ़रिश्ते नहीं आज तुमसे
कोई परिस्तान मांगते हैं.
नहीं दरकार है ऊंचे महलों की
फैली हैं बाहें बस ये प्यार चाहते हैं
बनाओ ऊंची इमारतें भले ही
बनाओ तुम आलीशान मकान
बस छोड़ दो एक आँगन
राम और अली साथ खेलना चाहते हैं.
रचा जा रहा साहित्य गहन
बहस में लगे है सब विज्ञ जन
बस छोड़ दो कुछ पन्ने, वे
इबारत ए अमन लिखना चाहते हैं.
चलाओ चाहे पानी में जहाज
या फिर चलाओ पंडुब्बियाँ
बस छोड़ दो एक नौका,
वे नफरत के पार जाना चाहते हैं.
चीर सीना आसमान का
बेशक जाओ तुम चाँद तक
छोड़ दो नभ का एक कोना, वे
पतंग अमन की उड़ाना चाहते हैं.
……शिखा वार्ष्णेय, लंदन
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